मूक-बधिर बच्चों के लिए श्रवण श्रुति योजना 1 जुलाई से फुलवारी शरीफ के आंगनबाड़ी केंद्र से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुई है। इसमें जन्म से 6 साल तक के बच्चों की सुनने की क्षमता की जांच की जाएगी। हर एक आंगनबाड़ी केंद्र में रोजाना 100 बच्चों की स्क्रीनिंग होगी। सुनने की समस्या पाए जाने पर बच्चे की दोबारा जांच की जाएगी। पटना के DM ने पहली बार इसे गया से शुरू किया था जब वह गया के डीएम थे। अब पटना में यह पहली बार शुरू होने जा रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत फुलवारी शरीफ के आंगनबाड़ी केंद्र को चुना गया है। अगर यह सफल होता है तो पूरे पटना और फिर पूरे बिहार में यह शुरू किया जाएगा। गौनपूरा और कुरकुरी मिलाकर 8 बच्चों की हुई पहचान फुलवारी शरीफ की बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कुमारी अर्चना ने बताया, ‘जरूरत पड़ने पर बच्चों के कान का ऑपरेशन किया जाएगा। इसमें कॉकलियर इंप्लांट लगाया जाएगा। यह इंप्लांट करीब 6 से 8 लाख रुपए का होता है। सरकार इसका पूरा खर्च उठाएगी’। ‘ऑपरेशन के बाद बच्चों को स्पीच थेरेपी दी जाएगी। इससे उन्हें बोलने में मदद मिलेगी। अब तक की स्क्रीनिंग में गौनपूरा में 5 और कुरकुरी में 3 बच्चों की पहचान की गई है। इनमें से एक बच्चा पूरी तरह से सुनने में असमर्थ है। इस बच्चे की दोबारा स्क्रीनिंग की जाएगी’। जो इलाज नहीं करा पाते उनके लिए कारगर योजना यह योजना उन परिवारों के लिए वरदान साबित होगी, जो आर्थिक कारणों से अपने बच्चों का इलाज नहीं करा पाते थे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की मेडिकल मैनेजर शिप्रा चौहान ने बताया, ‘इस योजना के लिए फुलवारी शरीफ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर की टीम की भी मदद ली जा रही है’। दरअसल, बहरापन भारत में सबसे आम जन्मजात दिव्यांगता में से एक है। यह अन्य जन्मजात दोषों जैसे सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हाइपोथायरायडिज्म आदि की तुलना में 30 गुना अधिक आम होने का अनुमान है। भारत में 360 मिलियन बहरे लोग बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कुमारी अर्चना ने बताया, ‘डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 360 मिलियन बहरे लोग हैं। भारत की लगभग 7 प्रतिशत आबादी बहरेपन से पीड़ित है। 10 लाख से अधिक बच्चों को अपनी सुनने की शक्ति को बढ़ाने के लिए या तो सुनने की मशीन या कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी की जरूरत है। ‘न्यूक्लियस डिवाइस के साथ पहला इंप्लांट 1995 में हुआ। भारत में हर साल 11 लाख से अधिक बच्चे बहरे पैदा होते हैं। देश में लगभग केवल 30,000 कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी की गई हैं’। आगे कुमारी अर्चना ने कहा, ‘स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ राज्यों में बहरेपन को रोकने और समस्या को सॉल्व करने के लिए ADIP (दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता) परियोजना शुरू की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतरराष्ट्रीय आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर 1000 में से 5-6 बच्चे बहरे पैदा होते हैं। भारत में हर दिन लगभग 45000 बच्चे जन्म लेते हैं, जिनमें से लगभग 250-300 बच्चे बहरेपन के साथ पैदा होते हैं’। ‘अध्ययन के अनुसार, बहरेपन के बारे में जागरूकता की कमी के कारण 84.1 प्रतिशत माता-पिता जानते थे कि बच्चों की सुनने की क्षमता कम होने के लिए जांच की जानी चाहिए। जन्म के समय उन्हें चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है, लेकिन केवल 15.9 प्रतिशत ने ही वास्तव में अपने बच्चे की जांच करवाई। उसने नवजात शिशु की जांच के बारे में जागरूकता की आवश्यकता को उजागर किया’। ADIP योजना के तहत फाउंडेशन कैसे करता है काम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की मेडिकल मैनेजर शिप्रा चौहान ने बताया, ‘ADIP योजना (सहायक उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिए दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता) भारत सरकार ने एक कार्यक्रम शुरू किया है।