सीमेंट कंपनी की प्रस्तावित खदान परियोजना को लेकर खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले में भारी विरोध सामने आया है। शुक्रवार को पंडरिया, बिचारपुर, बुंदेली, भरदागोंड, संडी सहित लगभग 50 गांवों के 1000 से अधिक ग्रामीण, जिनमें महिलाएं, पुरुष और किसान शामिल थे, दुर्ग स्थित छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के क्षेत्रीय कार्यालय पहुंचे। ग्रामीणों ने 11 दिसंबर को होने वाली जनसुनवाई को रद्द करने की मांग करते हुए जोरदार प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि कंपनी ने पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) रिपोर्ट जानबूझकर अंग्रेजी में दी है, ताकि स्थानीय लोग जानकारी को समझ न सकें और आपत्ति दर्ज न करा पाएं। जनसुनवाई की सूचना सामने आने के बाद से पूरे क्षेत्र में भय, गुस्सा और असंतोष फैल गया है। क्षेत्रीय अधिकारी को सौंपे गए ज्ञापन में ग्रामीणों ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने बताया कि EIA सारांश केवल 10 पृष्ठों का है और वह भी अंग्रेजी में प्रस्तुत किया गया है। परियोजना में भूमि और मुआवजे का अस्पष्ट विवरण इसके अलावा, 404 हेक्टेयर की इस विशाल परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण, विस्थापन और मुआवजे का कोई विवरण रिपोर्ट में नहीं दिया गया है। ग्रामीणों के अनुसार, 10 किलोमीटर के अध्ययन क्षेत्र में आने वाले कई गांवों को रिपोर्ट में शामिल ही नहीं किया गया है। परियोजना के कारण 13 जल स्रोत, जिनमें नदियां, नाले, नहरें और भूजल शामिल हैं, प्रभावित होंगे, लेकिन इसका वस्तुपरक आकलन रिपोर्ट में अनुपस्थित है। ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि भारी वाहनों की आवाजाही से स्कूल, बाजार, खेत और ग्रामीण सड़कें प्रभावित होंगी, लेकिन कंपनी ने ट्रैफिक सर्वे को नजरअंदाज कर दिया है। सीमेंट प्लांट व लाइमस्टोन खदान से खतरे की आशंका प्रदूषण के खतरे पर भी रिपोर्ट में अस्पष्टता है, जबकि सीमेंट प्लांट और लाइमस्टोन खदान ‘लाल श्रेणी’ के उच्च जोखिम वाले उद्योग माने जाते हैं। ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि यह परियोजना उनकी खेती, जलस्रोतों, स्वास्थ्य और पूरे पर्यावरण को बर्बाद कर देगी। खैरागढ़ के पूर्व विधायक गिरवर जंघेल भी इस आंदोलन में शामिल हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस क्षेत्र में खदान प्रस्तावित है, वहां घनी आबादी और बहुमूल्य कृषि भूमि है। पूर्व विधायक जंघेल ने चेतावनी दी कि यदि यह खदान खुली तो हजारों परिवार तबाह हो जाएंगे।


