क्या ‘सुपर कॉप’ आनंद मिश्रा बक्सर में खिलाएंगे कमल:NDA-महागठबंधन में कांटे का मुकाबला; कांग्रेस वोटबैंक मजबूत, ब्राह्मण-यादव निर्णायक वोटर

क्या ‘सुपर कॉप’ आनंद मिश्रा बक्सर में खिलाएंगे कमल:NDA-महागठबंधन में कांटे का मुकाबला; कांग्रेस वोटबैंक मजबूत, ब्राह्मण-यादव निर्णायक वोटर

‘हम लोग तीनों पहर मिलने वाले दोस्त हैं यानी सुबह-दोपहर-शाम दिन में तीन बार मिलते हैं। हम NDA के वोटर हैं और ये महागठबंधन के। इस बार की चुनावी लड़ाई में मुश्किल से हजार वोट से जीत-हार होगी, ये भी तय है।‘ बक्सर में रहने वाले 60 साल के सत्यदेव ओझा इस बार चाहकर भी NDA कैंडिडेट आनंद मिश्रा की जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं। ज्योति चौक पर उनकी हार्डवेयर की दुकान है। वहां जमी दोस्तों की बैठकी में रिटायर्ड हेडमास्टर राजीव प्रसाद भी मिले। वे मुस्कुराकर कहते हैं, ‘लालू ने हम लोगों को नजर मिलाने की ताकत दी। हमारे बच्चों को आत्मसम्मान दिया। हमारे लिए वो मसीहा हैं। ओझा जी से पूछिए कि वो किसे वोट देंगे। इनके मन में अब भी मोदी बसते हैं।‘ कुछ पूछने से पहले ही राम जतन ओझा बोल पड़ते हैं, ‘बुझी हुई लालटेन को तो वोट नहीं दे पाएंगे। लालू जी के बाद उनका बेटा और उसके बाद उनका नाती नेता बनेगा। कम से कम BJP में ऐसा तो नहीं है।‘ बक्सर में पहले फेज में 6 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। पिछले करीब 70 साल में यहां BJP, कांग्रेस और BSP के बीच मुकाबला होता रहा है। कांग्रेस का गढ़ रहे बक्सर में पिछले दो विधानसभा चुनाव लगातार कांग्रेस ने जीते। यहां ब्राह्मण-यादव निर्णायक वोटर हैं। महागठबंधन में चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने इस बार भी संजय तिवारी पर भरोसा जताया है। वहीं BJP से पूर्व IPS अधिकारी ‘सुपर कॉप’ आनंद मिश्रा मैदान में हैं। BSP ने अभिमन्यु कुशवाहा को टिकट दिया है, जो दलित वोटों के अलावा कुशवाहा वोट में सेंध लगा सकते हैं। पढ़िए ग्राउंड जीरो से बक्सर का सियासी हाल…. बक्सर के लोगों की बात…
NDA-महागठबंधन में टक्कर, कम मार्जिन से होगी जीत-हार
बक्सर में ज्योति चौक पर हम कुछ और लोगों से मिले। जनरल स्टोर चलाने वाले असलम कहते हैं, ‘हमारे लिए तो सब नेता एक जैसे हैं। हम युवा हैं, उस हिसाब से देखें तो तेजस्वी ने नौकरी दी है। हम लोगों के लिए तो युवा नेता ही ठीक है, जो हमारी बात सुने और समझे।‘ हमने बक्सर सीट पर चुनाव का हाल पर पूछा तो कहने लगे, ‘मुझे लगता है कि NDA और महागठबंधन एकदम टक्कर में हैं। कांटे की लड़ाई होगी और हजार-दो हजार वोट से ही जीत-हार तय होगी। हालांकि मेरी दुकान पर आने वाले लोगों की बातें सुनकर मुझे लगता है कि NDA के कैंडिडेट आनंद मिश्रा की स्थिति फिलहाल बेहतर है।‘ वहीं सत्यदेव ओझा और उनके साथियों का कहना है कि यहां चुनाव स्थानीय मुद्दों का नहीं है। इस सीट पर ब्राह्मणों की अच्छी खासी आबादी है, इसलिए जातिगत समीकरण जरूरी फैक्टर है। अब सीट का सियासी समीकरण…
कांग्रेस 10 चुनाव जीती, RJD-JDU का खाता भी नहीं खुला