हमारा फाउंडेशन 5 साल से कम के बच्चों को पंजीकृत करता है। उनकी डिटेल मुंबई में अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग डिसेबिलिटीज (दिव्यांगजन) के ऑनलाइन पोर्टल पर जमा करता है। ‘संस्थान डॉक्यूमेंट्स की पुष्टि करता है और इन बच्चों को रजिस्टर करता है। स्वीकृति मिलने पर, कानपुर में ALIMCO (आर्टिफिशियल लिम्ब्स मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) जरूरी प्रत्यारोपण खरीदता है। उन्हें अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग डिसेबिलिटी को भेजता है। इसके बाद, संस्थान हमें प्रत्यारोपण भेजता है। फिर हम सर्जरी करते हैं और भारत सरकार अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट के जरिए सर्जरी और पुनर्वास के पैसे देती है। 2024 फरवरी से रुकी है ADIP योजना यह योजना फरवरी 2024 से रोक दी गई है। नतीजतन, ये सभी बच्चे सर्जरी का इंतजार कर रहे हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इष्टतम प्रभावशीलता के लिए प्रत्यारोपण सर्जरी बच्चे के 5 साल का होने से पहले की जानी चाहिए। पटना में बच्चों के लिए सीएसआर सहायता का अनुरोध शिप्रा चौहान ने बताया, ‘सीएसआर से अनुरोध करते हैं कि वे पटना में 100 बच्चों को शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप की वेटिंग में सहायता करें। उत्तर प्रदेश सरकार के 6 लाख रुपए के आवंटन को बराबर बजट के साथ, हमारा फाउंडेशन जरूरी मशीनें खरीद सकता है, सर्जरी कर सकता है और हर बच्चे के लिए व्यापक दो साल का पुनर्वास कार्यक्रम प्रदान कर सकता है। सर्जरी कर सकता है और प्रत्येक बच्चे के लिए व्यापक दो साल का पुनर्वास कार्यक्रम प्रदान कर सकता है। मूक-बधिर बच्चों के लिए श्रवण श्रुति योजना 1 जुलाई से फुलवारी शरीफ के आंगनबाड़ी केंद्र से पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुई है। इसमें जन्म से 6 साल तक के बच्चों की सुनने की क्षमता की जांच की जाएगी। हर एक आंगनबाड़ी केंद्र में रोजाना 100 बच्चों की स्क्रीनिंग होगी। सुनने की समस्या पाए जाने पर बच्चे की दोबारा जांच की जाएगी। पटना के DM ने पहली बार इसे गया से शुरू किया था जब वह गया के डीएम थे। अब पटना में यह पहली बार शुरू होने जा रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत फुलवारी शरीफ के आंगनबाड़ी केंद्र को चुना गया है। अगर यह सफल होता है तो पूरे पटना और फिर पूरे बिहार में यह शुरू किया जाएगा। गौनपूरा और कुरकुरी मिलाकर 8 बच्चों की हुई पहचान फुलवारी शरीफ की बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कुमारी अर्चना ने बताया, ‘जरूरत पड़ने पर बच्चों के कान का ऑपरेशन किया जाएगा। इसमें कॉकलियर इंप्लांट लगाया जाएगा। यह इंप्लांट करीब 6 से 8 लाख रुपए का होता है। सरकार इसका पूरा खर्च उठाएगी’। ‘ऑपरेशन के बाद बच्चों को स्पीच थेरेपी दी जाएगी। इससे उन्हें बोलने में मदद मिलेगी। अब तक की स्क्रीनिंग में गौनपूरा में 5 और कुरकुरी में 3 बच्चों की पहचान की गई है। इनमें से एक बच्चा पूरी तरह से सुनने में असमर्थ है। इस बच्चे की दोबारा स्क्रीनिंग की जाएगी’। जो इलाज नहीं करा पाते उनके लिए कारगर योजना यह योजना उन परिवारों के लिए वरदान साबित होगी, जो आर्थिक कारणों से अपने बच्चों का इलाज नहीं करा पाते थे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की मेडिकल मैनेजर शिप्रा चौहान ने बताया, ‘इस योजना के लिए फुलवारी शरीफ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर की टीम की भी मदद ली जा रही है’। दरअसल, बहरापन भारत में सबसे आम जन्मजात दिव्यांगता में से एक है। यह अन्य जन्मजात दोषों जैसे सिकल सेल एनीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस, हाइपोथायरायडिज्म आदि की तुलना में 30 गुना अधिक आम होने का अनुमान है। भारत में 360 मिलियन बहरे लोग बाल विकास परियोजना पदाधिकारी कुमारी अर्चना ने बताया, ‘डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 360 मिलियन बहरे लोग हैं। भारत की लगभग 7 प्रतिशत आबादी बहरेपन से पीड़ित है। 