फिल्म ‘धुरंधर’ में अब्दुल भुट्टावी बने संजय मेहता:भोपाल के रंगकर्मी से खास बातचीत; बोले- अगर सच दिखाना प्रोपेगेंडा है, तो 26/11 क्या झूठ था?

फिल्म ‘धुरंधर’ में अब्दुल भुट्टावी बने संजय मेहता:भोपाल के रंगकर्मी से खास बातचीत; बोले- अगर सच दिखाना प्रोपेगेंडा है, तो 26/11 क्या झूठ था?

फिल्म धुरंधर इन दिनों लगातार चर्चा में है। इस फिल्म में भोपाल के वरिष्ठ रंगकर्मी और अभिनेता संजय मेहता भी एक अहम भूमिका में नजर आते हैं। संजय मेहता ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान उन्होंने फिल्म से जुड़े अनुभवों को साझा किया, उन्होंने न सिर्फ फिल्म धुरंधर और अपने किरदार पर खुलकर बात की, बल्कि रंगमंच, सिनेमा, कलाकारों की तैयारी, समाज पर फिल्मों के असर और अपनी लंबी रंगयात्रा के अनुभव भी साझा किए। सवाल: धुरंधर के बारे में बताइए, इसमें आपका क्या रोल है? जवाब: इसमें जो कैरेक्टर मैं कर रहा हूं, वो अब्दुल भुट्टावी का कैरेक्टर है। 26/11 में जो मुंबई में ताज होटल और दूसरी जगहों पर हमले हुए थे, उनमें जो जिम्मेदार आदमी था, वह अब्दुल भुट्टावी था। फिल्म बहुत सारी चीजों को रिवील करती है। खासतौर पर पार्लियामेंट अटैक, 26/11 और उसके अलावा पाकिस्तान किस तरह से हिंदुस्तान के खिलाफ साजिशें करता है, उनके आतंकवादी संगठन कैसे काम करते हैं, उनकी प्लानिंग किस तरह की होती है, पैसा कहां से आता है और हथियार कहां से आते हैं, इन सब बातों को यह फिल्म सामने लाती है। एक तरह से इसे जासूसी फिल्म भी कह सकते हैं, क्योंकि रणवीर सिंह का जो कैरेक्टर है, वह भारत का जासूस है और पाकिस्तान में घुसा हुआ है। अब जब फिल्म रिलीज हो चुकी है, तो मुझे लगता है कि ज्यादा कहानी डिटेल में बताने की जरूरत नहीं है, क्योंकि दर्शक जब खुद जाकर देखेंगे, तभी उन्हें इसका पूरा आनंद मिलेगा।
सवाल: आपने कई फिल्मों में आतंकवादियों के रोल किए हैं? जवाब: देखिए, कई बार एक बहुत विचित्र सी बात होती है कि आदमी जो दिखता है, वो होता नहीं और जो होता है, वो दिखता नहीं। एक्टर के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि वह अपने स्वभाव से अलग हटकर भी कुछ करे। ईश्वर की कृपा रही है कि मैंने जो भी रोल किए हैं, वो अलग-अलग तरह के रहे हैं। आतंकवादियों के रोल किए हैं, बदमाशों के रोल किए हैं, लेकिन इसके साथ-साथ बिल्कुल अलग तरह के चरित्र भी निभाए हैं। जैसे ड्राई डे में सौरभ शुक्ला की फिल्म में बिल्कुल अलग कैरेक्टर है, धड़क 2 में एक कॉमेडी सीक्वेंस किया है। फिल्मिस्तान में वहाब भाई का कैरेक्टर किया, ओमेर्टा में हंसल मेहता की फिल्म में अजर मसूद का किरदार निभाया और अब धुरंधर में अब्दुल भुट्टावी का रोल। इसके अलावा कई सीरियल्स में साधुओं के किरदार भी किए हैं। जो चरित्र मिलता है, उसे पूरी ईमानदारी से अपनाने की कोशिश करता हूं। सवाल: ऐसे किरदारों को निभाने के लिए क्या तैयारी करते हैं ?
