फिल्म आजाद भारत 2 जनवरी को रिलीज होने जा रही है और यह नीरा आर्य की बायोपिक है, जो साहस, देशभक्ति और प्रेरणा से भरी कहानी है। इस फिल्म की खास बात यह है कि रूपा अय्यर ने न सिर्फ इसे डायरेक्ट किया है, बल्कि प्रोड्यूसर और एक्टर भी हैं। आजाद भारत उन अनकहे इतिहासों को सामने लाती है, जहां महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन की आहुति देश के लिए दी। इस फिल्म में इंदिरा तिवारी ने एक वीरांगना का किरदार निभाया है, जिनकी हिम्मत और संघर्ष आपको अंदर तक झकझोर देगा। यह फिल्म इतिहास, भावना और ऊर्जा का बेहतरीन मिश्रण है। दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान इंदिरा तिवारी ने अपने फिल्मी अनुभव, किरदार की चुनौतियों और संजय लीला भंसाली के साथ काम करने के बाद अब किसी से डर नहीं लगता जैसी बेबाक बातें कही हैं। फिल्म आजाद भारत में आप एक डायरेक्टर, प्रोड्यूसर और साथ ही एक एक्टर की भूमिका भी निभा रही हैं, कहानी के पीछे की सोच क्या है? रूपा अय्यर- मुझे लगता है कि मेरे अंदर बचपन से ही देशभक्ति की भावना थी, जो अब फिल्मों के जरिए मैं व्यक्त कर रही हूं। मुझे आजाद भारत फिल्म की प्रेरणा नेता जी की परपोती राजश्री चौधरी बोस से मिली। फिल्म बनाने में काफी अड़चनें भी आईं, लेकिन वो मुझसे कहती थीं कि ये फिल्म बीच में मत छोड़ो, ये लोगों तक पहुंचनी चाहिए। मेरा हौसला उनकी बातों से बना रहा। मैं उन अनसंग हीरो की कहानियां पर्दे पर लाना चाहती थी, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए। रिसर्च के दौरान मैंने पाया कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस द्वारा बनाई गई रानी झांसी रेजिमेंट का कभी ठीक से जिक्र नहीं हुआ है, किताबों में भी बहुत थोड़ा-बहुत ही लिखा गया है। इसके लिए मैंने आईएनए के वेटरन्स से मुलाकात की, वहां से फिर एक फिक्शनल नेरेशन के जरिए स्टोरी तैयार की। ये उन महिलाओं की कहानी है जिन्होंने नेता जी के नेतृत्व में भारत की आजादी के लिए अपना घर-बार छोड़कर बटालियन जॉइन की और देश के लिए मर-मिटने को तैयार हो गईं। आप इस फिल्म में स्वतंत्रता सेनानी सरस्वती राजमणि का किरदार निभा रही हैं, कितना चैलेंजिंग था ये रोल आपके लिए? इंदिरा तिवारी- मैं कहूंगी कि फिल्म की स्टोरी जानने के बाद पीछे देखने का सवाल ही नहीं बनता था। तुरंत मैंने फिल्म के लिए हां कह दी थी। लेकिन हां, फिजिकली ये किरदार मेरे लिए बहुत चैलेंजिंग था। कई सीन के शूट के दौरान मुझे गंभीर चोटें भी आईं। ऐसा लग रहा था कि अगर हमारी फौज में इस वक्त भर्ती होती, तो हम तुरंत सेलेक्ट हो जाते, क्योंकि वैसी ही हमारी ट्रेनिंग हो रही थी। घुड़सवारी, बंदूक चलाने से लेकर भागकर पेड़ पर चढ़ना सब कुछ मैंने इस फिल्म में किया है। हैरानी होती है कि आज शूट के दौरान हमें कोई दिक्कत होती है तो मदद के लिए लोग होते हैं, लेकिन उन महिलाओं के लिए कोई नहीं था। चोट लगने पर वो उस पर मिट्टी लगाकर दर्द सहन किया करती थीं और इतनी मजबूत थीं कि उनकी एक आवाज से ही ब्रिटिशर दुम दबाकर भाग जाते थे। शूट के दौरान कोई ऐसा सत्य घटना पर आधारित सीन, जिसने आपको उस सीन को शूट करते समय काफी भावुक कर दिया हो? इंदिरा तिवारी- देखिए, किताबों में तो लिखा है कि वो वहां पहुंच गईं, फिर ये हुआ, वो हुआ। लेकिन इतनी आसानी से थोड़ी चीजें हुई होंगी। पीरियड के दर्द में भी वो दुश्मनों से लड़ने के लिए तैयार रहती थीं। जिन पर ये बायोपिक है नीरा आर्य वो नेता जी को बचाने के लिए अपने पति को मार देती हैं। जेल में उनके ब्रेस्ट काट दिए जाते हैं। जेल से निकलकर वो सड़कों के किनारे बैठकर फूल बेचकर अपना पालन-पोषण करती हैं। बहुत ऐसे मोमेंट्स आए इस फिल्म को शूट करते हुए, जहां मैं काफी इमोशनल हो गई थी। संजय लीला भंसाली के साथ काम करने का सपना हर एक एक्टर का होता है और आप वो ड्रीम जी चुकी हैं, कैसा एक्सपीरियंस था? इंदिरा तिवारी- इंदिरा तिवारी- मुझे लगता है कि अपनी जिंदगी में हर कलाकार को एक बार जरूर भंसाली सर के साथ काम करना चाहिए। ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में काम करके उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वो बस आपसे एक ही चीज चाहते हैं और वो है कि आप चीजों को ग्रांटेड न लें। जो एटिट्यूड आपका फिल्म ऑडिशन के दौरान था, वही एटिट्यूड आपका फिल्म करने के दौरान भी होना चाहिए। मेरा सौभाग्य है कि मैं उनके साथ एक प्यारा रिश्ता बना पाई हूं। जिस तरह से वो नोट्स देते थे और उनकी सोच में जो क्लैरिटी होती थी, वो वाकई काबिल ए तारीफ थी। जिसकी वजह से आज भी चाहे वो फिल्म ब्लैक हो या खामोशी, लोग उन्हें देखना पसंद करते हैं। भंसाली सर के साथ काम करने के बाद अब किसी से डर नहीं लगता।


