सुपौल के जिला पदाधिकारी सावन कुमार ने त्रिवेणीगंज अंचल में ऑनलाइन दाखिल-खारिज एवं अन्य राजस्व मामलों के निपटारे में अनियमितताओं को गंभीरता से लेते हुए बड़ी कार्रवाई की है। डीएम श्री कुमार ने इस मामले में राजस्व पदाधिकारी राकेश कुमार को उनके पद से तत्काल प्रभाव से मुक्त करते हुए स्थापना शाखा सुपौल में प्रतिनियुक्त किया है। यह कार्रवाई डीसीएलआर त्रिवेणीगंज की जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है। जिसमें 75 दिनों से अधिक समय से लंबित 68 दाखिल-खारिज मामलों में कई अनियमितता पाए गए थे। जिसमें बार-बार बिना कारण आपत्ति दर्ज करना और आपत्ति का कारण स्पष्ट ना बताकर मामलों को 75 दिनों से अधिक समय तक लंबित रखना, रैयत द्वारा दर्ज आपत्ति की वास्तविकता की जांच किए बिना लगातार सुनवाई की तारीखें निर्धारित करना, ऐसे मामलों में भी स्वयं आपत्ति दर्ज करना जहां अपील या न्यायालय में पहले से वाद लंबित है, जैसी अनियमितताएं पाई गई थी। दाखिल-खारिज अधिनियम, 2011 के विपरीत जो दाखिल-खारिज अधिनियम, 2011 के विपरीत है। इसके अलावा सहमति पत्र, वंशावली आधारित बंटवारा, जमाबंदी संदर्भ लेने में अनुचित विलंब एवं 14 दिनों की निर्धारित समयसीमा के बाद भी नई आपत्ति स्वीकार करना या स्वयं आपत्ति लगाना शामिल है। 75 दिन से अधिक लंबित दाखिल-खारिज वादों की समीक्षा की थी बता दें कि बीते 25 नवंबर को डीएम ने राजस्व कार्यो की समीक्षात्मक बैठक की थी। डीएम ने सभी अंचलों में 75 दिन से अधिक लंबित दाखिल-खारिज वादों की समीक्षा की थी। जिसमें अधिक लंबित मामले वाले अंचल सुपौल व त्रिवेणीगंज पर असंतोष प्रकट किया था। तीन दिनों के भीतर स्पष्टीकरण का मांगा जबाव जांच रिपोर्ट में कई मामलों में अधिकारी के निजी हित के परिलक्षित होने का उल्लेख भी किया गया है। राजस्व विभाग के निर्देश के अनुसार ऑनलाइन दाखिल-खारिज का निपटारा 30 दिनों में अनिवार्य है। लेकिन आदेश के अनुसार, संबंधित अधिकारी द्वारा अधिकांश मामलों को समय पर निष्पादित नहीं किया गया। जो प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन माना गया है। राजस्व अधिकारी की संपत्ति को लेकर भी सवाल उठे DM ने संबंधित अधिकारी को निर्देश दिया है कि वे अपना आधिकारिक डोंगल DCLR त्रिवेणीगंज को तुरंत समर्पित करें और तीन दिनों के भीतर लिखित स्पष्टीकरण दें कि क्यों न उनके विरुद्ध विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की जाए। इधर, स्थानीय स्तर पर राजस्व अधिकारी की संपत्ति को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। संबंधित अधिकारी ने कुछ सालों में असामान्य रूप से संपत्ति में बढ़ोतरी की कई ग्रामीणों व जनप्रतिनिधियों का कहना है कि संबंधित अधिकारी ने कुछ सालों में असामान्य रूप से संपत्ति में बढ़ोतरी की है। जिसे लेकर प्रशासनिक जांच की जरूरत बताई जा रही है। सूत्रों के अनुसार, कई पेट्रोल पंप, व्यवसायिक परिसंपत्तियों और संभावित बेनामी जमीनों से जुड़े दावे क्षेत्र में चर्चा का विषय बने हुए हैं। हालांकि, इन दावों की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और ना ही किसी विभागीय दस्तावेज में ऐसा उल्लेख सामने आया है। निलंबन और विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू इसको लेकर जिला पदाधिकारी सावन कुमार ने कहा कि, ‘पिछले समीक्षा बैठक में मैने पाया कि किसी व्यक्ति का दाखिल-खारिज है, उसको नियमानुसार 30 दिन के अंदर कर देना है। लेकिन ये ही कहता है कि आप 20 दिन में नही कर सकते हैं। ये भी नही है कि आप दो-दो महीना में कीजिएगा। अधिकांश केस में ये व्यक्ति दो-दो सौ दिन ले जा रहा है। अधिकारी का आब्जेक्शन लगाना नही है। ये काम पब्लिक का है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘ये व्यक्ति खुद ऑब्जेक्शन लगाकर दाखिल-खारिज रोक देता है। अधिकारी खुद ऑब्जेक्शन लगाने लगेगा तो पब्लिक काम नही कर सकेगा। हमने पूछा था कि आप खुद क्यों ऑब्जेक्शन लगा रहे हैं, आपका काम तो समाधान करना है। ये और इनके एक दोस्त को एक्सटेंशन नही दिए हैं। दोनों मिल कर साठगांठ किए हुए था। उसी केस में उन पर कार्रवाई करते हुए तत्काल वहां से हटाया गया है। उनके निलंबन एवं विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।’ सुपौल के जिला पदाधिकारी सावन कुमार ने त्रिवेणीगंज अंचल में ऑनलाइन दाखिल-खारिज एवं अन्य राजस्व मामलों के निपटारे में अनियमितताओं को गंभीरता से लेते हुए बड़ी कार्रवाई की है। डीएम श्री कुमार ने इस मामले में राजस्व पदाधिकारी राकेश कुमार को उनके पद से तत्काल प्रभाव से मुक्त करते हुए स्थापना शाखा सुपौल में प्रतिनियुक्त किया है। यह कार्रवाई डीसीएलआर त्रिवेणीगंज की जांच रिपोर्ट के आधार पर की गई है। जिसमें 75 दिनों से अधिक समय से लंबित 68 दाखिल-खारिज मामलों में कई अनियमितता पाए गए थे। जिसमें बार-बार बिना कारण आपत्ति दर्ज करना और आपत्ति का कारण स्पष्ट ना बताकर मामलों को 75 दिनों से अधिक समय तक लंबित रखना, रैयत द्वारा दर्ज आपत्ति की वास्तविकता की जांच किए बिना लगातार सुनवाई की तारीखें निर्धारित करना, ऐसे मामलों में भी स्वयं आपत्ति दर्ज करना जहां अपील या न्यायालय में पहले से वाद लंबित है, जैसी अनियमितताएं पाई गई थी। दाखिल-खारिज अधिनियम, 2011 के विपरीत जो दाखिल-खारिज अधिनियम, 2011 के विपरीत है। इसके अलावा सहमति पत्र, वंशावली आधारित बंटवारा, जमाबंदी संदर्भ लेने में अनुचित विलंब एवं 14 दिनों की निर्धारित समयसीमा के बाद भी नई आपत्ति स्वीकार करना या स्वयं आपत्ति लगाना शामिल है। 75 दिन से अधिक लंबित दाखिल-खारिज वादों की समीक्षा की थी बता दें कि बीते 25 नवंबर को डीएम ने राजस्व कार्यो की समीक्षात्मक बैठक की थी। डीएम ने सभी अंचलों में 75 दिन से अधिक लंबित दाखिल-खारिज वादों की समीक्षा की थी। जिसमें अधिक लंबित मामले वाले अंचल सुपौल व त्रिवेणीगंज पर असंतोष प्रकट किया था। तीन दिनों के भीतर स्पष्टीकरण का मांगा जबाव जांच रिपोर्ट में कई मामलों में अधिकारी के निजी हित के परिलक्षित होने का उल्लेख भी किया गया है। राजस्व विभाग के निर्देश के अनुसार ऑनलाइन दाखिल-खारिज का निपटारा 30 दिनों में अनिवार्य है। लेकिन आदेश के अनुसार, संबंधित अधिकारी द्वारा अधिकांश मामलों को समय पर निष्पादित नहीं किया गया। जो प्रशासनिक नियमों का उल्लंघन माना गया है। राजस्व अधिकारी की संपत्ति को लेकर भी सवाल उठे DM ने संबंधित अधिकारी को निर्देश दिया है कि वे अपना आधिकारिक डोंगल DCLR त्रिवेणीगंज को तुरंत समर्पित करें और तीन दिनों के भीतर लिखित स्पष्टीकरण दें कि क्यों न उनके विरुद्ध विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई की अनुशंसा की जाए। इधर, स्थानीय स्तर पर राजस्व अधिकारी की संपत्ति को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। संबंधित अधिकारी ने कुछ सालों में असामान्य रूप से संपत्ति में बढ़ोतरी की कई ग्रामीणों व जनप्रतिनिधियों का कहना है कि संबंधित अधिकारी ने कुछ सालों में असामान्य रूप से संपत्ति में बढ़ोतरी की है। जिसे लेकर प्रशासनिक जांच की जरूरत बताई जा रही है। सूत्रों के अनुसार, कई पेट्रोल पंप, व्यवसायिक परिसंपत्तियों और संभावित बेनामी जमीनों से जुड़े दावे क्षेत्र में चर्चा का विषय बने हुए हैं। हालांकि, इन दावों की अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है और ना ही किसी विभागीय दस्तावेज में ऐसा उल्लेख सामने आया है। निलंबन और विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू इसको लेकर जिला पदाधिकारी सावन कुमार ने कहा कि, ‘पिछले समीक्षा बैठक में मैने पाया कि किसी व्यक्ति का दाखिल-खारिज है, उसको नियमानुसार 30 दिन के अंदर कर देना है। लेकिन ये ही कहता है कि आप 20 दिन में नही कर सकते हैं। ये भी नही है कि आप दो-दो महीना में कीजिएगा। अधिकांश केस में ये व्यक्ति दो-दो सौ दिन ले जा रहा है। अधिकारी का आब्जेक्शन लगाना नही है। ये काम पब्लिक का है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘ये व्यक्ति खुद ऑब्जेक्शन लगाकर दाखिल-खारिज रोक देता है। अधिकारी खुद ऑब्जेक्शन लगाने लगेगा तो पब्लिक काम नही कर सकेगा। हमने पूछा था कि आप खुद क्यों ऑब्जेक्शन लगा रहे हैं, आपका काम तो समाधान करना है। ये और इनके एक दोस्त को एक्सटेंशन नही दिए हैं। दोनों मिल कर साठगांठ किए हुए था। उसी केस में उन पर कार्रवाई करते हुए तत्काल वहां से हटाया गया है। उनके निलंबन एवं विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।’