बक्सर विधानसभा सीट पर 1952 में पहला चुनाव हुआ था। शुरुआती समय से यहां कांग्रेस का अच्छा प्रभाव रहा है। बीच में BJP, CPI और बहुजन समाज पार्टी ने भी चुनाव जीते, लेकिन ऐसा कम ही मौकों पर हुआ। कांग्रेस ने यहां से सबसे ज्यादा 10 बार, BJP ने तीन, CPI ने दो और बसपा ने एक बार चुनाव जीता है। RJD और JDU का यहां अभी खाता भी नहीं खुल पाया। आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में यहां से कांग्रेस के लक्ष्मीकांत तिवारी ने चुनाव जीता। यहीं से कांग्रेस की जीत की एक लंबी यात्रा शुरू हुई। इस सीट के इतिहास में सबसे स्वर्णिम समय जगनारायण त्रिवेदी का रहा। वे 1962 से लेकर 1980 तक लगातार 5 बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। इस बीच में सिर्फ एक बार 1967 में सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी ने चुनाव जीता था। इसके बाद 1990 में इस किले में सेंध लगी, जब वामपंथी दलों और BSP जैसे रीजनल खिलाड़ियों को जीत मिली। इसके बाद 2000 से BJP ने भी 3 चुनाव जीते। हालांकि कांग्रेस कैंडिडेट संजय कुमार तिवारी ने 2015 और 2020 में लगातार जीत हासिल कर इस सीट पर पकड़ मजबूत कर ली है। कांग्रेस कैंडिडेट लोगों में पॉपुलर, इसका फायदा मिला
नए समीकरण क्या कह रहे हैं, फिलहाल जीत किस दिशा में दिख रही है, ये समझने के लिए हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट से बात की। 2020 का चुनाव दिलचस्प मुकाबले वाला रहा कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने BJP के प्रदीप कुमार को लगभग 7,400 वोटों से हराया। मुन्ना तिवारी 2015 में भी जीते। तब जीत का अंतर 10 हजार था। इस घटते अंतर पर बात करते हुए लोकल जर्नलिस्ट विमल कुमार कहते हैं, ‘मुन्ना तिवारी की छवि दबंग नेता की रही है। साथ ही वो लोगों के लिए हर मौके पर मौजूद रहते हैं। आप कभी भी फोन करें तो वो ज्यादातर बार खुद फोन उठाएंगे। चौक-चौराहे से गुजरेंगे तो लोगों से मिलते-बतियाते हुए जाएंगे। उन्हें इसका फायदा मिलता रहा है।‘ ‘इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में वो लगातार आते-जाते रहते हैं। संजय कुमार तिवारी खुद भी इस बात को लेकर दावा करते रहे हैं कि उन्होंने व्यापारियों को बहुत राहत दी है और यहां रंगदारी-वसूली जैसी चीजें खत्म हो गई हैं।‘ ब्राह्मण और यादव इस सीट पर निर्णायक वोटर
बक्सर में ब्राह्मण-यादव कम्युनिटी का दबदबा है, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यादव, मुस्लिम और महादलित वोटरों का मजबूत समर्थन मिला। वहीं BJP का पारंपरिक वोट बैंक बंट गया। क्योंकि लोकल कार्यकर्ताओं में टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष था। गंगा किनारे के इलाकों में बाढ़ और रोजगार के मुद्दे ने भी BJP-JDU के विरोध में काम किया। बक्सर विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास बताता है कि ये सीट सिर्फ गठबंधन की लहर पर नहीं बल्कि उम्मीदवारों की व्यक्तिगत पकड़ पर चलती रही है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने अपनी जीत से ये साबित भी किया। दोनों ही बार NDA ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन जीत का स्वाद नहीं चख सकी। 