गीता वाटिका में भक्तमाल कथा का भव्य आयोजन:कथा व्यास ने बताया- संतों ने अपने कर्म, भक्ति से ही भगवान के दर्शन पाएं

गीता वाटिका में भक्तमाल कथा का भव्य आयोजन:कथा व्यास ने बताया- संतों ने अपने कर्म, भक्ति से ही भगवान के दर्शन पाएं

गोरखपुर के गीता वाटिका में श्री राधा बाबा की 114वें जन्म महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित भक्तमाल कथा के तीसरे दिन कथा व्यास मदन मोहन दास ने बताया कि महापुरुषों और संतों ने अपने कर्म और निःश्वार्थ भक्ति को अपना कर ही भगवान के दर्शन पाएं। इस दौरान परिसर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहें। सभी पूरे भक्ति भाव से कथा को सुना। साथ ही रासलीला में मीरा बाई भक्ति लीला को देखकर भाव विभोर हो उठे। जीव भगवान के चरणों से ही अपनी यात्रा शुरू करता
कथा व्यास मदन मोहनदास ने तीसरे दिन की कथा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि भक्तमाल नामक ग्रंथ में वर्णित महापुरुषों और संतों ने अपने कर्म और निःश्वार्थ भक्ति के माध्यम से ही भगवान का साक्षात्कार किया है। भक्त निष्काम भक्ति करके ही भगवान की शरण में पहुंचता है। जीव भगवान के चरणों से ही अपनी यात्रा शुरू करता है और जीवन-यात्रा पूर्ण करते हुए फिर भगवान के चरणों में ही पहुंच जाता है। भक्त भगवान-नाम की पूंजी को साथ लेकर चलता
भगवान की शरण में पहुंचने के लिए ‘भगवान का नाम’ पाथेय के रूप में कार्य करता है, मतलब भक्त भगवान-नाम की पूंजी को साथ लेकर चलता है। जन्म से ही नेत्रहीन थे नाभादास
कथा व्यास ने बताया कि भक्तमाल ग्रंथ के रचनाकार नाभादास का जन्म प्रशंसनीय हनुमान वंश में हुआ था। उनके जीवन से जुड़ी एक अत्यंत आश्चर्यजनक बात यह थी कि वे जन्म से ही नेत्रहीन थे। माता-पिता ने वन में छोड़ा
माता-पिता के लिए यह अत्यंत कष्टदायक स्थिति थी। जब उनकी आयु पांच वर्ष की हुई, तब अकाल के दुःख से पीड़ित माता ने उन्हें वन में छोड़ दिया। दैवयोग से उसी मार्ग से दो महापुरुष कील्ह देव और अग्र देव उधर से गुजर रहे थे। बालक नाभा को अनाथ जानकर दोनों संतों ने उनसे प्रश्न किए, जिनका उन्होंने विवेकपूर्ण उत्तर दिया। वे दोनों महान सिद्ध संत थे। उन्होंने अपने कमंडल से जल लेकर नाभा के नेत्रों पर छिड़क दिया। संतों की कृपा से नाभा के नेत्र खुल गए और सामने दोनों संतों को उपस्थित देखकर उन्हें परम आनंद की अनुभूति हुई। अग्र देव ने राम मंत्र का उपदेश दिया
दोनों सिद्ध महापुरुषों के दर्शन पाकर नाभा उनके चरणों में गिर पड़े और उनके नेत्रों से आंसू बहने लगा। कृपा करके दोनों संत बालक नाभा को अपने साथ ले आए। उसके बाद कील्ह देव की आज्ञा पर अग्र देव ने उन्हें राम मंत्र का उपदेश दिया और उनका नाम नारायण दास रखा। कथा को आगे बढ़ाते हुए कथा व्यास ने अत्यंत भावपूर्ण शब्दों में भक्त चंद्रहास की कथा का वर्णन किया। इसके साथ ही तुलसीदल, तुलसी की माला, भगवान के चरणामृत, भगवान के प्रति प्रेम से बहने वाले आंसू और कमंडल के जल की महिमा का विस्तार से वर्णन किया। मीरा बाई के भक्ति चरित लीला का भावपूर्ण प्रस्तुती कथा के बाद वृंदावन की श्रीरामजी शर्मा, निकुंज बिहारी की रास मण्डली की ओर से मीरा बाई के भक्ति चरित लीला का भावपूर्ण प्रस्तुती किया गया। युगल छवि की आरती के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना नदी के तट पर रासलीला रचाई। उनकी मनमोहक झांकी ने मन मोह लिया। रासलीला में भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य उपासिका मीरा बाई के भक्ति-चरित्र का भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण किया गया। मीरा बाई ने भगवान श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मान लिया था। इसी भाव को उन्होंने अपने पद में इस प्रकार व्यक्त किया “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई। जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई॥”

​ 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *