उत्तराखंड में गोवर्धन पूजा आज:श्रीकृष्ण ने की थी पर्व की शुरुआत, पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया शुभ मुहूर्त

उत्तराखंड में गोवर्धन पूजा आज:श्रीकृष्ण ने की थी पर्व की शुरुआत, पवन कृष्ण शास्त्री ने बताया शुभ मुहूर्त

गोवर्धन पूजा का पर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा शुरू की गई परंपरा है, जिसे आज उत्तराखंड के कई जिलों में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। इस खास अवसर पर दैनिक भास्कर एप ने कथावाचक पवन कृष्ण शास्त्री से बातचीत की। जिसमें उन्होंने पूजा के मुहूर्त के साथ साथ इस पर्व का इतिहास भी बताया। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस दिन किए जाने वाले विशेष अनुष्ठानों का आखिर महत्व क्या है। सवाल-जवाब से पढ़िए पूरी बातचीत… सवाल: गोवर्धन पूजा की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई?
जवाब: विश्व में सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजमंडल में गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। उन्होंने इस पर्वत को 56 भोग अर्पित किए थे। तभी से यह पर्व सनातन परंपरा में स्थापित हुआ। भगवान श्रीकृष्ण के कारण ही आज हर व्यक्ति सुख, समृद्धि, धन धान्य और वैभव की प्राप्ति के लिए गोवर्धन पूजा करता है।” सवाल: पूजा कैसे और किन विधियों से की जाती है? जवाब: “श्रद्धालु इस दिन अपने घरों और मंदिरों में गोबर से गोवर्धन पर्वत का रूप बनाते हैं। इसके बाद दूध, दही, घी, शहद और पंचामृत से अभिषेक किया जाता है। पूजा के उपरांत वस्त्र अर्पित कर भगवान गोवर्धननाथ को 56 भोग का प्रसाद लगाया जाता है। परंपरा के अनुसार विशेष रूप से कढ़ी-चावल का प्रसाद बनाकर भगवान को अर्पित किया जाता है। इसे गोवर्धन पूजा का प्रमुख अंग माना जाता है।” सवाल: इस वर्ष गोवर्धन पूजा की तिथि और मुहूर्त क्या है?
जवाब: “इस वर्ष प्रतिपदा तिथि 21 अक्टूबर को सायंकाल 5:54 बजे प्रारंभ होगी और 22 अक्टूबर की रात्रि 8:16 बजे तक रहेगी। प्रतिपदा तिथि के उदय व्यापिनी होने के कारण पूजा 22 अक्टूबर को की जाएगी। शास्त्रों के अनुसार उदय व्यापिनी तिथि ही पूजन के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है। इसलिए 22 अक्टूबर को शाम 6:26 से रात 8:42 बजे तक का समय गोवर्धन पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। सवाल: गोवर्धन पूजा के अतिरिक्त इस दिन कौन-कौन से अन्य अनुष्ठान किए जाते हैं?
जवाब: “इस दिन गोवर्धन पूजा के साथ-साथ गौ पूजन और अन्नकूट महोत्सव का भी विशेष महत्व है। ये अनुष्ठान प्रकृति और जीव-जन्तुओं के सम्मान का प्रतीक हैं।” सवाल: गोवर्धन पर्वत की पूजा का ऐतिहासिक महत्व क्या है? जवाब: “भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के अभिमान को दूर करने और प्रकृति की शक्ति का सम्मान करने के लिए गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ की थी। तभी से यह पर्व प्रकृति पूजन का प्रतीक माना जाता है और आज भी श्रद्धालु इसे पूरे विश्वास और भक्ति के साथ मनाते हैं।”

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