Save Aravalli : बांसवाड़ा. अपनी हरियाली और मूसलाधार बारिश के लिए ‘राजस्थान के चेरापूंजी’ के रूप में
विख्यात वागड़ अंचल (बांसवाड़ा-डूंगरपुर) में भी अरावली पर्वतमाला का काफी हिस्सा मौजूद है। यहां कुछ ऊंची पहाड़ियां हैं तो कुछ चोटियां और ज्यादातर टीलेनुमा शृंखलाएं। अरावली पर्वतमाला को लेकर हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय व नए नियमों में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले भूभाग को अरावली पर्वत शृंखला का ‘पहाड़’ न मानने की व्याख्या ने बांसवाड़ा जिले के ईको सिस्टम पर संकट खड़ा कर दिया है।
स्थानीय लोग और पर्यावरणविद चिंता में हैं कि यदि अरावली की इन पहाड़ियों के साथ छेड़छाड़ हुई, तो यह हरा-भरा अंचल मरुस्थल में तब्दील हो सकता है। बांसवाड़ा जिले की पहचान यहां होने वाली औसतन 900 एमएम से अधिक बारिश है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस भारी बारिश का मुख्य कारण यहां स्थित अरावली की सघन पहाड़ियां हैं।
जिले के लगभग 70 प्रतिशत पहाड़ 100 मीटर से कम ऊंचाई के हैं। अब नए नियमों की आड़ में यदि इन ‘छोटे’ पहाड़ों को कानूनी संरक्षण से बाहर कर खनन या अन्य गतिविधियों की अनुमति दी गई, तो पारिस्थितिक तंत्र पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगा।

अरावली का कठोर भाग नहीं होता तो हिमालय नहीं बनता – विशेषज्ञ
विशेषज्ञों का कहना है कि अरावली पर्वत श्रृंखला हिमालय से भी पुरानी है। अरावली का कठोर भाग नहीं होता तो हिमालय नहीं बनता। इसके निचले भाग में इंडो ऑस्ट्रेलियन प्लेट है, ऊपर है सायबेरिन प्लेट, इस पर यूरेशियन प्लेट है। इनके बीच टेथिस सागर था, जिसके कारण ही हिमालय बना था। अरावली अरद्य युग की रचना है, जबकि हिमालय तृतीय युग की। यही कारण है कि अरावली को ‘गोंडवानालैंड’ भी कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु : इसलिए जरूरी है संरक्षण
प्राचीनतम श्रृंखला : अरावली विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रेणियों में से एक है।
जल संचयन : वर्षा जल को रोककर भूजल स्तर बनाए रखने में सहायक।
जैव विविधता : दुर्लभ वनस्पति और वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास।
रोजगार : आदिवासी समाज की आजीविका का मुख्य स्रोत।
फैक्ट फाइल
692 किलोमीटर कुल लंबाई अरावली की।
550 किलोमीटर लम्बी अरावली शृंखला राजस्थान में।
353.7 किलोमीटर क्षेत्रफल है बांसवाड़ा में इस रेंज का।
8 प्रतिशत भू-भाग पर बांसवाड़ा जिले में सिर्फ अरावली का।
40 से अधिक पहाड़ अरावली रेंज के सामरिक महत्व के।
थार के रेगिस्तान को रोकने वाली ‘दीवार’ पर प्रहार
अरावली पर्वतमाला केवल पत्थर के ढेर नहीं, बल्कि थार मरुस्थल के विस्तार को रोकने वाली एक प्राकृतिक दीवार है। यह पश्चिम से आने वाली गर्म और शुष्क हवाओं को रोककर पूर्वी राजस्थान और मध्य भारत को रेगिस्तान बनने से बचाती है। शोधार्थियों का तर्क है कि पहाड़ केवल धरातल के ऊपर नहीं, बल्कि जमीन के अंदर भी 100 मीटर तक फैले होते हैं। ऐसे में ऊंचाई के आधार पर पहाड़ की परिभाषा तय करना तर्कसंगत नहीं है।
बांसवाड़ा में अरावली की चोटियों पर बने धर्मस्थल
1- अंदेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर, नौगामा।
2- आदिवासियों की शहादतस्थली मानगढ़ धाम।
3- प्रसिद्ध शक्तिपीठ त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, तलवाड़ा।
4- माही रिवर बेसिन भी अरावली रेंज से गुजरता है।
आदिवासी संस्कृति और जल संरक्षण पर चोट
परंपरागत रूप से भील, मीणा, गरासिया और डामोर जैसे आदिवासी समुदाय इन्हीं जंगलों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। अरावली की ये श्रंखलाएं ही भूजल पुनर्भरण का काम करती हैं। क्षेत्र की बावड़ियां, कुएं और नदियां इसी पर्वतमाला की देन हैं।
राजस्थान की हमारी पहचान अरावली
राजस्थानियों की पहचान अरावली है। प्रदेश का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। कई किले और किलेदारों के प्रमुख ठिकाने आदि इसी के सरंक्षण में हैं। मानसून की दो में एक शाखा, जो कि बंगाल की खाड़ी से उठती है, अरावली पर्वत श्रंखला इसे रोककर पूर्वी राजस्थान में बरसने को मजबूर करती है। यदि उदयपुर संभाग की बात करें तो करीब 130 छोटे-बड़े पहाड़ हैं, जिन पर गढ़, महल, मंदिर, पुराने गोदाम, जेल आदि बने हुए हैं। हालांकि कई जगह अब स्कूल बन चुके हैं।
रंजीता यादव, शोधार्थी, जीजीटीयू, बांसवाड
3 राज्य बन जाएंगे रेगिस्तान
अरावली के साथ छेड़छाड़ हुई तो राजस्थान, पंजाब और गुजरात सबसे पहले रेगिस्तान बनेंगे। पहाड़ जमीन के अंदर भी गहराई तक होते हैं, केवल ऊंचाई देखकर उन्हें संरक्षण से बाहर करना घातक है।
कुसुम मीणा, शोधार्थी जीजीयूटी, बांसवाड़ा
पत्रिका एक्सपर्ट
मानव सभ्यता अरावली किनारे ही पनपी
अरावली की मुख्य धाराओं के किनारे मानव सभ्यता का उदभव हुआ है। महल, गढ़, मंदिर और हजारों वर्ष पहले बने देवालय आदि आज भी इसके गवाह हैं। अरावली का उद्भव प्री-कैम्रियन युग में हुआ है। यहां की आग्नेय चट्टानें सामारिक महत्व रखती हैं। यह भविष्य का भी सुरक्षा कवच है, इसे उजाड़ा नहीं जा सकता है।
प्रो. पी.आर. व्यास, सेवानिवृत्त आचार्य, एमएलएसयू, उदयपुर


