एग्जिट पोल में बिहार में NDA की सरकार बन रही है। 17 एजेंसियों के पोल ऑफ पोल्स में NDA को 154 सीटें मिलने का अनुमान है। महागठबंधन 84 सीटों पर सिमटता दिख रहा है। हालांकि, आजादी के बाद के 16 विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो पता चलता है कि 5% से ज्यादा या कम वोटिंग होने से सत्ता बदल जाती है। और इस बार वोटिंग 2020 की तुलना में 9.61% ज्यादा है। कुल 66.6% वोटिंग हुई है। आज के एक्सप्लेनर बूझे की नाहीं में…जानें बिहार में वोटिंग घटने या बढ़ने पर मौजूदा सरकार का क्या हुआ? सबसे पहले 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2020 तक हुए 16 चुनाव नतीजों और उनके असर पर देखते हैं- आजादी के बाद से बिहार में अब तक 16 विधानसभा चुनाव माने जाते हैं। चुनाव तो फरवरी 2005 में भी हुआ था, लेकिन उसके सियासी नतीजों को नहीं गिना जाता। तब नतीजे ऐसे आए थे कि राज्य में कोई सरकार बन न सकी और 8 महीने बाद दोबारा चुनाव कराने पड़े। 5% वोटिंग घटने या बढ़ने पर 4 बार बदली सरकार 73 साल के वोटिंग पैटर्न को देखें तो पता चलता है कि बिहार में जब भी 5% से ज्यादा मतदान बढ़ा या घटा है, तब लंबे समय से चल रही सत्ता बदल गई है। ऐसा 4 बार हुआ है। इसमें से 3 बार 5% से ज्यादा वोट बढ़ने पर बदलाव हुआ है तो एक बार 16% कम वोटिंग से हुआ है। हालांकि, 1-2% के कम-अधिक होने से वर्तमान सरकार रिपीट होती आई है। पहली बार: 1967 में पहली बार राज्य में गैर-कांग्रेसी सरकार 1967 के चुनाव में वोटिंग में 7% की बढ़ोत्तरी हुई थी। तब राज्य में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। हालांकि, सरकार अस्थिर रही। महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। जन क्रांति दल और शोषित दल ने कांग्रेस के वर्चस्व को तो तोड़ा, लेकिन अपनी एकजुटता नहीं रख पाए। कांग्रेस सरकार में आती-जाती रही। इस चुनाव के बाद कांग्रेस के कमजोर होने की शुरुआत हुई। दूसरी बार: 1980 में अपने बूते कांग्रेस ने वापसी की 1980 में 6.8% ज्यादा मतदान हुआ था। तब कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में लौटी और जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने। उस वक्त जनता पार्टी के आपसी टकराव में कांग्रेस ने उसके हाथ से सत्ता छीन ली थी। हालांकि, कांग्रेस के अंदर की राजनीति के कारण सरकार 10 साल में ही कांग्रेस का शासन खत्म हो गया। तीसरी बार: 1990 में लालू सीएम बने, जनता दल सत्ता में आई 1990 में 5.8% ज्यादा मतदान हुआ और कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई। जनता दल की सरकार बनी। लालू यादव मुख्यमंत्री बने। इसके बाद राज्य की राजनीति में मंडल की ऐसी छाप पड़ी की कांग्रेस दोबारा अब तक वापसी नहीं कर पाई। लालू यादव ने बिहार की पूरी राजनीति को बदल दिया। और 15 साल तक राज किया। चौथी बार: 2005 में लालू-राबड़ी राज खत्म कर CM बने नीतीश कुमार 2005 में 16.1% कम वोटिंग हुई, लेकिन लालू-राबड़ी शासन का अंत हो गया। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। इस बार सत्ता का बदलाव कम वोटिंग से हुआ था। नीतीश कुमार ने सुशासन की छवि बनाई और 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। अब दो बड़े फैक्ट…. 1. 