2020 के विधानसभा चुनाव में BJP कैंडिडेट की हार का सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के उम्मीदवार निर्मल कुमार सिंह थे, जिन्हें करीब 19% वोट मिले। जर्नलिस्ट विमल कुमार कहते हैं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLSP ने BJP के कोर वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई, जिससे NDA का वोट बंट गया। ‘ये वोट कांग्रेस के लिए संजीवनी बन गया और मुन्ना तिवारी अपनी सीट दोबारा बचा पाने में कामयाब रहे। बक्सर के ब्राह्मण और यादव वोटर इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और इन्हीं का ध्रुवीकरण जीत-हार का अंतर तय करता है।‘ बक्सर में त्रिकोणीय मुकाबला, BSP-जन सुराज भी कम नहीं
पॉलिटिकल एक्सपर्ट उमेश कुमार चुनाव प्रचार को लेकर कहते हैं, ‘जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी एक ऐसी बड़ी आबादी है, जिनके पास अखबार नहीं आता और न ही टीवी है। वो सिर्फ ये देखते हैं कि उनके गांव और खेतों तक संसाधन कौन पहुंच रहे हैं और कौन उनकी समस्याएं सुनने को तैयार है। यही देखकर वो वोट देते हैं।‘ BJP कैंडिडेट को लेकर उनका कहना है, ‘बक्सर के सिमरी प्रखंड में असम के मुख्यमंत्री हिमंत सरमा बिस्वा की एक सभा हुई थी, जिसमें उन्होंने आनंद मिश्रा को अर्बन नक्सली बताया था। ऐसे में अब BJP से उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में ही फूट दिख रही है। पार्टी वर्कर्स का कहना है कि जब हमारे वरिष्ठ नेता ने ही कहा था कि वो अर्बन नक्सली हैं, तो हम उनके लिए वोट क्यों मांगे।‘ वे आगे कहते हैं, ‘BSP और जन सुराज के कैंडिडेट्स को भी कम नहीं आंका जा सकता है। जन सुराज उम्मीदवार हर्षवर्धन 11 साल कांग्रेस के जिला अध्यक्ष के तौर पर एक्टिव रहे हैं। वहीं BSP के उम्मीदवार अभिमन्यु कुशवाहा की जमीन पर पकड़ दिखाई देती है। इसलिए यहां मुकाबला त्रिकोणीय है।‘ अब बात चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे उम्मीदवारों की…
कांग्रेस: दिन के 24 घंटे जनता के लिए
इसके बाद हम उम्मीदवारों से मिले। सबसे पहले हम कांग्रेस कैंडिडेट संजय तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी से मुलाकात करने कांग्रेस दफ्तर पहुंचे। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में मुन्ना तिवारी को जीत तो मिली, लेकिन मार्जिन घटता गया। हमने पूछा कि क्या दो बार से विधायक होने से फैले असंतोष की वजह से मार्जिन कम हुआ? जवाब में संजय कहते हैं, ‘आप मेरे बारे खुद घूमकर पता कर लीजिए। शहर के व्यापारी भी मुझे वोट देते हैं जबकि महागठबंधन को शहर में वोट नहीं मिलता है।‘ ‘गांव में जाकर पता करेंगे तो लोग आपको बता देंगे कि मुन्ना तिवारी की कीमत उनके लिए क्या है। मैं उन लोगों के लिए चौबीस घंटे हर मौके पर खड़ा रहता हूं।‘ BJP: मेरा बक्सर को लेकर विजन भी और ब्लू प्रिंट भी
