हरियाणा विधानसभा विंटर सेशन के बाद नेता प्रतिपक्ष पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा आज पत्रकारों से रूबरू होंगे, इससे पहले कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दावा किया है कि हरियाणा विधानसभा के पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा सरकार कांग्रेस द्वारा उठाए गए सवालों और जनहित के मुद्दों से भागती हुई दिखाई दी। हुड्डा ने सरकार के रुख पर कड़ी आपत्ति जताते हुए दावा किया कि उसने पूरे सत्र के दौरान चर्चा और प्रश्नों से परहेज किया। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष ने दावा किया, ‘यह पहली बार है कि कांग्रेस द्वारा पेश किया गया एक भी स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या अल्पावधि चर्चा प्रस्ताव का नोटिस स्वीकार नहीं किया गया। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि कांग्रेस ने हरियाणा के अधिकारों से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मुद्दों को उठाने के लिए प्रस्ताव के नोटिस दिये थे, लेकिन सरकार ने उनमें से किसी पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी। हुड्डा बोले- ये बड़ा मुद्दा पूर्व मुख्यमंत्री विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा का बयान सामने आया है. उन्होंने कहा है कि वो अरावली के मुद्दे पर हरियाणा विधानसभा सदन में कॉल अटेंशन मोशन लाना चाहते थे लेकिन उसकी अनुमति नहीं दी गई। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि अरावली मुद्दा हरियाणा के लिए एक बड़ा मुद्दा है और इसका सबसे ज्यादा असर भी हरियाणा पर ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार को सदन में बताना चाहिए था कि वो आगे क्या करने जा रही है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार का क्या रुख रहेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले को लेकर कोर्ट में रिव्यू पिटीशन डालनी चाहिए। सरकार को कोर्ट में रखनी चाहिए बात भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि इन सब बातों के बारे में हरियाणा सरकार को सदन को बताया जाना चाहिए था, लेकिन इस मुद्दे पर सदन में कोई चर्चा नहीं हुई। हुड्डा ने कहा कि अरावली पर अगर सरकार ने सही तरीके से स्टैंड नहीं लिया तो अरावली का जंगल ही खत्म हो जाएगा और प्रदूषण और भी बढ़ जाएगा। उन्होंने कहा कि ये बेहद ही गंभीर मामला है और हरियाणा सरकार को इस पर सुप्रीम कोर्ट के सामने सही तरीके से अपनी बात रखनी चाहिए। विकास की आड़ में अरावली को खत्म करने की साजिश हालांकि ये कोई पहला मौका नहीं है जब अरावली मामले को लेकर भूपेंद्र हुड्डा ने नाराजगी जाहिर की है। कुछ दिन पहले ही उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया था जिसमें उन्होंने लिखा था अरावली पर प्रहार बंद करो, बच्चों के भविष्य पर वार मत करो। अरावली पर्वत देश के मानचित्र पर केवल एक लकीर नहीं बल्कि हमारी ‘जीवनरेखा’ है। गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली तक फैली यह सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला को विकास की आड़ में खत्म करने की साजिश हो रही है। यह विकास नहीं, विनाश को सीधा न्योता है इसके आगे उन्होंने लिखा ‘100 मीटर से ऊंचे पहाड़ों को ही अरावली मानने के नए नियम 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले वन क्षेत्रों को खनन माफियाओं के हवाले करने का हथकंडा है। यह विकास नहीं, विनाश को सीधा न्योता है। अरावली हमारा प्राकृतिक सुरक्षा कवच है, इसे बर्बाद नहीं होने देंगे। अरावली की नई परिभाषा से लोगों में नाराजगी दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव को माना है जिसमें कहा गया है कि वे पर्वत जो 100 मीटर से ऊपर हैं, उन्हें ही अरावली पर्वत का हिस्सा माना जाएगा। ऐसे में अब लोग इसे पर्यावरण के लिहाज से खतरनाक मान रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने खनन को रोकने के मकसद से अरावली पहाड़ियों की परिभाषा पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक पैनल की सिफारिशों को मान लिया। नई परिभाषा के मुताबिक कोई भी जमीन का हिस्सा जो स्थानीय ऊंचाई से 100 मीटर या उससे ज़्यादा ऊंचाई पर है, उसे उसकी ढलानों और आस-पास की जमीन के साथ अरावली पहाड़ियों का हिस्सा माना जाएगा। यानी 100 मीटर से ऊंची की जमीन को नहीं माना जाएगा। कोर्ट के फैसले के बाद से यह मुद्दा गरमा गया है। सोशल मीडिया पर भी लोग सेव अरावली को लेकर अभियान चला रहे हैं। राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली तक सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर हंगामा मचा हुआ है।


