दीपावली से पूर्व सरहदी जिले में परंपरा और आस्था का अनोखा संगम देखने को मिलता है। मिरासी और मांगणियार समाज के लोग इन दिनों मिट्टी और बांस की लकडिय़ों से पारंपरिक हटड़ी बनाने में जुटे हैं। यह हटड़ी न केवल धार्मिक प्रतीक है, बल्कि इसे घर में शांति, सद्भाव और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है। मान्यता है कि घर में हटड़ी होने से सभी मंगल कार्य बिना किसी बाधा के पूरे हो जाते हैं। दीपावली पर इसका पूजन विशेष रूप से किया जाता है। परंपरागत रूप से मिट्टी और बांस की लकडिय़ों से बनी हटड़ी ही सबसे शुभ मानी जाती है। माना जाता है कि ऐसी हटड़ी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचाती है और घर में रिद्धि-सिद्धि का वास कराती है। समय के साथ हटड़ी के स्वरूप में परिवर्तन आया है। अब बाजारों में कृत्रिम और धातु से निर्मित हटडिय़ां भी मिलने लगी हैं। मिट्टी की हटड़ी न मिलने की स्थिति में लोग इनका उपयोग करने लगे हैं, लेकिन पारंपरिक हटड़ी की मांग और महत्व आज भी बरकरार है।
आसान नहीं है हटड़ी बनाना
हटड़ी बनाना आसान कार्य नहीं है। मिरासी- मांगणियार परिवार दस दिन पहले से इसकी तैयारी शुरू कर देते हैं। लाल मिट्टी और घोड़े की लीद का मिश्रण बनाकर बांस की लकडिय़ों से ढांचा तैयार किया जाता है। इस ढांचे को भरकर सुखाया जाता है, फिर उस पर रंगीन चित्रकारी और सजावट की जाती है। हटड़ी में दीपक रखने के लिए अलग स्थान भी बनाया जाता है। बुजुर्ग बताते हैं कि पूर्व में ये परिवार दीपावली, विवाह या पुत्र जन्म जैसे शुभ अवसरों पर हटड़ी भेंट करते थे। बदले में उन्हें गुड़, नारियल, ओढऩी या अन्य भेंट दी जाती थी। इस परंपरा को निभाने वाले परिवार आज भी अपनी पीढिय़ों तक इस सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखे हुए हैं।