असम-मेघालय कैडर के पूर्व IPS अधिकारी आनंद मिश्रा बक्सर की राजनीति में चर्चित चेहरा बनकर उभरे हैं। IPS की नौकरी से VRS लेकर उन्होंने राजनीति में एंट्री की। उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत बक्सर लोकसभा चुनाव 2024 से हुई। BJP ने टिकट देने से मुकरी तो उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा में दावेदारी की लेकिन हार गए। करीब 50,000 वोट हासिल करके उन्होंने राजनीतिक गलियारों में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा दी। लोकल लोगों की मानें तो यहां से NDA के उम्मीदवार को हराने में उनका बड़ा योगदान था। इस प्रदर्शन ने उन्हें युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। फिर उन्होंने जन सुराज जॉइन कर ली। हालांकि आनंद मिश्रा के चलते 2024 के लोकसभा चुनाव में हुई हार से सबक लेते हुए BJP ने 2025 के विधानसभा चुनाव में बक्सर सदर सीट से आनंद मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया है। उनसे मिलने के लिए हम ‘कमल सेवा केंद्र’ पहुंचे। केंद्र पर उनकी टीम के करीब 30 वॉलंटियर काम करते मिले। आनंद की मानें तो बक्सर की जनता की समस्याओं से निजात के लिए वो सिंगल विंडो सिस्टम बनाएंगे। हमने तीन ब्राह्मण उम्मीदवारों और उनके बंटते वोट पर सवाल किया तो उनका जवाब मिला, ‘जनता ये सब देखकर वोट नहीं करेगी। मेरे पास विजन है। बक्सर को लेकर ब्लू प्रिंट है। ये शहर बनारस और पटना के केंद्र में है। नदी के किनारे है। साफ-साफ एक कॉरिडोर की तरह है, जिसे टूरिज्म से लेकर व्यापार तक के लिए सबसे मुफीद माना जा सकता है। मेरा मकसद यही है कि बक्सर देश की राजनीति के फलक पर दिखाई दे।‘ IPS की नौकरी भी तो देश की सेवा ही थी, उसे छोड़कर राजनीति करने के पीछे क्या वजह है? आनंद कहते हैं, ‘मैंने तीन साल में एक से एक जिलों की व्यवस्था ठीक की है। मुझे साफ-साफ दिखता है कि एक ब्यूरोक्रेट व्यवस्था लागू कर सकता है, लेकिन नेता व्यवस्था बनाते हैं।‘ मुझे बहुत दुख होता था कि मैं स्कूल नहीं खोल सकता, बस उसके संचालन की जिम्मेदारी ले सकता हूं। मैं अस्पताल की व्यवस्था पर बात कर सकता हूं लेकिन जहां जरूरत है वहां खोल नहीं सकता। जन सुराज: हमारी परिकल्पना बिहार में जनता का सुंदर राज
बीते 11 साल से कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे हर्षवर्धन इस बार जन सुराज के प्रत्याशी हैं। उनके पिता प्रोफेसर केके तिवारी केंद्र में वित्त और विदेश मंत्री जैसे अहम पदों पर रह चुके हैं। कांग्रेस छोड़ने की वजह पूछने पर हर्षवर्धन कहते हैं, ‘मैं आज भी मन से गांधीवादी और नेहरु की विचारधारा का आदमी हूं लेकिन कांग्रेस अब NGO के हाथ में चली गई है। पुरानी कांग्रेस जैसा अब कुछ नहीं है।‘ हर्षवर्धन बक्सर सीट पर जन सुराज से उम्मीदवार हैं। वे खुद को जन सुराज का फाउंडिंग मेंबर बताते हुए कहते हैं, ‘जन सुराज की परिकल्पना बिहार में जनता का सुंदर राज स्थापित करने की है। पार्टी ने मुझ पर जो भरोसा जताया है, उसे पूरा करने के लिए मैं हर कार्यकर्ता के साथ मिलकर काम करूंगा।’
