कोई डर नहीं…जंग होगी तो हमारे बच्चे तैयार हैं:मुरैना में फौजियों के गांव के लोग बोले- हमारा एक ही नियम, या तो मरेंगे या मारेंगे

सरकार ने काम अच्छा किया है, आतंकवादियों को घर में घुसकर मारा है। हम तो ये चाहते हैं कि आतंकवाद जड़ से खत्म हो। यदि इसके लिए जंग होती है, तो हो ही जाना चाहिए। हमारे गांव के बच्चे तैयार है जंग लड़ने के लिए। कटैलापुरा गांव के वीरेंद्र सिंह तोमर जब ये कहते हैं तो उनके चेहरे पर न तो कोई डर दिखाई देता है न ही कोई चिंता। जबकि, उनका बेटा इस समय मोर्चे पर तैनात है। उन्हीं के पास बैठे लोकेंद्र सिंह तोमर भी भारत-पाकिस्तान के बीच बन रहे जंग के हालातों से ज्यादा चिंतित नहीं है। दरअसल, मुरैना जिले का कटैलापुरा वो गांव है जहां हर घर में फौजी है। कोई सेना में है तो कोई अर्धसैनिक बलों में अपनी सेवाएं दे रहा है। चंबल अंचल के मुरैना और भिंड ये दो जिले ऐसे हैं जहां सेना में जाने का सबसे ज्यादा क्रेज है। जिला सैनिक कल्याण बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक दोनों जिलों से करीब 40 हजार लोग भारतीय सेना में है। इस समय ज्यादातर गांवों के फौजी बॉर्डर पर तैनात है। दैनिक भास्कर ने इनमें से दो गांवों का दौरा कर समझा कि भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के हालातों पर गांव के लोग क्या सोचते हैं? टीवी चैनल और मोबाइल पर निगाह जमाए हुए
मुरैना जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर है खड़ियाहार गांव। भास्कर की टीम जब इस गांव में पहुंची तो सुबह के करीब 9.30 बज रहे थे। गांव की गलियां सूनी थी। स्कूलों की छुट्टियां हैं, लिहाजा बच्चे गलियों में खेलते दिख रहे थे। हमने बच्चों से पूछा कि बड़े लोग कहां है, तो उन्होंने बताया कि ज्यादातर लोग टीवी या मोबाइल में ही बिजी है। वहां से गुजर रहे एक ग्रामीण ने बताया कि गांव के कई फौजी इस समय मोर्चे पर तैनात है। वहां जो भी कुछ चल रहा है उससे हम लोग सीधे जुड़े हैं। मैं खुद रात 3 बजे तक खबरें देखकर सोया हूं। सुबह पांच बजे से उठकर फिर खबरें ही देख रहा हूं। गांव वाले बोले- डर किस बात का, हमें चिंता नहीं इसी गांव में रहते हैं शिशुपाल सिंह तोमर। परिवार के 30 से 35 लोग सेना में अपनी सेवाएं दे रहे है। उनके दोनों भाई भी सेना में है। शिशुपाल बताते हैं कि एक भाई रिटायर हो चुके हैं और दूसरा अभी जैसलमेर बॉर्डर पर है। उनसे पूछा कि अभी बॉर्डर पर जो हालात है उससे चिंता या डर तो नहीं लग रहा, तो शिशुपाल बोले- डर किस बात का.. जंग के लिए तो हम भी तैयार है। हमें भी बुला लेंगे तो चले जाएंगे। हमारे गांव में तो फौज में जाने के लिए हर युवक तैयार रहता है। यहां का तो एक ही नियम है कि या तो मरेंगे या मारेंगे। हमारे गांव का युवक शहीद हो जाएगा, मगर मोर्चे से हटेगा नहीं। जनपद सदस्य बोला- मेरा भी फौज में जाने का सपना था जितेंद्र सिंह तोमर खड़ियाहार जनपद सदस्य हैं। वे कहते हैं मैं भी फौज में जाना चाहता था। ये मेरी पहली प्राथमिकता थी, लेकिन स्कूल के दिनों में वॉलीबॉल खेलता था जिससे मेरी उंगली टेढ़ी हो गई। मैंने रिटर्न एग्जाम तो क्लियर कर लिया था मगर उंगली टेढ़ी होने से फिजिकल में मामला फंस गया। वे बताते हैं हमारे खड़ियाहार गांव में फौज में जाने की परंपरा है। 