उन्नाव जिले का पूरननगर मोहल्ला। यहां एक घर मिला। वोटर लिस्ट में उस घर के पते पर 45 लोग रजिस्टर्ड थे। घर के प्रमुख कमलेश कुमार को बीएलओ ने 45 फॉर्म दिए। कमलेश ने 3 भरकर वापस कर दिए। बाकी 42 खाली रह गए। बीएलओ ने बाकी 42 के बारे में पूछा तो कमलेश ने कहा कि हम नहीं जानते। बीएलओ साहब का सिर चकरा गया। आखिर ये कैसे हो सकता है? उन्होंने आसपास के लोगों से बात की, दूसरे मोहल्लों के लोगों से बात की। लेकिन, कहीं कुछ पता नहीं चला। बात ऊपर तक पहुंच गई। जांच के लिए और भी अधिकारी आए, लेकिन वो वोटर नहीं मिले। डीएम ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिख दी। पूछा- अब इन वोटर्स को कैसे खोजें? चुनाव आयोग ने अभी कोई जवाब नहीं दिया। अब सवाल उठता है कि ये वोटर्स कहां से जुड़ गए? अगर ये नहीं मिलते तो क्या नाम काटा जा सकता है? किस आधार पर नाम काटा जाता है? आइए सब कुछ शुरुआत से जानते हैं… मकान में 45 लोग रजिस्टर्ड लेकिन रहते सिर्फ 3 हैं
पूरननगर मोहल्ला वार्ड नंबर-1 में आता है। इसी में बूथ संख्या- 200 के अंतर्गत 57 नंबर का मकान है। इस वक्त वोटर लिस्ट की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (एसआईआर) की प्रक्रिया चल रही है। चुनाव आयोग की तरफ से नियुक्त बूथ लेवल अधिकारी घर-घर जाकर वोटर्स वेरिफाई कर रहे हैं। इस बूथ में बीएलओ राजीव त्रिपाठी की ड्यूटी लगी थी। राजीव घर-घर जाकर एसआईआर का फॉर्म दे रहे और उसे भरवा रहे हैं। 30 अक्टूबर को राजीव मकान संख्या- 57 में पहुंचे। इस मकान में कमलेश कुमार पत्नी और एक बेटे के साथ रहते हैं। बीएलओ यहां पहुंचे तो उन्होंने वोटर लिस्ट के मुताबिक 45 फॉर्म दिए। कमलेश ने 3 फॉर्म भरे और बाकी वापस कर दिए। बाकी के 42 लोग कौन हैं, इसके बारे में कमलेश को कुछ भी पता नहीं था। बीएलओ ने पहले कमलेश से पूछा, फिर आसपास के लोगों से पूछा। लेकिन कोई भी बाकी 42 लोगों के बारे में कुछ नहीं बता पाया। कमलेश बोले- बाकी सभी 42 नाम हटा दीजिए
इस घर में रहने वाले कमलेश से दैनिक भास्कर ने बात की। कमलेश कहते हैं- हमारे घर में सिर्फ 3 वोटर हैं। ये जो 42 और हैं, इसे लेकर हमें कोई जानकारी नहीं। हमने बीएलओ साहब से पूछा था। तब उन्होंने कहा कि तकनीकी वजह से ऐसा हो गया। हमने उन्हें मौखिक और फिर लिखित दिया कि ये नाम हमारे घर से हटा दिए जाएं। कितने वक्त यहां रहने के सवाल पर कमलेश कहते हैं- हम यहां पिछले 10-12 साल से रह रहे। इसे उसी वक्त बनवाया था। कभी किसी को किराए पर नहीं दिया। आसपास के लोगों से भी आप पूछ सकते हैं। डीएम ने AERO को चेक करने के लिए भेजा
बीएलओ राजीव को जब ये लोग नहीं मिले, तो उन्होंने इसकी जानकारी बड़े अफसरों को दी। राजीव कहते हैं- कई बार होता यह है कि जिन लोगों का नाम यहां दर्ज है, वो कहीं और होंगे। पूरननगर और पड़ोस के दरियाईखेड़ा में 65 नंबर मकान को लेकर इसी तरह की दिक्कत है। जिन लोगों का यहां नाम है, वो हमें दरियाई खेड़ा में मिले। बीएलओ की रिपोर्ट के आधार पर डीएम गौरांग राठी ने असिस्टेंट इलेक्टोरल अफसर (AERO) फहद को मौके पर भेजा। फहद पहुंचे, तो उन्हें भी वो 42 वोटर नहीं मिले। फहद कहते हैं- हमने इलाके में आकर जांच की। आसपास के लोगों से बात की। यहां कमलेश कुमार, उनकी पत्नी और बेटे के अलावा कोई नहीं मिला। हमने यहां से रिपोर्ट बनाकर इलेक्टोरल अफसर (ERO) को सौंप दी है। सभासद बोले- दो बार घर बिका, लोग चले गए