………………. ये खबर भी पढ़ें… ‘नेपाल न होता तो हम भूखे-प्यासे मर जाते’ रक्सौल का सीवान टोला गांव। नेपाल से इतना करीब कि लोग कमाने भी वहीं जाते हैं। यहां आपस में लोग इतने घुले-मिले हैं कि भारत के दीपनारायण पटेल और नेपाल के लाल बाबू पटेल एक दलान में बैठे मिल जाते हैं। ये सीवान टोला का एक पहलू है। दूसरा पहलू ये कि यहां के लोगों को सरकार से बहुत शिकायतें हैं। गांव की लीलावती कहती हैं, ‘यहां न नाली है, न रोड। हम लोग नेपाल से पानी लाकर पी रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… ‘हम लोग तीनों पहर मिलने वाले दोस्त हैं यानी सुबह-दोपहर-शाम दिन में तीन बार मिलते हैं। हम NDA के वोटर हैं और ये महागठबंधन के। इस बार की चुनावी लड़ाई में मुश्किल से हजार वोट से जीत-हार होगी, ये भी तय है।‘ बक्सर में रहने वाले 60 साल के सत्यदेव ओझा इस बार चाहकर भी NDA कैंडिडेट आनंद मिश्रा की जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं। ज्योति चौक पर उनकी हार्डवेयर की दुकान है। वहां जमी दोस्तों की बैठकी में रिटायर्ड हेडमास्टर राजीव प्रसाद भी मिले। वे मुस्कुराकर कहते हैं, ‘लालू ने हम लोगों को नजर मिलाने की ताकत दी। हमारे बच्चों को आत्मसम्मान दिया। हमारे लिए वो मसीहा हैं। ओझा जी से पूछिए कि वो किसे वोट देंगे। इनके मन में अब भी मोदी बसते हैं।‘ कुछ पूछने से पहले ही राम जतन ओझा बोल पड़ते हैं, ‘बुझी हुई लालटेन को तो वोट नहीं दे पाएंगे। लालू जी के बाद उनका बेटा और उसके बाद उनका नाती नेता बनेगा। कम से कम BJP में ऐसा तो नहीं है।‘ बक्सर में पहले फेज में 6 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है। पिछले करीब 70 साल में यहां BJP, कांग्रेस और BSP के बीच मुकाबला होता रहा है। कांग्रेस का गढ़ रहे बक्सर में पिछले दो विधानसभा चुनाव लगातार कांग्रेस ने जीते। यहां ब्राह्मण-यादव निर्णायक वोटर हैं। महागठबंधन में चुनाव लड़ रही कांग्रेस ने इस बार भी संजय तिवारी पर भरोसा जताया है। वहीं BJP से पूर्व IPS अधिकारी ‘सुपर कॉप’ आनंद मिश्रा मैदान में हैं। BSP ने अभिमन्यु कुशवाहा को टिकट दिया है, जो दलित वोटों के अलावा कुशवाहा वोट में सेंध लगा सकते हैं। पढ़िए ग्राउंड जीरो से बक्सर का सियासी हाल…. बक्सर के लोगों की बात…
NDA-महागठबंधन में टक्कर, कम मार्जिन से होगी जीत-हार
बक्सर में ज्योति चौक पर हम कुछ और लोगों से मिले। जनरल स्टोर चलाने वाले असलम कहते हैं, ‘हमारे लिए तो सब नेता एक जैसे हैं। हम युवा हैं, उस हिसाब से देखें तो तेजस्वी ने नौकरी दी है। हम लोगों के लिए तो युवा नेता ही ठीक है, जो हमारी बात सुने और समझे।‘ हमने बक्सर सीट पर चुनाव का हाल पर पूछा तो कहने लगे, ‘मुझे लगता है कि NDA और महागठबंधन एकदम टक्कर में हैं। कांटे की लड़ाई होगी और हजार-दो हजार वोट से ही जीत-हार तय होगी। हालांकि मेरी दुकान पर आने वाले लोगों की बातें सुनकर मुझे लगता है कि NDA के कैंडिडेट आनंद मिश्रा की स्थिति फिलहाल बेहतर है।‘ वहीं सत्यदेव ओझा और उनके साथियों का कहना है कि यहां चुनाव स्थानीय मुद्दों का नहीं है। इस सीट पर ब्राह्मणों की अच्छी खासी आबादी है, इसलिए जातिगत समीकरण जरूरी फैक्टर है। अब सीट का सियासी समीकरण…
कांग्रेस 10 चुनाव जीती, RJD-JDU का खाता भी नहीं खुला
