सुप्रीम कोर्ट में जनवरी के धमाकेदार रहने के आसार, 50 हजार लोग कर रहे एक फैसले का इंतजार

सुप्रीम कोर्ट में जनवरी के धमाकेदार रहने के आसार, 50 हजार लोग कर रहे एक फैसले का इंतजार

अपनी खट्टी-मीठी यादों के साथ साल 2025 विदाई की ओर है, जबकि साल 2026 के स्वागत की तैयारियां चल रही हैं। अगले पांच दिनों के बाद हम नए साल में प्रवेश कर जाएंगे, जो कई मायनों में महत्वपूर्ण है। नए साल 2026 में जहां 2025 के महत्वपूर्ण मामलों के निस्तारण की संभावना है, वहीं कुछ ऐसे मामले भी हैं, जो कानूनी दांव-पेच के साथ लोगों की जिंदगी पर खास प्रभाव डालेंगे। इस आर्टिकल में हम आपको सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन ऐसे 10 मामलों के बारे में बताएंगे, जो आने वाले साल में भी आपकी जिंदगी और संवेदनशीलता पर खास प्रभाव डालने वाले हैं।

ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम को संवैधानिक चुनौती

2026 में सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन गेमिंग के प्रचार और विनियमन अधिनियम 2025 को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई होगी। एक गेमिंग कंपनी ने अदालत में याचिका दायर कर सरकार की शक्ति पर सवाल उठाया है। कंपनी का कहना है कि रमी और पोकर जैसे स्किल वाले खेलों को जुए की तरह देखना गलत है। याचिका में मांग की गई है कि जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता है तब तक इन खेलों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाए। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की जनवरी में सुनवाई होगी।

रेलवे जमीन पर कब्जे का मामला

यह मामला गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती और इंदिरा नगर से जुड़ा है। यहां रेलवे की लगभग 29 एकड़ जमीन पर लोगों ने अतिक्रमण कर अपने घर बना रखे हैं। प्रशासन के अनुसार यहां कुल 4,365 अवैध कब्जे पाए गए थे। इसके बाद हाई कोर्ट ने 10 जनवरी 2017 को जमीन खाली करने के आदेश दे दिए थे और लोगों को नोटिस भेज दिए गए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 50 हजार लोगों को एक साथ बेघर करने की चिंता पर हाईकोर्ट के इस आदेश पर रोक लगा दी थी। अब इस मामले की जांच जनवरी में होने की संभावना है।

धर्मांतरण विरोधी कानूनों का मामला

देश के कई राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन कानूनों की वजह से लोगों की धार्मिक आजादी पर असर पड़ रहा है। अदालत ने ऐसे कानून बनाने वाले राज्यों से इस पर जबाब मांगा है। जहां सुप्रीम कोर्ट को यह कहा गया है कि गुजरात हाईकोर्ट ने अपने राज्य के धर्मांतरण कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने भी अपने कानून के एक हिस्से पर रोक लगाई है। अब इस पूरे मामले की अगली सुनवाई जनवरी में होने वाली है।

जज यशवंत वर्मा से जुड़ा मामला

इलाहबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर आग लगने के बाद वहां से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने का मामला सामने आया था। इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक समिति बनाई। यशवंत वर्मा ने इस समिति के गठन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनका कहना है कि उनके खिलाफ जांच शुरू करने में सही कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। पिछली सुनवाई में अदालत ने लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर इसे लेकर जवाब मांगा था।

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वोटर लिस्ट की विशेष जांच (SIR) का मामला

चुनाव आयोग ने बिहार समेत कई राज्यों में वोटर लिस्ट की विशेष जांच कराने का फैसला लिया है। इस फैसले पर कुछ याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। हालांकि अदालत ने फिलहाल इन याचिकाओं का सुनवाई के बाद भी इस SIR की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है। बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया पूरी होने के बाद अब दूसरे राज्यों में यह प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह मामला भी जनवरी में सुना जाएगा।

BNS की 152 धारा को लेकर विवाद

सुप्रीम कोर्ट में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152 को लेकर सवाल उठाए गए हैं। इस धारा के तहत अगर कोई व्यक्ति देश की एकता, अखंडता या सुरक्षा के खिलाफ कुछ बोलता है या किसी तरह की एक्टिविटी करता है तो उसे कड़ी सजा देने का प्रावधान है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून पुराने राजद्रोह कनून जैसा ही है, जिसे पहले ही खत्म किया जा चुका है। सरकार पर आरोप लगाया गया है कि उसी पुराने कानून को नया नाम देकर लागू कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नोटिस जारी कर दिया है और इससे पहले चल रहे एक केस के साथ जोड़ भी दिया गया है।

इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति को लेकर विवाद

अदालत में चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम, 2023 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस कानून के तहत अब इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति की प्रोसेस को बदल दिया गया है और इसमें देश के CJI को हटा दिया गया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि पहले सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि इलेक्शन कमिश्नरों की नियुक्ति एक स्वतंत्र समिति करे, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता शामिल हों। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि यह कानून सही है या नहीं।

आवारा कुत्तों का विवाद

दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। जुलाई में कुत्तों के हमलों से जान चले जाने के मामले सामने आए, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संज्ञान में लिया। शुरुआत में कोर्ट ने नगर निगम को आठ हफ्तों के अंदर सभी कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखने के आदेश दिए थे। लेकिन इस फैसले का एनिमल लवर्स ने कड़ा विरोध किया जिसके बाद इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपा गया। उसके बाद कोर्ट ने फैसला बदलते हुए कहा कि पहले कुत्तों का टीकाकरण और नसबंदी की जाएगी, उसके बाद उन्हें छोड़ दिया जाएगा। अब 7 जनवरी को अदालत आवारा कुत्तों से जुड़े नियमों पर उठाई गई आपत्तियों पर सुनवाई करेगी।

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IHFL का घोटाला

इंडीबल्स हाउसिंग फाइनेंस लिमिटेड (सम्मान कैपिटल) से जुड़े बड़े घोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनवरी में सुनवाई होगी। कंपनी के प्रमोटरों पर पैसों में हेरफेरी और कानूनों का पालन नहीं करने का आरोप लगाया गया है। इस मामले में कोर्ट ने CBI को बड़े घोटालों के मामलों में हुई गड़बड़ियों की जांच के लिए एक स्पेशल टीम बनाने के आदेश दिए। इसके साथ ही अदालत ने सीबीआई और सेबी से इस मामले में ढील बरतने को लेकर सवाल भी खड़े किए। कोर्ट ने अब सीबीआई, सेबी, ईडी और एसएफआईओ को आपस में मिलकर पूरे मामले की गहराई से जांच करने के आदेश दिए हैं।

वक्फ के नए नियम के लेकर विवाद

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर बड़ा विवाद चल रहा है। याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को चुनौती देते हुए कहा कि यह मुस्लिम समुदाय के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप करता है। सितंबर में कोर्ट ने इस कानून के खासकर उन प्रावधानों पर रोक लगा दी थी, जिनसे जिला कलेक्टरों को वक्फ संपत्तियों पर बड़ा अधिकार दिया जाता था और वक्फ बनाने के लिए इस्लाम का पालन करने की पांच साल की अवधि जरूरी बनाया जाता था।

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