डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर के स्नातकोत्तर पंचकर्म विभाग में तीन विशेष इकाइयों की शुरुआत की गई है। इन इकाइयों में विशिष्ट बाल पंचकर्म यूनिट, क्रियाकल्प यूनिट और सूक्ष्म पंचकर्म इकाई शामिल हैं। इन यूनिटों का उद्देश्य बच्चों, इंद्रियों और जीवनशैली से जुड़े रोगों का आयुर्वेदिक पद्धति से उपचार करना है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डॉ. गोविंद सहाय शुक्ला की उपस्थिति में इन यूनिटों का उद्घाटन हुआ। इस अवसर पर मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. गोविंद गुप्ता, डॉ. बीएन शर्मा, डॉ. दिनेश शर्मा, डॉ. मनोज अरोड़ा और पंचकर्म विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञान प्रकाश शर्मा भी मौजूद रहे। बाल पंचकर्म यूनिट की विशेषता विशिष्ट बाल पंचकर्म यूनिट में बच्चों की आयु और प्रकृति के अनुसार अभ्यंग (औषधीय तेल से मालिश), स्वेदन (भाप द्वारा पसीना निकालना), नस्य (नाक में औषधीय तेल डालना), शिरोधारा (माथे पर तेल की धारा) और मृदु बस्ती (हल्की औषधीय एनिमा) जैसी प्रक्रियाएं की जाएंगी। यह यूनिट बच्चों में दुर्बलता, पाचन विकार, बार-बार सर्दी-जुकाम, नींद की कमी और ध्यान की समस्या में लाभकारी सिद्ध होगी। यूनिट को बाल-अनुकूल वातावरण में तैयार किया गया है ताकि बच्चे सहजता से चिकित्सा प्राप्त कर सकें। इस यूनिट में ऑटिज़्म (आत्मकेंद्रित विकार), मिर्गी (दौरे की बीमारी), सेरेब्रल पाल्सी (मस्तिष्क पक्षाघात), डीएमडी (मांसपेशियों की कमजोरी की बीमारी) और ब्रॉन्कियल अस्थमा (दमा) जैसे विशेष बाल रोगों का पंचकर्म चिकित्सा से उपचार किया जाएगा। क्रियाकल्प यूनिट में होंगे ये उपचार विशिष्ट क्रियाकल्प (इंद्रियों की विशेष चिकित्सा) यूनिट में अक्षितर्पण (आंखों में औषधीय घी रखना), कर्णपूरण (कान में औषधीय तेल भरना), नस्य (नाक में औषध डालना), गंडूष (मुंह में औषधीय तेल या काढ़ा रखना) और कवला (औषधीय कुल्ला) जैसी पारंपरिक क्रियाएं की जाएंगी। ये प्रक्रियाएं नेत्र (आंख), कर्ण (कान), नासिका (नाक) और मुख (मुंह) संबंधी रोगों में अत्यंत प्रभावी मानी जाती हैं। इस यूनिट में टिनिटस (कान में घंटी की आवाज), ग्लूकोमा (आंख का काला मोतिया), मायोपिया (दूर का धुंधला दिखना), फेशियल पैरालिसिस (चेहरे का लकवा), माइग्रेन (आधे सिर का दर्द) और टॉन्सिलाइटिस (गले की सूजन) जैसे ईएनटी (नाक-कान-गला) और नेत्र रोगों का उपचार होगा। यह इंद्रियों की कार्यक्षमता बढ़ाने और जीवनशैली से जुड़ी समस्याओं को प्राकृतिक रूप से सुधारने में सहायक होगी। सूक्ष्म पंचकर्म से मिलेगा त्वरित लाभ सूक्ष्म पंचकर्म (मिनी पंचकर्म) प्रक्रिया इकाई आधुनिक जीवनशैली के अनुरूप विकसित की गई है। इसमें कम समय में सरल विधियों से चिकित्सीय लाभ प्राप्त किए जाते हैं। इस यूनिट में प्रतिमर्श नस्य (रोज नाक में तेल डालना – 2 मिनट), शिरोलेप (सिर पर औषधीय लेप लगाना – 5 मिनट), कर्णपूरण (कान में गर्म औषधीय तेल भरना – 10-15 मिनट) और अग्निकर्म (गर्म धातु की सलाई से उपचार – 5-10 मिनट) जैसी प्रक्रियाएं की जाएंगी। ये प्रक्रियाएं तनाव, अनिद्रा (नींद न आना), सिरदर्द, माइग्रेन (आधासीसी), सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (गर्दन की अकड़न), पीठ दर्द, गठिया और जोड़ों के दर्द में लाभकारी होंगी। उद्देश्य और महत्व इन तीनों यूनिटों की स्थापना का उद्देश्य आयुर्वेद के पंचकर्म विज्ञान (शरीर शुद्धि की आयुर्वेदिक पद्धति) को आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित करना है। यह पहल रोगियों को सुरक्षित, कोमल और प्रभावी उपचार उपलब्ध कराने के साथ-साथ विद्यार्थियों और शोधार्थियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण और अनुसंधान के उत्कृष्ट अवसर भी प्रदान करेगी। सूक्ष्म पंचकर्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि व्यस्त जीवनशैली वाले लोग भी 5 से 15 मिनट में इसका लाभ उठा सकते हैं। यह साइड इफेक्ट (दुष्प्रभाव) रहित चिकित्सा पद्धति है जो प्राकृतिक औषधियों से की जाती है। विशेष बाल रोगों में पंचकर्म बाल पंचकर्म यूनिट में विशेष रूप से ऑटिज़्म में शिरोधारा (माथे पर तेल की धारा), शिरोधबस्ति (सिर पर औषधीय तेल की टोपी) और शिरोलेप (सिर पर लेप) की जाएगी। मिर्गी में प्रधानमान नस्य (मुख्य नाक उपचार), तीक्ष्ण धूमपान (औषधीय धूम्रपान) और अभ्यंग (तेल मालिश) किया जाएगा। सेरेब्रल पाल्सी में विरेचन कर्म (औषधीय दस्त द्वारा शुद्धि), बस्ती कर्म (औषधीय एनिमा), शिरोधारा और स्नेह स्वेदन (तेल से भाप उपचार) के साथ फिजियोथेरेपी भी दी जाएगी। ब्रॉन्कियल अस्थमा में अभ्यंग, लवण पोटली स्वेदन (नमक की गर्म पोटली से सिकाई), वमन कर्म (औषधीय वमन) और विरेचन कर्म किए जाएंगे। इंद्रिय रोगों की चिकित्सा क्रियाकल्प यूनिट में टिनिटस (कान में घंटी की आवाज) के लिए विरेचन कर्म, कर्ण पूरण (कान में औषधीय तेल) और कर्ण धूपन (कान में औषधीय धूम) किया जाएगा। ग्लूकोमा (आंख का दबाव बढ़ना) और मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) में विरेचन कर्म, जलौकावच्छारण (जोंक लगाना), अक्षितर्पण (आंखों में औषधीय घी), आस्य च्युतन (आंखों से दोष निकालना) और पारीषेक (आंखों को औषधीय काढ़े से धोना) की जाएगी। फेशियल पैरालिसिस (चेहरे का लकवा) में नस्य कर्म, कुक्षिलावच्छादन स्वेदन (पेट को छोड़कर पूरे शरीर पर भाप), स्नेहन (तेल लगाना), अभ्यंग (मालिश) और शिरोधबस्ति किया जाएगा। माइग्रेन में वमन कर्म (औषधीय उल्टी), विरेचन कर्म, नस्य कर्म और शिरोधारा जैसे उपचार होंगे।