बक्सर विधानसभा सीट पर 1952 में पहला चुनाव हुआ था। शुरुआती समय से यहां कांग्रेस का अच्छा प्रभाव रहा है। बीच में BJP, CPI और बहुजन समाज पार्टी ने भी चुनाव जीते, लेकिन ऐसा कम ही मौकों पर हुआ। कांग्रेस ने यहां से सबसे ज्यादा 10 बार, BJP ने तीन, CPI ने दो और बसपा ने एक बार चुनाव जीता है। RJD और JDU का यहां अभी खाता भी नहीं खुल पाया। आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में यहां से कांग्रेस के लक्ष्मीकांत तिवारी ने चुनाव जीता। यहीं से कांग्रेस की जीत की एक लंबी यात्रा शुरू हुई। इस सीट के इतिहास में सबसे स्वर्णिम समय जगनारायण त्रिवेदी का रहा। वे 1962 से लेकर 1980 तक लगातार 5 बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। इस बीच में सिर्फ एक बार 1967 में सम्युक्त सोशलिस्ट पार्टी ने चुनाव जीता था। इसके बाद 1990 में इस किले में सेंध लगी, जब वामपंथी दलों और BSP जैसे रीजनल खिलाड़ियों को जीत मिली। इसके बाद 2000 से BJP ने भी 3 चुनाव जीते। हालांकि कांग्रेस कैंडिडेट संजय कुमार तिवारी ने 2015 और 2020 में लगातार जीत हासिल कर इस सीट पर पकड़ मजबूत कर ली है। कांग्रेस कैंडिडेट लोगों में पॉपुलर, इसका फायदा मिला
नए समीकरण क्या कह रहे हैं, फिलहाल जीत किस दिशा में दिख रही है, ये समझने के लिए हमने पॉलिटिकल एक्सपर्ट से बात की। 2020 का चुनाव दिलचस्प मुकाबले वाला रहा कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने BJP के प्रदीप कुमार को लगभग 7,400 वोटों से हराया। मुन्ना तिवारी 2015 में भी जीते। तब जीत का अंतर 10 हजार था। इस घटते अंतर पर बात करते हुए लोकल जर्नलिस्ट विमल कुमार कहते हैं, ‘मुन्ना तिवारी की छवि दबंग नेता की रही है। साथ ही वो लोगों के लिए हर मौके पर मौजूद रहते हैं। आप कभी भी फोन करें तो वो ज्यादातर बार खुद फोन उठाएंगे। चौक-चौराहे से गुजरेंगे तो लोगों से मिलते-बतियाते हुए जाएंगे। उन्हें इसका फायदा मिलता रहा है।‘ ‘इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में वो लगातार आते-जाते रहते हैं। संजय कुमार तिवारी खुद भी इस बात को लेकर दावा करते रहे हैं कि उन्होंने व्यापारियों को बहुत राहत दी है और यहां रंगदारी-वसूली जैसी चीजें खत्म हो गई हैं।‘ ब्राह्मण और यादव इस सीट पर निर्णायक वोटर
बक्सर में ब्राह्मण-यादव कम्युनिटी का दबदबा है, लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को यादव, मुस्लिम और महादलित वोटरों का मजबूत समर्थन मिला। वहीं BJP का पारंपरिक वोट बैंक बंट गया। क्योंकि लोकल कार्यकर्ताओं में टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष था। गंगा किनारे के इलाकों में बाढ़ और रोजगार के मुद्दे ने भी BJP-JDU के विरोध में काम किया। बक्सर विधानसभा सीट का चुनावी इतिहास बताता है कि ये सीट सिर्फ गठबंधन की लहर पर नहीं बल्कि उम्मीदवारों की व्यक्तिगत पकड़ पर चलती रही है। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने अपनी जीत से ये साबित भी किया। दोनों ही बार NDA ने पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन जीत का स्वाद नहीं चख सकी। 