लवासा सिटी को दी थी अवैध मंजूरी… हाईकोर्ट में जनहित याचिका खारिज, शरद पवार और अजित पवार को बड़ी राहत

लवासा सिटी को दी थी अवैध मंजूरी… हाईकोर्ट में जनहित याचिका खारिज, शरद पवार और अजित पवार को बड़ी राहत

महाराष्ट्र के पुणे के पास स्थित लवासा हिल सिटी परियोजना को लेकर चल रहा कानूनी विवाद एक बार फिर चर्चा में है। सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने शरद पवार और उनके परिवार के खिलाफ दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें अवैध अनुमतियां देने के आरोप में आपराधिक मामला दर्ज करने या सीबीआई (CBI) से जांच कराने की मांग की गई थी।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को लवासा परियोजना से जुड़े एक अहम मामले में दायर जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। इस याचिका में हाईकोर्ट से मांग की गई थी कि पुणे के लवासा क्षेत्र में निजी हिल स्टेशन के निर्माण को लेकर कथित अवैध मंजूरियों के मामले में शरद पवार, सुप्रिया सुले, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार और अन्य के खिलाफ पुलिस केस दर्ज करने या सीबीआई से जांच कराने के निर्देश दिए जाएं।

क्यों खारिज हुई याचिका?

मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति गौतम ए. अनखड़ की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता नानासाहेब जाधव की दलीलों को अपर्याप्त माना। कोर्ट ने कहा की याचिकाकर्ता अपने दावों के समर्थन में पुख्ता सबूत उपलब्ध कराने में विफल रहा है।

साथ ही हाईकोर्ट ने इस पर भी गौर किया कि यह प्रोजेक्ट लगभग दो दशक पुराना है। याचिकाकर्ता ने पहले भी ऐसी ही मांग की थी, जिसे 2022 में अत्यधिक देरी के आधार पर खत्म कर दिया गया था।

सुनवाई के दौरान एनसीपी के वरिष्ठ नेता शरद पवार के वकीलों ने तर्क दिया कि वर्तमान याचिका में वही आरोप दोहराए गए हैं जिन्हें अदालत पहले ही देख चुकी है, इसलिए इसे दोबारा सुनना न्यायसंगत नहीं है।

याचिकाकर्ता का क्या था आरोप?

याचिकाकर्ता वकील नानासाहेब जाधव ने दावा किया था कि लवासा प्रोजेक्ट को अनुमति देने में नियमों की अनदेखी की गई और राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने 2018 में पुणे पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनका आरोप था कि मामला बड़े नेताओं और अधिकारियों से जुड़ा होने के कारण पुलिस कार्रवाई नहीं कर रही है, इसलिए इसकी जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए।

क्या है लवासा प्रोजेक्ट विवाद?

रिपोर्ट्स के अनुसार, लवासा को देश के पहले निजी हिल स्टेशन के रूप में विकसित करने की परियोजना थी। पुणे के मुलशी घाट में वरसगांव बांध के पास करीब 25,000 एकड़ भूमि पर इसे बसाने की योजना थी। लेकिन इस पूरी परियोजना को तब बड़ा झटका लगा जब 2010 में पर्यावरण मंत्रालय ने नियमों के उल्लंघन के कारण यहां निर्माण कार्य रोक दिया।

2022 में हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि शरद पवार और सुप्रिया सुले का इस प्रोजेक्ट में ‘व्यक्तिगत हित’ और ‘प्रभाव’ नजर आता है। तब के सिंचाई मंत्री अजित पवार पर भी प्रक्रियागत चूक के आरोप लगे थे। हजारों करोड़ों के कर्ज के कारण यह प्रोजेक्ट दिवालिया हो गया और वर्तमान में एक खंडहर में तब्दील होता जा रहा है।

ऐसे में बॉम्बे हाईकोर्ट के इस ताजा फैसले के बाद शरद पवार, अजित पवार और सुप्रिया सुले पर लवासा मामले में लटक रही कानूनी तलवार फिलहाल हट गई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिना ठोस कानूनी आधार और सबूतों के आपराधिक जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता।

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