10 लाख से अधिक बच्चों को अपनी सुनने की शक्ति को बढ़ाने के लिए या तो सुनने की मशीन या कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी की जरूरत है। ‘न्यूक्लियस डिवाइस के साथ पहला इंप्लांट 1995 में हुआ। भारत में हर साल 11 लाख से अधिक बच्चे बहरे पैदा होते हैं। देश में लगभग केवल 30,000 कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी की गई हैं’। आगे कुमारी अर्चना ने कहा, ‘स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ राज्यों में बहरेपन को रोकने और समस्या को सॉल्व करने के लिए ADIP (दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता) परियोजना शुरू की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतरराष्ट्रीय आंकड़े कहते हैं कि भारत में हर 1000 में से 5-6 बच्चे बहरे पैदा होते हैं। भारत में हर दिन लगभग 45000 बच्चे जन्म लेते हैं, जिनमें से लगभग 250-300 बच्चे बहरेपन के साथ पैदा होते हैं’। ‘अध्ययन के अनुसार, बहरेपन के बारे में जागरूकता की कमी के कारण 84.1 प्रतिशत माता-पिता जानते थे कि बच्चों की सुनने की क्षमता कम होने के लिए जांच की जानी चाहिए। जन्म के समय उन्हें चिकित्सा सहायता की आवश्यकता है, लेकिन केवल 15.9 प्रतिशत ने ही वास्तव में अपने बच्चे की जांच करवाई। उसने नवजात शिशु की जांच के बारे में जागरूकता की आवश्यकता को उजागर किया’। ADIP योजना के तहत फाउंडेशन कैसे करता है काम सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की मेडिकल मैनेजर शिप्रा चौहान ने बताया, ‘ADIP योजना (सहायक उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिए दिव्यांग व्यक्तियों को सहायता) भारत सरकार ने एक कार्यक्रम शुरू किया है।हमारा फाउंडेशन 5 साल से कम के बच्चों को पंजीकृत करता है। उनकी डिटेल मुंबई में अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग डिसेबिलिटीज (दिव्यांगजन) के ऑनलाइन पोर्टल पर जमा करता है। ‘संस्थान डॉक्यूमेंट्स की पुष्टि करता है और इन बच्चों को रजिस्टर करता है। स्वीकृति मिलने पर, कानपुर में ALIMCO (आर्टिफिशियल लिम्ब्स मैन्युफैक्चरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) जरूरी प्रत्यारोपण खरीदता है। उन्हें अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पीच एंड हियरिंग डिसेबिलिटी को भेजता है। इसके बाद, संस्थान हमें प्रत्यारोपण भेजता है। फिर हम सर्जरी करते हैं और भारत सरकार अली यावर जंग नेशनल इंस्टीट्यूट के जरिए सर्जरी और पुनर्वास के पैसे देती है। 2024 फरवरी से रुकी है ADIP योजना यह योजना फरवरी 2024 से रोक दी गई है। नतीजतन, ये सभी बच्चे सर्जरी का इंतजार कर रहे हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इष्टतम प्रभावशीलता के लिए प्रत्यारोपण सर्जरी बच्चे के 5 साल का होने से पहले की जानी चाहिए। पटना में बच्चों के लिए सीएसआर सहायता का अनुरोध शिप्रा चौहान ने बताया, ‘सीएसआर से अनुरोध करते हैं कि वे पटना में 100 बच्चों को शल्य चिकित्सा हस्तक्षेप की वेटिंग में सहायता करें। उत्तर प्रदेश सरकार के 6 लाख रुपए के आवंटन को बराबर बजट के साथ, हमारा फाउंडेशन जरूरी मशीनें खरीद सकता है, सर्जरी कर सकता है और हर बच्चे के लिए व्यापक दो साल का पुनर्वास कार्यक्रम प्रदान कर सकता है। सर्जरी कर सकता है और प्रत्येक बच्चे के लिए व्यापक दो साल का पुनर्वास कार्यक्रम प्रदान कर सकता है।
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