2020 के विधानसभा चुनाव में BJP कैंडिडेट की हार का सबसे बड़ा कारण राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के उम्मीदवार निर्मल कुमार सिंह थे, जिन्हें करीब 19% वोट मिले। जर्नलिस्ट विमल कुमार कहते हैं, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी RLSP ने BJP के कोर वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई, जिससे NDA का वोट बंट गया। ‘ये वोट कांग्रेस के लिए संजीवनी बन गया और मुन्ना तिवारी अपनी सीट दोबारा बचा पाने में कामयाब रहे। बक्सर के ब्राह्मण और यादव वोटर इस सीट पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और इन्हीं का ध्रुवीकरण जीत-हार का अंतर तय करता है।‘ बक्सर में त्रिकोणीय मुकाबला, BSP-जन सुराज भी कम नहीं
पॉलिटिकल एक्सपर्ट उमेश कुमार चुनाव प्रचार को लेकर कहते हैं, ‘जिले के ग्रामीण इलाकों में आज भी एक ऐसी बड़ी आबादी है, जिनके पास अखबार नहीं आता और न ही टीवी है। वो सिर्फ ये देखते हैं कि उनके गांव और खेतों तक संसाधन कौन पहुंच रहे हैं और कौन उनकी समस्याएं सुनने को तैयार है। यही देखकर वो वोट देते हैं।‘ BJP कैंडिडेट को लेकर उनका कहना है, ‘बक्सर के सिमरी प्रखंड में असम के मुख्यमंत्री हिमंत सरमा बिस्वा की एक सभा हुई थी, जिसमें उन्होंने आनंद मिश्रा को अर्बन नक्सली बताया था। ऐसे में अब BJP से उन्हें उम्मीदवार बनाए जाने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में ही फूट दिख रही है। पार्टी वर्कर्स का कहना है कि जब हमारे वरिष्ठ नेता ने ही कहा था कि वो अर्बन नक्सली हैं, तो हम उनके लिए वोट क्यों मांगे।‘ वे आगे कहते हैं, ‘BSP और जन सुराज के कैंडिडेट्स को भी कम नहीं आंका जा सकता है। जन सुराज उम्मीदवार हर्षवर्धन 11 साल कांग्रेस के जिला अध्यक्ष के तौर पर एक्टिव रहे हैं। वहीं BSP के उम्मीदवार अभिमन्यु कुशवाहा की जमीन पर पकड़ दिखाई देती है। इसलिए यहां मुकाबला त्रिकोणीय है।‘ अब बात चुनाव मैदान में किस्मत आजमा रहे उम्मीदवारों की…
कांग्रेस: दिन के 24 घंटे जनता के लिए
इसके बाद हम उम्मीदवारों से मिले। सबसे पहले हम कांग्रेस कैंडिडेट संजय तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी से मुलाकात करने कांग्रेस दफ्तर पहुंचे। 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में मुन्ना तिवारी को जीत तो मिली, लेकिन मार्जिन घटता गया। हमने पूछा कि क्या दो बार से विधायक होने से फैले असंतोष की वजह से मार्जिन कम हुआ? जवाब में संजय कहते हैं, ‘आप मेरे बारे खुद घूमकर पता कर लीजिए। शहर के व्यापारी भी मुझे वोट देते हैं जबकि महागठबंधन को शहर में वोट नहीं मिलता है।‘ ‘गांव में जाकर पता करेंगे तो लोग आपको बता देंगे कि मुन्ना तिवारी की कीमत उनके लिए क्या है। मैं उन लोगों के लिए चौबीस घंटे हर मौके पर खड़ा रहता हूं।‘ BJP: मेरा बक्सर को लेकर विजन भी और ब्लू प्रिंट भी
असम-मेघालय कैडर के पूर्व IPS अधिकारी आनंद मिश्रा बक्सर की राजनीति में चर्चित चेहरा बनकर उभरे हैं। IPS की नौकरी से VRS लेकर उन्होंने राजनीति में एंट्री की। उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत बक्सर लोकसभा चुनाव 2024 से हुई। BJP ने टिकट देने से मुकरी तो उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लोकसभा में दावेदारी की लेकिन हार गए। करीब 50,000 वोट हासिल करके उन्होंने राजनीतिक गलियारों