हमारी टीम इस मामले को लेकर स्थानीय सभासद प्रतिनिधि राजेश शर्मा से मिली। राजेश कहते हैं- हमने अपने स्तर पर भी पता किया। इसमें सामने आया कि ये मकान बहुत पहले 2 बार बिक चुका है। अभी जो लोग यहां रह रहे, वो 10-12 साल से यहां हैं। हमने पूछा कि पहले जो लोग रहे हैं, उनके बारे में कोई जानकारी है क्या? राजेश कहते हैं- यह बहुत पहले की बात है, उस वक्त की जानकारी तो हमें नहीं। लेकिन इतना पता है कि बांगरमऊ समेत आसपास के कुछ इलाकों से लोग यहां आए और रहने लगे। बाद में वह दूसरी जगह चले गए। शायद ये सभी उन्हीं के नाम हैं। हमारे यहां इस वक्त 4800 वोटर रजिस्टर्ड हैं। हमने आसपास के मोहल्लों में पता किया, कई लोग किराए पर रहते हुए मिले। लोग इस बात को भी मानते हैं कि शहर में गांव की तरफ से बहुत सारे लोग आते हैं। यहां लंबे वक्त तक रहते हैं, बाद में कहीं चले जाते हैं। डीएम ने चुनाव आयोग से खोजने का तरीका पूछा
स्थानीय स्तर पर जांच होने के बाद डीएम गौरांग राठी को रिपोर्ट मिल गई। उन्होंने ये रिपोर्ट उपजिला निर्वाचन अधिकारी सुनील कुमार गोंड को भेजी। इसके बाद रिपोर्ट लखनऊ पहुंची। डीएम ने चुनाव आयोग के अफसरों से बात की। उन्होंने इन वोटर्स को तलाशने के दूसरे विकल्प के बारे में जानकारी मांगी। उन्होंने यह भी पूछा कि अगर ये किसी दूसरी जगह की वोटर लिस्ट में शामिल हो गए हैं, तो इन्हें कैसे तलाशा जाए। चुनाव आयोग की तरफ से अभी फिलहाल कुछ नहीं सुझाया गया है। अगर ये नहीं मिलते, तो नाम काटा जाएगा
अगर ये नहीं मिलते तो क्या होगा? इसे लेकर हमने एक दूसरे बीएलओ यजेंद्र त्रिपाठी से बात की। यजेंद्र कहते हैं- पहले तो उन्हें खोजने के लिए आसपास के लोगों से ही संपर्क साधा जाएगा। कोशिश की जाएगी कि किसी तरह से उन 42 लोगों में किसी एक का भी पता चल जाए। अगर पता चल जाता है तो संभव है कि बाकी लोगों के बारे में भी जानकारी मिल जाएगी। लेकिन, अगर नहीं पता चलता तो स्थानीय स्तर पर इसका भी नियम है। यजेंद्र कहते हैं- अगर उन 42 लोगों का कोई पता नहीं चल पाता तो स्थानीय सभासद, कोटेदार और गांव के ही कुछ लोग आपस में बैठक करेंगे। वो सभी इस बात को बाकायदा लिखेंगे कि इस लिस्ट में दर्ज 42 लोगों का इस गांव या मोहल्ले से कोई मतलब नहीं। इसमें दर्ज कोई भी व्यक्ति यहां का नहीं है। लोगों के सिग्नेचर होंगे। इसके बाद यह पत्र चुनाव आयोग को भेज दिया जाएगा और आगामी लिस्ट में इनका नाम नहीं रहेगा। ————————- ये खबर भी पढ़ें… यूपी में CEIR पोर्टल ने ढूंढ निकाले लापता 57761 फोन, इसी पोर्टल का मोबाइल एप ‘संचार साथी’ यूपी के गोरखपुर में जीआरपी (GRP) ने 19 नवंबर को 55 लाख रुपए कीमत के 248 मोबाइल उनके मालिकों को लौटाए। मेरठ रेंज की पुलिस इस साल 5 हजार मोबाइल रिकवर करके लोगों को वापस कर चुकी है। ये वो मोबाइल हैं, जो चोरी या खो चुके थे। इन मोबाइलों की रिकवरी संभव हुई है सेंट्रल इक्विपमेंट आईडेंटिटी रजिस्टर (CEIR) पोर्टल से। पढ़िए पूरी खबर…


