करोड़ों की फीस, घटता प्रॉफिट, बॉलीवुड इंडस्ट्री के सामने नई बड़ी चुनौती, अब कमाई पर लगेगा ब्रेक?

करोड़ों की फीस, घटता प्रॉफिट, बॉलीवुड इंडस्ट्री के सामने नई बड़ी चुनौती, अब कमाई पर लगेगा ब्रेक?

Production Costs And Star Fees: बॉलीवुड में बॉक्स ऑफिस पर किसी फिल्म की कमाई का अंजादा लगाना मुश्किल रहा है, क्योंकि कई बार ऐसा हुआ है कि जिस फिल्म पर उम्मीद की गई है, वहीं फिल्म फ्लॉप हो गई है। बता दें, 22 मार्च 2020 से कोरोना महामारी ने इन चुनौतियों को और भी बढ़ा दिया है लेकिन अब फिल्म निर्माता कह रहे हैं कि आज के घाटे की वजह क्रिएटिव नाकामियां कम, बल्कि टॉप आर्टिस्ट्स के फालतू खर्च ज्यादा होते हैं।

करोड़ों की फीस और घटता प्रॉफिट

बता दें, सक्सेसफुल फिल्म की रेस में कई एक्शन फ्रेंचाइजी के लिए फेमस प्रोड्यूसर रमेश तौरानी सीधे तौर पर कहते हैं, “ये प्रोडक्शन लागत के बारे में उतना नहीं है, जितना स्टार की फीस के बारे में है और हमें इसका भुगतान करने में काफी नुकसान झेलना पढ़ता है।”

इतना ही नहीं, फिल्ममेकर्स का कहना है कि आजकल एक्टर्स सेट पर अपने साथ दर्जनों लोगों का दल लेकर आते हैं, जिनमें मेकअप आर्टिस्ट, हेयरड्रेसर, स्टाइलिस्ट, जिम ट्रेनर और कई असिस्टेंट शामिल होते हैं। इन सभी का बिल लास्ट में प्रोडक्शन कंपनी को ही चुकाना पड़ता है। इसके अलावा, स्टार्स और उनके सपोटर्स को हर फिल्म के लिए $22.18 मिलियन (लगभग 180 करोड़) तक की भारी-भरकम फीस दी जाती है। इन फीस के ऊपर फर्स्ट-क्लास ट्रैवल, फाइव-स्टार होटलों में रुकना, कई प्राइवेट ट्रेलर और काम के कम घंटों जैसी कई अतिरिक्त मांगें अब नॉर्मल-सी बात हो गई हैं।

करोड़ों की फीस और घटता प्रॉफिट
करोड़ों की फीस और घटता प्रॉफिट ( सोर्स: X )

बॉलीवुड इंडस्ट्री के सामने नई बड़ी चुनौती

इस पर सीनियर प्रोड्यूसर मुकेश भट्ट ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा, “बड़ी सपोर्ट टीम, प्रीमियम ट्रैवल और लग्जरी अकोमोडेशन हमेशा बिना किसी क्रिएटीव प्रभाव के बजट को बहुत बढ़ा देते हैं। स्टार्स जिस तरह की डिमांड करते हैं, वो बहुत हाई होता है।”

दरअसल, डिस्ट्रीब्यूटर और ट्रेड एनालिस्ट राज बंसल ने इस पर कमेंट कर कहा, “एक एक्टर 10 से 15 स्टाफ मेंबर के साथ आता है। पहले, एक्टर को एक वैनिटी वैन शेयर करने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। फिर उन्होंने बड़े स्टार्स को एक-एक वैनिटी वैन देने का फैसला किया और ऐसे ही डिमांड बढ़ती गई।” एक फिल्म की शूटिंग के दौरान किराए पर लिए गए एक ट्रेलर की कीमत लगभग 15 लाख तक होती है और इंडस्ट्री में कुछ एक्टर्स के लिए, ज्यादा मांगना अब एक ‘स्टेटस सिंबल’ बन गया है।

हिट से ज्यादा फ्लॉप फिल्में

बॉलीवुड को हमेशा से ही एक हाई-रिस्क इंडस्ट्री माना जाता रहा है, जहां हिट से ज्यादा फ्लॉप फिल्में बनती हैं। लेकिन प्रोड्यूसर्स का कहना है कि स्टार-ड्रिवन लागत बॉक्स ऑफिस रिटर्न से कहीं ज्यादा होने से इंडस्ट्री का संतुलन बिगड़ गया है और महामारी के बाद ये नाजुक मॉडल और डगमगा गया, जब स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स ने फिल्में ज्यादा कीमतों पर खरीदीं, लेकिन जब वे डील्स खत्म हो गईं, तो प्रोड्यूसर्स को एक मुश्किल दौर का सामना करना पड़ा क्योंकि आय कम हो गई लेकिन एक्टर्स की डिमांड बनी रही और ये समस्या आज भी है।

आमिर खान
आमिर खान (सोर्स: X)

इस पर एक्टर-फिल्ममेकर आमिर खान ने भी प्रोड्यूसर्स पर इन खर्चों का बोझ डालने के लिए पहले भी स्टार्स पर कमेंट किया था। सितंबर में YouTube शो गेम चेंजर्स को दिए एक इंटरव्यू में आमिर ने कहा था, “आप करोड़ों में कमाते हैं। आपकी सेल्फ-रिस्पेक्ट कहां है?” इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि एक्टर्स की मांगों का ये भी असर पड़ता है कि स्टार्स एक-दूसरे के पर्क्स से बढ़कर काम करने की कोशिश करते हैं।

प्रोड्यूसर्स ने पार्टनरशिप-स्टाइल कम्पनसेशन मॉडल्स पर जोर दिया

इन परेशानियों का समाधान निकालने के लिए, प्रोड्यूसर्स ने पार्टनरशिप-स्टाइल कम्पनसेशन मॉडल्स पर जोर दिया है। मुकेश भट्ट ने कहा, “जब कोई फिल्म आगे बढ़ती है, तो हर कंट्रीब्यूटर को फायदा होना चाहिए। जब ये स्ट्रगल करती है, तो इसका बोझ सिर्फ प्रोड्यूसर पर नहीं होना चाहिए, जो शुरू से ही रिस्क उठाता है।” इस पर अक्षय कुमार और टाइगर श्रॉफ अभिनीत 2024 की साइंस फिक्शन एक्शन फिल्म ‘बड़े मियां छोटे मियां’ की लागत लगभग $42 मिलियन बताई गई थी और टिकट की खराब बिक्री के बाद, प्रोड्यूसर्स को कर्ज चुकाने के लिए अपनी प्रॉपर्टी गिरवी रखने तक की खबरें आईं थी।

बता दें कि इनमें से कई बाते गलत भी रही हैं, जैसे-एक्टर कार्तिक आर्यन ने 2023 की एक्शन-कॉमेडी ‘शहजादा’ के लिए अपनी फीस माफ कर दी थी, जो बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह पिट गई थी। आर्यन ने कहा, “अगर आपकी स्टार वैल्यू और पूरे प्रोजेक्ट की वैल्यू से पूरी टीम को प्रॉफिट होता है, तो मुझे लगता है कि यही करना सही है।” इस पर कुछ प्रोड्यूसर्स का तर्क है कि इंडस्ट्री को अपनी ज्यादतियों का सामना खुद करना चाहिए और लागत कम करने की मांग की है।

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