5-6 शहीदों के परिवार भी है। जो भी बच्चा 10-12वीं पास करता है उसकी प्राथमिकता देशसेवा की होती है। इस समय मोर्चे पर कम से कम गांव से 20 से 50 लोग तैनात है। उन्हीं के पास खड़े अंकुर सिंह तोमर सेना की तैयारी कर रहे हैं। अंकुर भी कहता है कि हमारे गांव से आर्मी में बहुत से लोग हैं। ग्रामीणों की इच्छा- पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब मिले
इसी गांव के रहने वाले साहब सिंह तोमर दो साल पहले 2023 में शहीद हुए हैं। उनकी बहू कल्पना तोमर बताती है कि पापा की मणिपुर में पोस्टिंग थी। जिस दिन वो शहीद हुए उसी दिन सुबह उनसे बात हुई थी। दोपहर को 2.30 से 3 बजे कॉल आया कि वो शहीद हो गए। उस समय मणिपुर के हालात बेहद खराब थे। उनकी पत्नी गुड्डी तोमर कहती है कि उनकी मौत की असली वजह क्या थी वो हमें नहीं बताई गई। ऊपरवाले की मर्जी रही होगी। गुड्डी का बेटा भी सीआरपीएफ में है। इस समय नीमच में है। उनसे पूछा इस समय भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की स्थिति है। गुड्डी के कुछ कहने से पहले उनकी बहू कल्पना कहती है- सेना ने जो किया वो तो मुझे अच्छा लगा। पाकिस्तान बिना कारण भारत के लोगों पर हमला करता है। पिताजी शहीद हुए तब मैं एक साल का था
इसी गांव में रहते हैं सौरभ सिंह तोमर। सौरभ फौज में नहीं है, मगर उनके पिता फौज में रहते हुए शहीद हुए। सौरभ कहते हैं- पिताजी कारगिल युद्ध में शहीद हुए। वो राजपूत रेजिमेंट से थे और चेन वाली गाड़ी( टैंक) चलाते थे। मेरे दादाजी भी फौज में रहे। हमारे घर में शुरू से ही फौज में जाने की परंपरा रही है। वो क्यों नहीं गए फौज में? इस सवाल का जवाब देते हुए सौरभ ने कहा- पिताजी जब शहीद हुए तब मैं केवल 1 साल का था। आज मैं 26 साल का हूं। मां ने अकेले ही मुझे बड़ा किया है। मैंने भी इच्छा जाहिर की थी, लेकिन उन्होंने मना कर दिया। सौरभ बताते हैं कि हमारे चाचा-ताऊ के परिवार से भी कई लोग फौज में हैं। अब पाकिस्तान ने जो किया उसे मुंहतोड़ जवाब तो देना ही चाहिए। स्कूल के टीचर बोले- हर दूसरा घर का युवा फौज में
