Peace Through Strength: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) की विदेश नीति (Trump Foreign Policy) ने हाल के महीनों में ऐसा मोड़ लिया है, जो उनके कट्टर समर्थकों को सोचने पर मजबूर कर रहा है। पहले जहां ‘अमेरिका फर्स्ट’ का नारा अलगाववाद की बात करता था, अब ट्रंप ‘शक्ति से शांति’ की पुरानी रिपब्लिकन विचारधारा अपना रहे हैं। यह बदलाव मेगा मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA Republicans) गुट के रिपब्लिकन सांसदों के लिए बड़ा सरप्राइज साबित हो रहा है। वे सोच रहे हैं (Peace Through Strength) कि क्या ट्रंप वाकई वैश्विक मामलों में दखल बढ़ा रहे हैं, या यह महज उनकी चालाकी भरी रणनीति है? जानिए कैसे ट्रंप के फैसले जीओपी को दो हिस्सों में बांट रहे हैं।
ईरान और वेनेजुएला पर ट्रंप के सख्त कदम
ट्रंप ने हाल ही में ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दिया, जो उनके पहले कार्यकाल की तुलना में कहीं ज्यादा आक्रामक कदम है। इसी तरह, वेनेजुएला के तट पर ड्रग तस्करों की नावों पर छह हमले हुए, जिनमें से एक के बाद बचे लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। ट्रंप ने खुद सीआईए की गुप्त कार्रवाइयों को हरी झंडी दी। ये कदम अमेरिका की सुरक्षा को मजबूत करने के नाम पर लिए गए, लेकिन मैगा के अलगाववादी सोच के खिलाफ हैं। सीनेटर सिंथिया लुमिस जैसे नेता अब कह रहे हैं कि ट्रंप के फैसले सही हैं, क्योंकि ये ड्रग तस्करी रोक रहे हैं। लेकिन रैंड पॉल जैसे कट्टरपंथी चिल्ला रहे हैं, “बिना नाम जाने नावें उड़ाना गलत है। सुबूत दोहराओ!” यह बहस दिखाती है कि ट्रंप की ताकत कैसे मैगा को हिला रही है।
यूक्रेन और गाजा: सहायता या दबाव?
यूक्रेन को लेकर ट्रंप का रवैया भी बदल गया। उन्होंने राष्ट्रपति जेलेंस्की से मिलकर तोमाहॉक मिसाइलों की मांग सुनी, लेकिन अभी वादा नहीं किया। रूस के साथ शिखर सम्मेलन की बात भी की। मैगा वाले पहले यूक्रेन फंडिंग रोकने की बात करते थे, लेकिन अब जोश हॉली जैसे सांसद कह रहे हैं, “यह रूस को बातचीत की मेज पर लाने का तरीका है।”
सीजफायर का रास्ता खुलने की बात
गाजा में इजरायल को खुली छूट देकर हमास पर दबाव बनाना ट्रंप को भा रहा है, जो बंधकों की रिहाई के लिए सीजफायर का रास्ता खोल रहा। लेकिन अर्जेंटीना को 20 अरब डॉलर का बैलआउट? यह मैगा को चुभ रहा है। पॉल ने कहा, “हमारे यहां 2 ट्रिलियन का घाटा, फिर दूसरे देश को क्यों दें?” ट्रंप के ये फैसले दिखाते हैं कि वह न तो पूरी तरह अलगाववादी हैं, न ही पुरानी तरह के हॉक।
मेगा नेताओं की प्रतिक्रियाएं: समर्थन या संशय ?
मेगा कैम्प में रिएक्शन मिले-जुले हुए हैं। लुमिस कहती हैं, “ट्रंप सब सही कर रहे हैं, क्योंकि वह दुनिया को बेहतर बना रहे।” हॉली मानते हैं कि ट्रंप की खासियत यही है- वह विचारधारा से बंधे नहीं, नतीजे चाहते हैं। खासकर वेनेजुएला हमलों की कानूनी वैधता का रैंड पॉल खुले तौर पर विरोध कर रहे हैं। वहीं पारंपरिक जीओपी वाले जैसे जेम्स रिश कहते हैं, “ट्रंप दोनों पक्षों की सुनते हैं, मार्को रुबियो जैसे सलाहकार हावी हैं।” यह फॉलोअप दिखाता है कि मैगा को अब केस-बाय-केस सोचना पड़ेगा। ट्रंप की नीति ओबामा की ‘स्टूपिड चीजें मत करो’ वाली सावधानी से मिलती-जुलती लग रही है।
ताकत से शांति कैसे आएगी ?
एक अलग कोण से देखें तो ट्रंप की ‘शक्ति से शांति’ रोनाल्ड रीगन की याद दिलाती है, जब अमेरिका ने रक्षा बजट बढ़ा कर सोवियत संघ को घुटनों पर ला दिया था, लेकिन मेगा युवा इराक युद्ध की असफलताओं से चूर हैं, इसलिए वैश्विक दखल से डरते हैं। ट्रंप का फायदा? वह इजरायल-हमास सीजफायर और गाजा शांति योजना से नोबेल प्राइज की दौड़ में हैं, लेकिन अगर यूक्रेन में फंस गए, तो मैगा बगावत कर सकता है। यह नीति अमेरिका को मजबूत बनाएगी या नई जंगें छेड़ेगी? समय बताएगा।
जब तक जीत हो, हम साथ हैं
बहरहाल ट्रंप की विदेश नीति ने मैगा को मजबूर कर दिया है कि वे पुरानी सोच छोड़ें। यह बदलाव जीओपी को एकजुट कर सकता है या फाड़ सकता है। फिलहाल, ट्रंप के समर्थक कह रहे हैं, “जब तक जीत हो, हम साथ हैं।” लेकिन सवाल बाकी है- क्या ‘शक्ति से शांति’ अमेरिका फर्स्ट का नया रूप बनेगी ?
(वॉशिंग्टन पोस्ट का यह आलेख पत्रिका.कॉम पर दोनों समूहों के बीच विशेष अनुबंध के तहत पोस्ट किया गया है।)