जवाब: देखिए, ऐसी फिल्मों में हमेशा कैरेक्टर डेवलपमेंट ही सब कुछ नहीं होता। कई बार घटनाक्रम और सिचुएशन ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। जैसे ओमेर्टा में अजर मसूद का कैरेक्टर था, लेकिन फिल्म की मूल कहानी आतंकवादी संगठनों के काम करने के तरीके, उनकी ट्रेनिंग और साजिशों पर आधारित थी। धुरंधर में भी बहुत सारी घटनाएं दिखाई गई हैं- 26/11 में कौन लोग शामिल थे, कैसे काम कर रहे थे, हथियार कहां से आए, पैसा कैसे दिए गए। आतंकवादियों और पाकिस्तान से बैठकर बात करने वालों की ऑडियो रिकॉर्डिंग, जाली करेंसी, करेंसी पेपर और प्लेट्स जैसी बातें दिखाई गई हैं। ये वो बातें हैं जो आम जनता को पहले नहीं पता थीं और इस फिल्म के जरिए सामने आती हैं। सवाल: ऋतिक रोशन ने फिल्म के प्लॉट को लेकर आपत्ति जताई थी।
जवाब: मुझे लगता है कि जब हम सच्ची घटनाओं को सामने रखते हैं, जैसे मुंबई अटैक, हजारों लोगों की मौत, पुलिसकर्मियों की शहादत तो इसमें राजनीति कहां से आ जाती है? जाली करेंसी छप रही थी, पार्लियामेंट अटैक हुआ, ये सब सच है। अगर फिल्म यह दिखा रही है कि पाकिस्तान किस तरह से हिंदुस्तान के खिलाफ साजिश करता है, तो यह देशप्रेम है, राजनीति नहीं। ऐसे में किसी को यह तय करना होगा कि वह किस पक्ष में खड़ा है। सवाल: कुछ लोग इसे प्रोपगेंडा फिल्म भी कह रहे हैं।
जवाब: अगर सच दिखाना प्रोपगेंडा है, तो फिर 26/11 का मुंबई हमला, पार्लियामेंट अटैक और जाली करेंसी जैसे मुद्दे क्या झूठ हैं? क्या ये घटनाएं हुई ही नहीं थीं? आज युद्ध के तरीके बदल गए हैं। पहले युद्ध का मतलब होता था कि सैनिक आमने-सामने लड़ेंगे, लेकिन आज युद्ध का एक बड़ा हिस्सा मीडिया, सूचना और माध्यमों के जरिए भी लड़ा जा रहा है। फिल्म एक बहुत बड़ा और प्रभावशाली माध्यम है, जिसके जरिए बात सीधे जनता तक पहुंचती है। अगर आप 60 के दशक की फिल्मों को देखें तो वे भी समाज की कुरीतियों, सती प्रथा, अन्याय और शोषण के खिलाफ खुलकर बात करती थीं। तब उन्हें प्रोपगेंडा नहीं कहा गया। आज अगर आतंकवाद जैसे गंभीर और वास्तविक विषय पर फिल्म बनाई जा रही है और उसमें सच्ची घटनाओं को सामने रखा जा रहा है, तो उसे प्रोपगेंडा कहना सही नहीं है। यह फिल्म भी उसी तरह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक माध्यम है। सवाल: रणवीर सिंह और अक्षय खन्ना के साथ काम करने का अनुभव?
जवाब: रणवीर सिंह के साथ एक सीन में बहुत ज्यादा एनर्जी लग रही थी। वह सीन बार-बार किया जा रहा था और उसमें बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक शक्ति लग रही थी। लगातार टेक होने की वजह से मैं काफी थक गया और जब वहां से उठा तो अचानक मुझे चक्कर आ गया, लगभग बेहोश ही हो गया था। सेट पर मौजूद लोगों ने तुरंत संभाला, रणवीर सिंह भी वहीं थे। वहां पहले से एक पलंग रखा हुआ था, उसी पर मुझे लिटाया गया और कुछ ही देर में होश आ गया। उस दौरान रणवीर सिंह ने मुझसे कहा कि सर, शायद आपकी शुगर लो हो गई होगी और उन्होंने मुझे चॉकलेट भी दी। मैंने उनसे कहा कि मुझे शुगर नहीं है, लेकिन फिर भी उन्होंने अपनेपन से चॉकलेट खिलाई। इसके बाद उन्होंने पूरा सहयोग किया और कहा कि सर पहले आपका क्लोजअप ले लेते हैं, बाद में मेरा कर लेंगे। यह उनकी सहजता और संवेदनशीलता को दिखाता है। वह बिल्कुल भी स्टार वाला व्यवहार नहीं करते, बल्कि सेट पर सभी कलाकारों को बराबरी का सम्मान देते हैं। अक्षय खन्ना और अर्जुन रामपाल के साथ भी काम करने का अनुभव इसी तरह का रहा है, सेट पर हमेशा एक सम्मानजनक और सहयोगी माहौल रहता है। सवाल: धुरंधर 2 को लेकर क्या कहेंगे?
