सुहागिनों का दर्द : दाम ने छीनी हमारी पहचान, चांदी बिछुड़ी-पायजेब भी हो गए पहुंच से दूर

सुहागिनों का दर्द : दाम ने छीनी हमारी पहचान, चांदी बिछुड़ी-पायजेब भी हो गए पहुंच से दूर

रतलाम। जहां चांदी के दाम रोज़ नए रिकॉर्ड बनाते जा रहे हैं, वहीं सुहागिन की पहचान मानी जाने वाली बिछुड़ी और पायजेब आम महिलाओं की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। दाम में हर दिन हो रहे उछाल के बाद सुहागिन की पहचान भी छीन रही है। भारतीय परंपरा में विवाहित महिला के सम्मान और सौभाग्य की प्रतीक बिछुड़ी और पायजेब आज मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं।

पिछले साल तक जो बिछुड़ी 400 से 1000 रुपए में मिल जाती थी, आज वही 800 से 2000 रुपए तक बिक रही है। दाम में उछाल इतना गया हैं कि पायजेब के दाम सीधे दोगुने हो चुके हैं। यानी सुहाग की निशानी अब जरुरत नहीं, लग्ज़री आइटम बनती जा रही है। ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में, जहां आज भी बिछुड़ी को विवाह के बाद अनिवार्य माना जाता है, वहां महिलाएं मजबूरी में या तो नकली गहनों का सहारा ले रही हैं या फिर सामाजिक दबाव के बावजूद बिना बिछुड़ी के रहने को मजबूर हैं। यह महज़ आर्थिक समस्या नहीं, बल्कि सांस्कृतिक अपमान है।

दाम के चलते हो रहा असर

बाजार विशेषज्ञों के अनुसार चांदी के बढ़ते दाम, कारीगरों की मेहनत और बिचौलियों की मनमानी ने आम महिलाओं की भावनाओं को कुचल दिया है। नीतियां रोटी-कपड़ा-मकान की बात तो करती हैं, लेकिन संस्कृति और परंपरा पर पड़ रही मार पर न सरकार बोल रही है, न ही बाजार जवाबदेह है। अगर दाम में उछाल का यही हाल रहा, तो आने वाली पीढ़ियांबिछुड़ी और पायजेब को पहनकर नहीं, सिर्फ़ किताबों और तस्वीरों में देख पाएंगी।

खरीदी बेहद कम

रोज भाव में बड़े बदलाव के कारण ग्राहकी कमजोर हो गई है। पहले बिछुड़ी लेने के लिए मुहर्त नहीं देखा जाता था, अब बड़ा बदलाव यह आ गया बढ़ते दाम के चलते खरीदी बेहद कम हो गई है।

– सौरभ सोनी आभूषण विक्रेता

यह सुहाग की पहचान

बिछुड़ी पहनना हमारे यहां सुहाग की पहचान है, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि घर का खर्च चले या बिछुड़ी आए। दोनों एक साथ मुमकिन नहीं। सुहाग की निशानी पहनना खुशी देता है और इस बढ़ती चांदी के भाव बाद में आर्टिफिशियल आभूषण पहनने को मजबूर कर रहा है।

-सविता सोलंकी, गृहणी, आलोट

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