हनुमत निवास के वयोवृद्ध महंत सियाशरण को अयोध्या के दिग्गज महंतों ने समारोह पूर्वक श्रद्धांजलि दी।इस अवसर पर कहा गया कि वे सिद्ध पीठ हनुमत निवास में विराजमान श्रीहनुमान की अर्चना और भगवान श्रीराम आर सीता के स्वरूपों के श्रृंगार में दशकों तक लीन रहे।अयोध्या के संत उनको सम्मान से श्रृंगारी जी कहकर पुकारते थे। हनुमत निवास के वयोवृद्ध महंत को संतों ने योग्य उत्तराधिकारी के रूप में आचार्य डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण को चुनने के निर्णय की जमकर सराहना की। अधिकांश संतों ने साकेतवासी महंत से जुड़ा अनुभव साझा किया और उनकी सरलता, सहजता तथा जीवंतता के प्रसंगों से रोमांचित किया। श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में कैसरगंज सहित अनेक क्षेत्रों से छह बार सांसद रहे कुश्ती संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह एवं एक अन्य पूर्व सांसद लल्लू सिंह भी रहे और उन्होंने साकेतवासी महंत की समझ एवं उदारता की प्रशंसा की । श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामदिनेशाचार्य, जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी वासुदेवाचार्य विद्याभास्कर, जगद्गुरु स्वामी अनंताचार्य, लक्ष्मण किलाधीश महंत मैथिलीरमण शरण, रंगमहल के महंत रामशरण दास,रामवल्लभाकुंज के प्रमुख स्वामी राजकुमार दास, जगद्गुरु जानकी घाट बड़ास्थान के महंत जन्मेजय शरण, अर्जुन द्वाराचार्य कृपालु रामभूषण देवाचार्य, बावन मंदिर के महंत वैदेहीवल्लभ शरण, सियाराम किला के महंत करुणानिधान शरण, नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास, रामकुंज कथा मंडप के महंत रामानंद दास, हनुमानगढ़ी के सरपंच महंत रामकुमारदास, हनुमानगढ़ी से ही जुड़े महंत गौरीशंकर दास, राम कचहरी मंदिर के महंत शशिकांत दास, महंत बलरामदास, रंगवाटिका के महंत हरिसिद्ध शरण जैसे प्रमुख धर्माचार्यों सहित महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य राजेंद्र प्रताप सिंह, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष अवधेश पांडेय बादल आदि रहे। महंत मिथिलेश नंदिनी शरण संतों एवं विशिष्ट लोगों से मिली आत्मीयता से अपनी सेवा के प्रति संकल्पित नजर आए। उन्होंने कहा कि ऐसी आत्मीयता न केवल बड़ी से बड़ी चुनौती का सामना करने का संबल बनती है, बल्कि आजीवन के लिए ऋणी बनाने वाली है।
अब जाने कौन थे महंत सिया शरण
साकेत वासी महंत सियाशरण के आरंभिक संस्कारों के चलते आराध्य के प्रति गहन समर्पण उन्हें अयोध्या खींच लाई। हनुमत निवास के दूसरे आचार्य रघुनंदन शरण से दीक्षित सियाशरण ने समर्पित अर्चक और श्रृंगारी के रूप में छाप छोड़ी। संतों की मान्यता है कि श्रीराम, सीता एवं अन्य त्रेतायुगीन पात्रों का इतने मनोयोग से श्रृंगार करते थे। आराध्य के प्रति सियाशरण का गहन भाव एवं गहरी निष्ठा थी। 1994 से महंत बने सियाशरण बीमार चल रहे थे और 94 वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम श्वांस ली।


