Narcolepsy Symptoms: दिन में नींद आना आलस नहीं! हो सकती है ये खतरनाक बीमारी, डॉक्टर से जानें इससे बचने के उपाय

Narcolepsy Symptoms: दिन में नींद आना आलस नहीं! हो सकती है ये खतरनाक बीमारी, डॉक्टर से जानें इससे बचने के उपाय

Narcolepsy Symptoms: नार्कोलेप्सी एक ऐसी न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, जिसमें दिमाग नींद और जागने के सही समय को कंट्रोल नहीं कर पाता। आसान शब्दों में कहें तो इसमें इंसान को दिन में बार-बार और अचानक नींद आ जाती है, चाहे उसने रात में पूरी नींद ही क्यों न ली हो। डॉ. जय जगन्नाथ के मुताबिक, यह बीमारी लगभग हर 2000 लोगों में से 1 व्यक्ति को होती है और ज्यादातर मामलों में यह 10 से 30 साल की उम्र के बीच शुरू होती है।

नार्कोलेप्सी के प्रकार

नार्कोलेप्सी दो तरह की होती है:

  • टाइप-1 नार्कोलेप्सी (कैटाप्लेक्सी के साथ): इसमें अचानक मांसपेशियों में कमजोरी आ जाती है। यह अक्सर तब होता है जब व्यक्ति बहुत हंसता है, गुस्सा करता है या किसी भावनात्मक स्थिति में होता है। इस दौरान इंसान के हाथ-पैर ढीले पड़ सकते हैं, बोलने में लड़खड़ाहट आ सकती है या वह अचानक गिर भी सकता है, लेकिन होश बना रहता है।
    • टाइप-2 नार्कोलेप्सी (कैटाप्लेक्सी के बिना): इसमें दिन में ज्यादा नींद आती है, लेकिन मांसपेशियों की अचानक कमजोरी नहीं होती। इसलिए कई बार इसकी पहचान देर से हो पाती है।

    इसके आम लक्षण

    • दिन में बहुत ज्यादा नींद आना
    • बात करते-करते या खाना खाते समय नींद आ जाना
    • स्लीप पैरालिसिस- सोते या जागते समय शरीर हिल न पाना
    • सोते या जागते वक्त डरावने या सपनों जैसे दृश्य दिखना
    • रात में ठीक से नींद न आना

    बिना होश के काम करना, जैसे टाइप करना या लिखना और बाद में याद न रहना शामिल है। डॉ. जगन्नाथ बताते हैं कि किसी में लक्षण हल्के हो सकते हैं, तो किसी में इतने ज्यादा कि पढ़ाई, नौकरी और रिश्तों पर असर पड़ने लगता है।

    नार्कोलेप्सी क्यों होती है?

    इस बीमारी का एक पक्का कारण अभी तक नहीं पता, लेकिन रिसर्च से कुछ बातें सामने आई हैं। टाइप-1 नार्कोलेप्सी में दिमाग के एक केमिकल हाइपोक्रीटिन (ओरेक्सिन) की कमी पाई जाती है। कई बार शरीर की इम्यून सिस्टम ही इसे बनाने वाली कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा देती है। टाइप-2 में हाइपोक्रीटिन सामान्य होता है, और इसके कारण अभी खोजे जा रहे हैं। तनाव, इंफेक्शन या हार्मोन इसमें भूमिका निभा सकते हैं।

    जांच कैसे होती है?

    डॉक्टर पहले मरीज की नींद और मेडिकल हिस्ट्री समझते हैं। इसके बाद स्लीप टेस्ट (पॉलीसोमनोग्राफी) और MSLT टेस्ट किए जाते हैं, जिससे पता चलता है कि व्यक्ति कितनी जल्दी सो जाता है और नींद का पैटर्न कैसा है।

    इलाज और जीवनशैली

    डॉक्टर मनोज जांगिड़ के मुताबिक नार्कोलेप्सी का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसे कंट्रोल किया जा सकता है। दवाइयों से जागरूकता बढ़ाई जाती है और कैटाप्लेक्सी, स्लीप पैरालिसिस जैसी समस्याएं कम होती हैं। साथ ही, समय पर सोना-जागना, दिन में थोड़ी देर की पावर नैप, एक्सरसाइज, हेल्दी खाना, कम कैफीन और शराब से दूरी बहुत मदद करती है।

    नार्कोलेप्सी के साथ जीवन

    सही इलाज और समझदारी से नार्कोलेप्सी के साथ भी लोग एक सामान्य और खुशहाल जिंदगी जी सकते हैं। अगर आपको लगता है कि ये लक्षण आपमें हैं, तो खुद से अनुमान लगाने के बजाय डॉक्टर से सलाह जरूर लें। सही जानकारी और सही देखभाल ही सबसे बड़ा इलाज है।

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