जालंधर | फुल्लर्वान गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल की छात्राओं द्वारा गाई सरस्वती वंदना के साथ श्री देवी तालाब मंदिर परिसर में बाबा हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन के दूसरे दिन सीनियर वोकल कैटेगरी के मुकाबले शुरू हो गए। ठुमरी कैटेगरी की प्रतियोगिता में देश भर से आए 9 युवा उम्मीदवारों ने भाग लिया। इसमें कोलकाता के रहने वाले सागनिक बसक ने पहला, गाजियाबाद की धरा खरे ने दूसरा तो ओडिशा के आशीष नायक ने तीसरा स्थान हासिल किया। इस दौरान श्री गुरु तेग बहादुर जी को समर्पित गुरबानी शबद का भी गायन किया गया। बता दें कि संगीत महासभा की ओर से इस बार 150वां संगीत सम्मेलन श्री गुरु तेग बहादुर जी की कुर्बानी को समर्पित किया गया है। बाबा हरिवल्लभ की कृपा से जीता सीनियर कैटेगरी में तीसरा स्थान प्राप्त करने वाले आशीष, मूल रूप से ओडिशा के रहने वाले हैं। उनके पिता एक संगीत शिक्षक थे, जिनसे उन्होंने पांच वर्ष की उम्र में ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। वर्तमान में वे पंडित साजन मिश्रा से संगीत की शिक्षा ले रहे हैं। प्रतियोगिता में उन्होंने बनारस घराने की पारंपरिक शैली में राग बागेश्री की प्रस्तुति दी। इसके साथ ही वे इन दिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी से संगीत में पीएचडी कर रहे हैं। आशीष बताते हैं कि वे पिछले वर्ष भी इस समारोह में शामिल हुए थे और इस बार तीसरा स्थान प्राप्त करने को वे बाबा हरिवल्लभ की कृपा मानते हैं। पहली बार कंपीटिशन में हिस्सा लिया सीनियर वोकल कैटेगरी में पहला स्थान हासिल करने वाले कोलकाता के सागनिक बसक ने राग चिन्नयत की सशक्त प्रस्तुति देकर निर्णायकों का दिल जीत लिया। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पढ़ाई कर रहे सागनिक ने महज पांच वर्ष की उम्र से संगीत की साधना शुरू कर दी थी। वे बताते हैं कि उनके पिता ने सबसे पहले उन्हें सारेगामा की धुन सिखाई, जिसके बाद से उनका रियाज निरंतर चलता रहा। वर्तमान में वे श्रीजाय से संगीत की शिक्षा ले रहे हैं। बाबा हरिवल्लभ संगीत प्रतियोगिता में यह उनकी पहली प्रस्तुति थी और प्रथम स्थान प्राप्त कर वे बेहद प्रसन्न नजर आए। नवांशहर के आदिल शर्मा अपने साथ 700 साल पुरानी मातंग वीणा लेकर आए। सीनियर वोकल कैटेगरी में भाग लेते हुए आदिल ने बताया कि यह वीणा मातंग ऋषि से जुड़ी मानी जाती है। उनके पूर्वज राज उपासक थे। आदिल बताते हैं कि यह दो तारों वाली वीणा उनके लिए केवल एक वाद्य यंत्र नहीं, बल्कि एक अमूल्य धरोहर है। यह वीणा में भैंस की रीढ़ की हड्डी का इस्तेमाल होता है। इसी के साथ यह ऊंट के कूबड़ से बना होता है। इस वीणा का उपयोग विशेष रूप से वाक् सिद्धि के लिए किया जाता रहा है। उन्होंने मात्र बारह वर्ष की उम्र से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया। एक समय ऐसा भी आया जब यह विरासती वीणा खंडित हो गई। उसे ठीक करवाने के लिए वे शहर भर में घूमे, लेकिन कहीं समाधान नहीं मिला। बाद में जब उनके गुरु शिव कौल एक बार उनके घर आए, तो उन्होंने इस वीणा को ठीक किया। उसी दिन के बाद से आदिल शर्मा इस वीणा को हर मंच, हर प्रस्तुति में अपने साथ रखते हैं।