60% से ज्यादा वोटिंग पर बनी लालू-राबड़ी सरकार हालिया 35 सालों में 2005 फरवरी को छोड़कर बिहार में 7 विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसमें 3 बार 60% से ज्यादा वोटिंग हुई है और तीनों बार लालू-राबड़ी की सरकार बनी है। वहीं, 4 बार 60% से नीचे वोटिंग हुई और लालू-राबड़ी की पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बना पाया। 2. 60% से कम वोटिंग हुई तो मुख्यमंत्री बने नीतीश सरकार नीतीश कुमार 2005 से लगातार सरकार चला रहे हैं। खास बात है कि पिछले 4 चुनाव से 60% से कम वोटिंग हुई है और नीतीश कुमार की कुर्सी सुरक्षित रही है। नीतीश कुमार को सत्ता ही वोटिंग घटने से मिली थी। अक्टूबर 2005 विधानसभा चुनाव में 46.5% मतदान हुआ, जो 2000 के चुनाव से 16.1% कम था। इसमें लालू यादव की पार्टी की हार हुई और नीतीश कुमार लीड NDA पहली बार पूर्ण बहुमत से सरकार में लौटा। अब तक के चुनावी पैटर्न को देखें तो 60% से ज्यादा वोटिंग होने पर लालू यादव की पार्टी RJD को फायदा हुआ है। वहीं, 60% से कम वोटिंग होने पर नीतीश कुमार। एग्जिट पोल में नीतीशे सरकार हालांकि, 17 एजेंसियों के पोल ऑफ पोल्स में NDA को 154 सीटें मिलने का अनुमान है। महागठबंधन 83 सीटों पर सिमटता दिख रहा है, जबकि अन्य के खाते में 5 सीटें जा सकती हैं। पहली बार चुनाव में उतरी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बेअसर नजर आ रही है। उसे 3-5 सीटें मिलने का अनुमान है। पिछले चुनाव में एनडीए को 125, महागठबंधन को 110 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। यानी इस बार NDA को करीब 29 सीटों का फायदा, जबकि महागठबंधन को 28 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। …तो फिर 9.6% वोट कैसे बढ़ा एग्जिट पोल में बिहार में NDA की सरकार बन रही है। 17 एजेंसियों के पोल ऑफ पोल्स में NDA को 154 सीटें मिलने का अनुमान है। महागठबंधन 84 सीटों पर सिमटता दिख रहा है। हालांकि, आजादी के बाद के 16 विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो पता चलता है कि 5% से ज्यादा या कम वोटिंग होने से सत्ता बदल जाती है। और इस बार वोटिंग 2020 की तुलना में 9.61% ज्यादा है। कुल 66.6% वोटिंग हुई है। आज के एक्सप्लेनर बूझे की नाहीं में…जानें बिहार में वोटिंग घटने या बढ़ने पर मौजूदा सरकार का क्या हुआ? सबसे पहले 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर 2020 तक हुए 16 चुनाव नतीजों और उनके असर पर देखते हैं- आजादी के बाद से बिहार में अब तक 16 विधानसभा चुनाव माने जाते हैं। चुनाव तो फरवरी 2005 में भी हुआ था, लेकिन उसके सियासी नतीजों को नहीं गिना जाता। तब नतीजे ऐसे आए थे कि राज्य में कोई सरकार बन न सकी और 8 महीने बाद दोबारा चुनाव कराने पड़े। 5% वोटिंग घटने या बढ़ने पर 4 बार बदली सरकार 73 साल के वोटिंग पैटर्न को देखें तो पता चलता है कि बिहार में जब भी 5% से ज्यादा मतदान बढ़ा या घटा है, तब लंबे समय से चल रही सत्ता बदल गई है। ऐसा 4 बार हुआ है। इसमें से 3 बार 5% से ज्यादा वोट बढ़ने पर बदलाव हुआ है तो एक बार 16% कम वोटिंग से हुआ है। हालांकि, 1-2% के कम-अधिक होने से वर्तमान सरकार रिपीट होती आई है। पहली बार: 1967 में पहली बार राज्य में गैर-कांग्रेसी सरकार 1967 के चुनाव में वोटिंग में 7% की बढ़ोत्तरी