प्राचीन नालंदा की गौरवशाली परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए नालंदा विश्वविद्यालय ने शुक्रवार को अपने सिटी कैंपस में एक भव्य पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सहयोग से आयोजित इस प्रदर्शनी में 200 से अधिक छात्रों और स्थानीय निवासियों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी और जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर इस छह दिवसीय आयोजन का शुभारंभ किया। यह प्रदर्शनी 31 दिसंबर तक रोजाना सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक आम जनता के लिए खुली रहेगी। सिटी कैंपस का चयन इस आयोजन के लिए विशेष महत्व रखता है। यह वही परिसर है जहां से बिहार सरकार के सहयोग से नालंदा विश्वविद्यालय की आधुनिक शैक्षणिक यात्रा प्रारंभ हुई थी। सामुदायिक सहभागिता पर जोर कुलपति प्रोफेसर चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में इस प्रदर्शनी के व्यापक उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आयोजन केवल पुस्तकों की प्रदर्शनी नहीं है, बल्कि युवा पीढ़ी में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बौद्धिक परंपराओं के प्रति जिज्ञासा जगाने का माध्यम है। उन्होंने विश्वविद्यालय की ‘सहभागिता’ पहल के तहत सिटी कैंपस को सामुदायिक जुड़ाव और कौशल विकास के केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना का खुलासा किया। तीन प्रमुख क्षेत्रों पर फोकस किया जाएगा स्कूली बच्चों के लिए शैक्षिक कार्यक्रम, स्थानीय महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का सशक्तिकरण, और युवाओं के लिए आईटी और कौशल प्रशिक्षण। प्रोफेसर चतुर्वेदी ने एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि राजगीर, गया और आसपास के विरासत स्थलों पर बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को देखते हुए दक्षिण-पूर्व एशियाई भाषाओं का ज्ञान स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए द्वार खोल सकता है। भारतीय ज्ञान परंपरा का गौरव जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए रचनात्मकता और सृजनात्मक चिंतन को आज के युग में सफलता की कुंजी बताया। उन्होंने गर्व से उल्लेख किया कि शून्य की अवधारणा, जो आज की डिजिटल दुनिया की नींव है, भारत की धरती से विश्व को मिली अनमोल देन है। जिलाधिकारी ने कौशल विकास कार्यक्रमों के विस्तार में पूर्ण सहयोग का आश्वासन देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में संरक्षित डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हस्तलिखित नोट्स राष्ट्रीय धरोहर हैं, जिनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। प्रदर्शनी में कई आकर्षक स्टॉल प्रदर्शनी में कई आकर्षक स्टॉल लगाए गए। कॉमन आर्काइवल रिसोर्स सेंटर के स्टॉल में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की हस्तलिखित डायरी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। पुरातत्व विभाग के स्टॉल में जीवाश्मों और पुरावशेषों के माध्यम से मानव विकास की यात्रा को प्रदर्शित किया गया। बच्चों को मिस्त्री चित्रलिपि में उनके नाम लिखकर दिए गए और हड़प्पा मुहर के बुकमार्क वितरित किए गए। स्वयं सहायता समूहों की ओर से निर्मित उत्पादों और नेशनल बुक ट्रस्ट की विविध पुस्तकों ने प्रदर्शनी को और समृद्ध बनाया। प्राचीन नालंदा की गौरवशाली परंपरा को पुनर्जीवित करते हुए नालंदा विश्वविद्यालय ने शुक्रवार को अपने सिटी कैंपस में एक भव्य पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया। राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सहयोग से आयोजित इस प्रदर्शनी में 200 से अधिक छात्रों और स्थानीय निवासियों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सचिन चतुर्वेदी और जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर इस छह दिवसीय आयोजन का शुभारंभ किया। यह प्रदर्शनी 31 दिसंबर तक रोजाना सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक आम जनता के लिए खुली रहेगी। सिटी कैंपस का चयन इस आयोजन के लिए विशेष महत्व रखता है। यह वही परिसर है जहां से बिहार सरकार के सहयोग से नालंदा विश्वविद्यालय की आधुनिक शैक्षणिक यात्रा प्रारंभ हुई थी। सामुदायिक सहभागिता पर जोर कुलपति प्रोफेसर चतुर्वेदी ने अपने संबोधन में इस प्रदर्शनी के व्यापक उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आयोजन केवल पुस्तकों की प्रदर्शनी नहीं है, बल्कि युवा पीढ़ी में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बौद्धिक परंपराओं के प्रति जिज्ञासा जगाने का माध्यम है। उन्होंने विश्वविद्यालय की ‘सहभागिता’ पहल के तहत सिटी कैंपस को सामुदायिक जुड़ाव और कौशल विकास के केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना का खुलासा किया। तीन प्रमुख क्षेत्रों पर फोकस किया जाएगा स्कूली बच्चों के लिए शैक्षिक कार्यक्रम, स्थानीय महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों का सशक्तिकरण, और युवाओं के लिए आईटी और कौशल प्रशिक्षण। प्रोफेसर चतुर्वेदी ने एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि राजगीर, गया और आसपास के विरासत स्थलों पर बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन को देखते हुए दक्षिण-पूर्व एशियाई भाषाओं का ज्ञान स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए द्वार खोल सकता है। भारतीय ज्ञान परंपरा का गौरव जिलाधिकारी कुंदन कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए रचनात्मकता और सृजनात्मक चिंतन को आज के युग में सफलता की कुंजी बताया। उन्होंने गर्व से उल्लेख किया कि शून्य की अवधारणा, जो आज की डिजिटल दुनिया की नींव है, भारत की धरती से विश्व को मिली अनमोल देन है। जिलाधिकारी ने कौशल विकास कार्यक्रमों के विस्तार में पूर्ण सहयोग का आश्वासन देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय में संरक्षित डॉ. राजेंद्र प्रसाद के हस्तलिखित नोट्स राष्ट्रीय धरोहर हैं, जिनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। प्रदर्शनी में कई आकर्षक स्टॉल प्रदर्शनी में कई आकर्षक स्टॉल लगाए गए। कॉमन आर्काइवल रिसोर्स सेंटर के स्टॉल में डॉ. राजेंद्र प्रसाद की हस्तलिखित डायरी विशेष आकर्षण का केंद्र रही। पुरातत्व विभाग के स्टॉल में जीवाश्मों और पुरावशेषों के माध्यम से मानव विकास की यात्रा को प्रदर्शित किया गया। बच्चों को मिस्त्री चित्रलिपि में उनके नाम लिखकर दिए गए और हड़प्पा मुहर के बुकमार्क वितरित किए गए। स्वयं सहायता समूहों की ओर से निर्मित उत्पादों और नेशनल बुक ट्रस्ट की विविध पुस्तकों ने प्रदर्शनी को और समृद्ध बनाया।