जवाब: अभी इसके बारे में ज्यादा कुछ रिवील करना मेरे लिए संभव नहीं है, क्योंकि इस तरह की फिल्मों में कई तरह की बंदिशें होती हैं और पहले से कुछ कह देना ठीक नहीं रहता। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि धुरंधर 2 पहले पार्ट से कहीं ज्यादा मजबूत और प्रभावशाली होने वाली है। इसमें मेरे कम से कम तीन से चार अच्छे सीन हैं और मेरा कैरेक्टर पहले से ज्यादा स्टेब्लिश होकर सामने आएगा। पहले पार्ट के एंड में आपने देखा होगा कि डायरी में अब्दुल भुटवी का नाम लिखा हुआ आता है। वह नाम क्यों लिखा गया है, किस संदर्भ में लिखा गया है और आगे उसकी भूमिका क्या होगी, यह सब वक्त के साथ सामने आएगा। दर्शकों के लिए इसमें सस्पेंस और रोमांच दोनों बने रहेंगे। सवाल: आपकी आने वाली फिल्में?
जवाब: हाल ही में मैंने एक फिल्म की है, जिसका निर्देशन कामाख्या नारायण सिंह ने किया है और यह विपुल शाह का प्रोडक्शन है। अभी इस फिल्म का टाइटल रिवील नहीं किया गया है, इसलिए उसके नाम को लेकर कुछ कहना संभव नहीं है। लेकिन यह एक बहुत अच्छी और महत्वपूर्ण फिल्म है, जिस पर टीम ने काफी मेहनत की है। अगर सब कुछ तय योजना के अनुसार रहा, तो इसके मार्च–अप्रैल के आसपास रिलीज होने की संभावना बन रही है। इसके अलावा भी कुछ प्रोजेक्ट्स पर बातचीत चल रही है, लेकिन उनके बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी। सवाल : रंगमंच और फिल्म को आप कैसे देखते हैं?
जवाब: रंगमंच कभी भी सीढ़ी नहीं हो सकता। रंगमंच को अगर आप सिर्फ एक माध्यम मानेंगे, जिससे होकर फिल्म या टीवी तक पहुंचा जाए, तो आप गलत दिशा में जा रहे हैं। अगर सीखना है तो सीखने की असली जगह रंगमंच ही है। फिल्म में जब आप जाते हैं, तो वहां सीखने का वक्त नहीं होता, वहां आपको काम करना होता है। अगर आप वहां अच्छा काम नहीं करेंगे तो आपको अगला मौका नहीं मिलेगा। थिएटर में आपको समय मिलता है, मेहनत करने का मौका मिलता है, गलतियां करने और उनसे सीखने का अवसर मिलता है। अभिनय एक ही है, फर्क सिर्फ माध्यम का होता है। फिल्म और थिएटर में अभिनय अलग नहीं होता, बस उसे प्रस्तुत करने का तरीका अलग होता है। रंगमंच से ही कलाकार मजबूत बनता है, क्योंकि वहीं उसकी असली कसरत होती है। सवाल: क्या रंगमंच से जीवन यापन संभव है?
संजय मेहता: मैंने तो किया है। मैं सबकी बात नहीं कर सकता, लेकिन मेरी अपनी यात्रा यही कहती है कि रंगमंच से जीवन यापन संभव है। जब मैं भारत भवन, रंगमंडल से जुड़ा था, तब मेरी उम्र करीब 19 या 20 साल रही होगी और आज मैं 63 साल का हूं। इन 63 सालों की पूरी यात्रा रंगमंच से ही चली है। इसके लिए यह जरूरी है कि आप सिर्फ एक्टिंग तक सीमित न रहें। आपको लिखना भी पड़ेगा, पढ़ना भी पड़ेगा, निर्देशन में भी जाना पड़ेगा और वर्कशॉप्स भी करनी पड़ेंगी। अगर आप यह सोचेंगे कि सिर्फ अभिनय करके थिएटर कर लेंगे, तो ऐसा नहीं हो पाएगा। लेकिन अगर आप हर स्तर पर खुद को तैयार करते हैं, तो थिएटर आपको बहुत कुछ देता है। थिएटर ने मुझे सिर्फ पहचान ही नहीं दी, बल्कि जीवन भी दिया है।

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