हुई थी। तब राज्य में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। हालांकि, सरकार अस्थिर रही। महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने। जन क्रांति दल और शोषित दल ने कांग्रेस के वर्चस्व को तो तोड़ा, लेकिन अपनी एकजुटता नहीं रख पाए। कांग्रेस सरकार में आती-जाती रही। इस चुनाव के बाद कांग्रेस के कमजोर होने की शुरुआत हुई। दूसरी बार: 1980 में अपने बूते कांग्रेस ने वापसी की 1980 में 6.8% ज्यादा मतदान हुआ था। तब कांग्रेस अपने दम पर सत्ता में लौटी और जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री बने। उस वक्त जनता पार्टी के आपसी टकराव में कांग्रेस ने उसके हाथ से सत्ता छीन ली थी। हालांकि, कांग्रेस के अंदर की राजनीति के कारण सरकार 10 साल में ही कांग्रेस का शासन खत्म हो गया। तीसरी बार: 1990 में लालू सीएम बने, जनता दल सत्ता में आई 1990 में 5.8% ज्यादा मतदान हुआ और कांग्रेस की सत्ता से विदाई हो गई। जनता दल की सरकार बनी। लालू यादव मुख्यमंत्री बने। इसके बाद राज्य की राजनीति में मंडल की ऐसी छाप पड़ी की कांग्रेस दोबारा अब तक वापसी नहीं कर पाई। लालू यादव ने बिहार की पूरी राजनीति को बदल दिया। और 15 साल तक राज किया। चौथी बार: 2005 में लालू-राबड़ी राज खत्म कर CM बने नीतीश कुमार 2005 में 16.1% कम वोटिंग हुई, लेकिन लालू-राबड़ी शासन का अंत हो गया। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। इस बार सत्ता का बदलाव कम वोटिंग से हुआ था। नीतीश कुमार ने सुशासन की छवि बनाई और 20 साल से बिहार की सत्ता पर काबिज हैं। अब दो बड़े फैक्ट…. 1. 60% से ज्यादा वोटिंग पर बनी लालू-राबड़ी सरकार हालिया 35 सालों में 2005 फरवरी को छोड़कर बिहार में 7 विधानसभा चुनाव हुए हैं। इसमें 3 बार 60% से ज्यादा वोटिंग हुई है और तीनों बार लालू-राबड़ी की सरकार बनी है। वहीं, 4 बार 60% से नीचे वोटिंग हुई और लालू-राबड़ी की पार्टी का मुख्यमंत्री नहीं बना पाया। 2. 60% से कम वोटिंग हुई तो मुख्यमंत्री बने नीतीश सरकार नीतीश कुमार 2005 से लगातार सरकार चला रहे हैं। खास बात है कि पिछले 4 चुनाव से 60% से कम वोटिंग हुई है और नीतीश कुमार की कुर्सी सुरक्षित रही है। नीतीश कुमार को सत्ता ही वोटिंग घटने से मिली थी। अक्टूबर 2005 विधानसभा चुनाव में 46.5% मतदान हुआ, जो 2000 के चुनाव से 16.1% कम था। इसमें लालू यादव की पार्टी की हार हुई और नीतीश कुमार लीड NDA पहली बार पूर्ण बहुमत से सरकार में लौटा। अब तक के चुनावी पैटर्न को देखें तो 60% से ज्यादा वोटिंग होने पर लालू यादव की पार्टी RJD को फायदा हुआ है। वहीं, 60% से कम वोटिंग होने पर नीतीश कुमार। एग्जिट पोल में नीतीशे सरकार हालांकि, 17 एजेंसियों के पोल ऑफ पोल्स में NDA को 154 सीटें मिलने का अनुमान है। महागठबंधन 83 सीटों पर सिमटता दिख रहा है, जबकि अन्य के खाते में 5 सीटें जा सकती हैं। पहली बार चुनाव में उतरी प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी बेअसर नजर आ रही है। उसे 3-5 सीटें मिलने का अनुमान है। पिछले चुनाव में एनडीए को 125, महागठबंधन को 110 और अन्य को 8 सीटें मिली थीं। यानी इस बार NDA को करीब 29 सीटों का फायदा, जबकि महागठबंधन को 28 सीटों का नुकसान होता दिख रहा है। …तो फिर 9.6% वोट कैसे बढ़ा