खड़ियाहार के प्रायमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक देवीराम कटारे के परिवार के लोग भी सेना में है। बताते हैं कि 12 साल पहले मेरा भतीजा विनय कटारे शहीद हो गया था। उसकी 12-13 दिन बाद शादी होने वाली थी। मेरी दो बेटियां हैं। बड़े दामाद सीआरपीएफ में है। छोटी बेटी के पति एयरफोर्स में हैं। इस समय जैसलमेर में तैनात है। कटारे कहते हैं कि हमें गर्व है कि हमारे परिवार के लोग देश की सेवा में जुटे हैं। वैसे भी हमारे गांव का रिकॉर्ड है कि यहां हर कोई फौज में है। उनसे पूछा कि आखिर हर कोई फौज में ही क्यों जाना चाहता है, तो कटारे कहते हैं कि मैंने कहीं पढ़ा है कि चंबल नदी की वजह से यहां के लोगों में फाइटिंग जीन्स हैं। सभी लोग जानते हैं कि चंबल में बागी हुए हैं। यहां के लोगों को बहुत जल्दी गुस्सा आता है। इसी गुस्से का फौज में पॉजिटिव तौर पर इस्तेमाल हो रहा है। गांव के युवा ज्यादा पढ़ते नहीं है। 10वीं-12वीं के बाद क्वालिफिकेशन के हिसाब से फौज का करियर ही बचता है। बच्चे छुट्टी पर आए थे, लेकिन अब चले गए
कटैलापुरा गांव खड़ियाहार से 5 किमी दूर है। गांव की आबादी बेहद कम है, मगर घर से फौजी है। गांव के हरेंद्र सिंह कहते हैं। कुछ बच्चे छुट्टी लेकर घर आए थे। छुट्टी खत्म होने से पहले ही वापस मोर्चे पर चले गए। हरेंद्र कहते हैं कि हमारे गांव में फौज में जाने का ट्रेंड शुरू से चला आ रहा है। उन्हीं के पास बैठे रामप्रकाश कहते हैं कि मेरा बेटा फौज में है। उसकी जम्मू में पोस्टिंग है। वो छुट्टी में घर आया था। 11 मई को उसकी छुट्टियां खत्म हो रही थी। उससे पहले 6 मई को ही उसे वापस बुला लिया। रामप्रकाश के साथ बैठे लोकेंद्र कहते हैं कि हमारे घर में ही 8-10 लोग फौज में है। एक भाई और भतीजा जम्मू में पोस्टेड हैं। मेरे बड़े भाई कैप्टन वीरपाल सिंह कारगिल युद्ध लड़कर आए हैं। दो भाई धरमवीर और प्रेमसिंह शहीद हुए हैं। नानी बोली- नाती गया है तो चिंता हो रही है
कटैलापुरा गांव के पुरुष ज्यादा चिंतित दिखाई नहीं देती, लेकिन महिलाओं के चेहरे पर अपने बच्चों को लेकर चिंता साफ नजर आती है। उन्हीं में से एक है किसना। वो अपने बड़े बेटे प्रेमसिंह को खो चुकी है। कहती है- मेरा तो पूरा परिवार ही फौज में था। जेठ वगैरह सब फौज में रहे। बेटे ने 10 साल नौकरी की। जम्मू में उसकी पोस्टिंग थी। उस समय चुनाव हो रहे थे वो वोटिंग के लिए पेटियां लेकर अपने साथियों के साथ जा रहा था उसी वक्त हमला हुआ। उसने बाकी लोगों की जान बचाने के लिए खुद की जान दे दी। अब मेरा नाती भी फौज में है। बेटा मोर्चे पर है- रोजाना बात हो रही है
वीरेंद्र सिंह तोमर का बेटा पंजाब में मोर्चे पर तैनात है। वीरेंद्र कहते हैं कि बेटे के साथ बात हो रही है। उनसे पूछा कि क्या बेटे को लेकर चिंता हो रही है, तो बोले कि कोई चिंता नहीं है। वह देश की सेवा कर रहा है। गांव के और भी बच्चे हैं सभी देशसेवा में जुटे हैं। सरकार ने अच्छा काम किया है। आतंकवादियों को घर में घुसकर मारा है। हम तो चाहते हैं कि आतंकवाद खत्म हो। इसके लिए जंग भी होती है तो हो जाना चाहिए। हमारे बच्चे तैयार हैं।

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