में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा दी। लोकल लोगों की मानें तो यहां से NDA के उम्मीदवार को हराने में उनका बड़ा योगदान था। इस प्रदर्शन ने उन्हें युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया। फिर उन्होंने जन सुराज जॉइन कर ली। हालांकि आनंद मिश्रा के चलते 2024 के लोकसभा चुनाव में हुई हार से सबक लेते हुए BJP ने 2025 के विधानसभा चुनाव में बक्सर सदर सीट से आनंद मिश्रा को अपना उम्मीदवार बनाया है। उनसे मिलने के लिए हम ‘कमल सेवा केंद्र’ पहुंचे। केंद्र पर उनकी टीम के करीब 30 वॉलंटियर काम करते मिले। आनंद की मानें तो बक्सर की जनता की समस्याओं से निजात के लिए वो सिंगल विंडो सिस्टम बनाएंगे। हमने तीन ब्राह्मण उम्मीदवारों और उनके बंटते वोट पर सवाल किया तो उनका जवाब मिला, ‘जनता ये सब देखकर वोट नहीं करेगी। मेरे पास विजन है। बक्सर को लेकर ब्लू प्रिंट है। ये शहर बनारस और पटना के केंद्र में है। नदी के किनारे है। साफ-साफ एक कॉरिडोर की तरह है, जिसे टूरिज्म से लेकर व्यापार तक के लिए सबसे मुफीद माना जा सकता है। मेरा मकसद यही है कि बक्सर देश की राजनीति के फलक पर दिखाई दे।‘ IPS की नौकरी भी तो देश की सेवा ही थी, उसे छोड़कर राजनीति करने के पीछे क्या वजह है? आनंद कहते हैं, ‘मैंने तीन साल में एक से एक जिलों की व्यवस्था ठीक की है। मुझे साफ-साफ दिखता है कि एक ब्यूरोक्रेट व्यवस्था लागू कर सकता है, लेकिन नेता व्यवस्था बनाते हैं।‘ मुझे बहुत दुख होता था कि मैं स्कूल नहीं खोल सकता, बस उसके संचालन की जिम्मेदारी ले सकता हूं। मैं अस्पताल की व्यवस्था पर बात कर सकता हूं लेकिन जहां जरूरत है वहां खोल नहीं सकता। जन सुराज: हमारी परिकल्पना बिहार में जनता का सुंदर राज
बीते 11 साल से कांग्रेस के जिलाध्यक्ष रहे हर्षवर्धन इस बार जन सुराज के प्रत्याशी हैं। उनके पिता प्रोफेसर केके तिवारी केंद्र में वित्त और विदेश मंत्री जैसे अहम पदों पर रह चुके हैं। कांग्रेस छोड़ने की वजह पूछने पर हर्षवर्धन कहते हैं, ‘मैं आज भी मन से गांधीवादी और नेहरु की विचारधारा का आदमी हूं लेकिन कांग्रेस अब NGO के हाथ में चली गई है। पुरानी कांग्रेस जैसा अब कुछ नहीं है।‘ हर्षवर्धन बक्सर सीट पर जन सुराज से उम्मीदवार हैं। वे खुद को जन सुराज का फाउंडिंग मेंबर बताते हुए कहते हैं, ‘जन सुराज की परिकल्पना बिहार में जनता का सुंदर राज स्थापित करने की है। पार्टी ने मुझ पर जो भरोसा जताया है, उसे पूरा करने के लिए मैं हर कार्यकर्ता के साथ मिलकर काम करूंगा।’
………………. ये खबर भी पढ़ें… ‘नेपाल न होता तो हम भूखे-प्यासे मर जाते’ रक्सौल का सीवान टोला गांव। नेपाल से इतना करीब कि लोग कमाने भी वहीं जाते हैं। यहां आपस में लोग इतने घुले-मिले हैं कि भारत के दीपनारायण पटेल और नेपाल के लाल बाबू पटेल एक दलान में बैठे मिल जाते हैं। ये सीवान टोला का एक पहलू है। दूसरा पहलू ये कि यहां के लोगों को सरकार से बहुत शिकायतें हैं। गांव की लीलावती कहती हैं, ‘यहां न नाली है, न रोड। हम लोग नेपाल से पानी लाकर पी रहे हैं। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…  

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