‘स्त्री : देह से आगे’: नारी समझे शक्ति, संस्कारों के लिए जरूरी जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा- गुलाब कोठारी

‘स्त्री : देह से आगे’: नारी समझे शक्ति, संस्कारों के लिए जरूरी जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा- गुलाब कोठारी

कोटा। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि मां शरीर के साथ आत्मा का भी पोषण करती है। हमारी शिक्षा मां के मर्म को समझाने वाली होनी चाहिए। शिक्षा जीवन मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। कहीं न कहीं शिक्षा से जीवन के मूल्य दूर हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पैकेज शिक्षा का आधार बन गया है। यह हमारे शास्त्रों के अनुकूल नहीं है। आज की शिक्षा न संवदेनशील बनाती है, न ही आत्मा को मजबूत करती है। इसलिए हमें स्त्री और पुरुष के मूल स्वरूप को पहचान कर शिक्षा देनी होगी। कोठारी ने सोमवार को कोटा में उनकी पुस्तक ‘स्त्री: देह से आगे’ पर विषय विवेचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही।

सैकड़ों की संख्या में नारी शक्ति पहुंची

पत्रिका समूह के संस्थापक श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित हो रहे कार्यक्रमों की शृंखला में सोमवार को हाड़ौती के कोटा और बूंदी में ‘स्त्री: देह से आगे’ पर विषय विवेचन कार्यक्रम आयोजित किया गया। कोटा में सुबह 10.30 बजे जवाहर नगर स्थित एलन सत्यार्थ-1 कैंपस ऑडिटोरियम में आयोजित कार्यक्रम में सर्दी और कोहरे के बीच कोटा, बारां और झालावाड़ जिले से सैकड़ों की संख्या में नारी शक्ति पहुंची।

संबोधन के बाद महिलाओं ने अपनी जिज्ञासाएं व्यक्त की, जिनका गुलाब कोठारी ने जवाब दिया। इससे पहले स्वागत संबोधन एलन के निदेशक गोविंद माहेश्वरी ने दिया। इसके बाद बूंदी में अपराह्न 3 बजे लंकागेट के पास स्थित गणगौर होटल एवं रिसोर्ट में इसी पर संवाद कार्यक्रम हुआ।

शास्त्र आत्मा की, शिक्षा शरीर की बात कर रहा

उन्होंने कहा कि शास्त्र नहीं कहता कि हम शरीर हैं। शास्त्र, वेद, उपनिषद कहते हैं कि शरीर मेरा घर है, समय के साथ बदलता जाएगा। शास्त्र जीवात्मा की बात करते हैं। केवल शिक्षा शरीर की बात करती है। मां प्रार्थना करती है कि अच्छी आत्मा उसके घर आए।

कार्यक्रम का उद्देश्य भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना

कोठारी ने कहा कि कार्यक्रम का ध्येय भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना ही है, जो समय के साथ धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है। समय के साथ परिवर्तन होता है। सभ्यता बदलती जा रही है। हम ऐसे दौर में जी रहे हैं कि प्रकृति से अलग होते जा रहे हैं। समाज का निर्माण स्त्री करती है, पुरुष नहीं करता।

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मातृत्व की दिव्यता का महत्व बताया

कोठारी ने मातृत्व की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि स्त्री को संतान के आने का आभास पहले हो जाता है। वह सपनों में जान लेती है कि जीव कहां से आ रहा है और उसका लक्ष्य क्या है। उसे तीनों कालों का ज्ञान होता है, जो पुरुष में नहीं है। वह जीव को इंसान बनाती है।

उन्होंने कहा कि कोई देवता यह काम नहीं कर सकता, लेकिन आज की मां शरीर तो बना रही है, आत्मा को संस्कारित नहीं कर पा रही। यही कारण है कि इंसान पशुवत व्यवहार कर रहा है। उन्होंने कहा कि स्त्री का संकल्प अटल होता है। वह अपने बच्चे और पति का शारीरिक और आध्यात्मिक पोषण करती है। जब वह खाना बनाती है तो उसका ध्यान केवल बच्चे के भविष्य पर होता है। मां का काम देना है, वह अपने लिए नहीं जीती।

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