कुटुंबा में खुदाई में मिले पुरानी सभ्यता के सिक्के:औरंगाबाद में 53 एकड़ में फैला है प्राचीन गढ़, CM नीतीश ने कहा था- यहां कई रहस्य छिपे

कुटुंबा में खुदाई में मिले पुरानी सभ्यता के सिक्के:औरंगाबाद में 53 एकड़ में फैला है प्राचीन गढ़, CM नीतीश ने कहा था- यहां कई रहस्य छिपे

औरंगाबाद का कुटुंबा गढ़ ऐतिहासिक स्थल है। यहां आज भी कई रहस्य दबे हैं। यह गढ़ 53 एकड़ में फैला है। यहां प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, सिक्के, धातु और अन्य वस्तुएं खुदाई में मिलीं। इस जगह को लेकर सीएम नीतीश कुमार ने कहा था कि यहां कई रहस्य छिपे है। पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई की। खुदाई में शुंगकाल, हर्षवर्द्धन काल और वैष्णव काल के अवशेष मिले। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह स्थल बिहार की सबसे पुरानी सभ्यता का संकेत देता है। गढ़ के बाहरी हिस्से में पुराना अवशेष, भव्य तालाब, मठ और किले के अवशेष हैं। यह प्रमाण है कि यहां इतिहास के स्वर्णिम काल के पन्ने बिखरे पड़े हैं। ग्रामीणों ने बताया कि वे बचपन से यहां खेलते थे। पर्व के समय घर की पुताई के लिए मिट्टी लाते थे। खुदाई के दौरान कई बार मूर्तियां, बर्तन और सिक्के निकलते थे। कुटुंबा निवासी जीतू तिवारी, चंद्रशेखर प्रसाद साहू, ब्रजेश तिवारी, अमरेंद्र दुबे, धर्मेंद्र दुबे आदि ने बताया कि गढ़ का इतिहास जानने की उत्सुकता बचपन से थी। जो अब भी पूरी नहीं हुई। यदि विस्तृत खुदाई कराई जाए तो यहां दफन पुराने इतिहास का पता चल सकेगा। खुदाई से इतिहास का चलेगा पता साल 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुटुंबा गढ़ पहुंचे थे। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि यहां इतिहास के कई रहस्य छिपे हैं। खुदाई कराई जाए तो गढ़ का इतिहास सामने आएगा। उन्होंने कहा था कि हमें अपनी विरासत को सहेजना चाहिए। यह आने वाली पीढ़ी के लिए प्राचीनकाल का आइना बनेगा। साल 2011 में सेवा यात्रा के दौरान वे कुटुंबा पुराना गढ़ और परता स्थित कल्पवृक्ष धाम पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कुटुंब गढ़ का अवलोकन किया। लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही यहां के इतिहास का पता लगाया जाएगा। मुख्यमंत्री के आदेश पर पुरातत्व विभाग की टीम ने खुदाई शुरू की। खुदाई में देवी-देवताओं की मूर्तियां, शीशे के बर्तन, लौह, ताम्र और पाषाणकालीन नमूने मिले। हर्षवर्धन काल के सिक्के भी बरामद हुए। डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी को वैष्णव काल के अवशेष भी मिले। इससे यह स्पष्ट हुआ कि यहां अलग-अलग धर्मों के प्रवर्तकों ने समय बिताया था। खुदाई में मिले सामानों को म्यूजियम में लगाया गया है। गढ़ की खुदाई नहीं हुई पूरी ग्रामीण बताते हैं कि 5 से 6 जगह पर खुदाई की गई थी। लेकिन आधा अधूरा खुदाई कर पुरातत्व विभाग की टीम वापस लौट गई। आज भी गढ़ का पूरा खुदाई नहीं कराया गया है। लोगों ने सरकार से विस्तृत पैमाने पर खुदाई करवा कर गढ़ में दफन इतिहास का पता लगाए जाने की मांग की है। इतिहासकारों के अनुसार, यह गढ़ पालवंश और क्षत्रिय वंश के किले के रूप में इस्तेमाल होता था। यहां राजपूत रानियों ने एक साथ जौहर किया था। आज भी स्कूल के गेट के पास उस स्थान पर ग्रामीण पूजा करते हैं। गढ़ में माता पार्वती की खंडित मूर्तियां, खंडित शिवलिंग और अन्य मूर्तियां मिलीं। इनकी कलात्मकता अद्वितीय है। कुटुंबा गढ़, अंबा से छह किलोमीटर दूर है। औरंगाबाद-डाल्टेनगंज पथ से यहां पहुंचा जा सकता है। गढ़ पर ही उच्च स्कूल स्थित है। दूर-दूर से लोग इसका इतिहास जानने और देखने आते हैं। स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि इस स्थल को सहेजा जाएगा और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। लोगों ने वरीय अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए स्थल का बड़े पैमाने पर खुदाई कराई जाने और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की मांग की है। औरंगाबाद का कुटुंबा गढ़ ऐतिहासिक स्थल है। यहां आज भी कई रहस्य दबे हैं। यह गढ़ 53 एकड़ में फैला है। यहां प्राचीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां, सिक्के, धातु और अन्य वस्तुएं खुदाई में मिलीं। इस जगह को लेकर सीएम नीतीश कुमार ने कहा था कि यहां कई रहस्य छिपे है। पुरातत्व विभाग ने यहां खुदाई की। खुदाई में शुंगकाल, हर्षवर्द्धन काल और वैष्णव काल के अवशेष मिले। इससे यह प्रमाणित होता है कि यह स्थल बिहार की सबसे पुरानी सभ्यता का संकेत देता है। गढ़ के बाहरी हिस्से में पुराना अवशेष, भव्य तालाब, मठ और किले के अवशेष हैं। यह प्रमाण है कि यहां इतिहास के स्वर्णिम काल के पन्ने बिखरे पड़े हैं। ग्रामीणों ने बताया कि वे बचपन से यहां खेलते थे। पर्व के समय घर की पुताई के लिए मिट्टी लाते थे। खुदाई के दौरान कई बार मूर्तियां, बर्तन और सिक्के निकलते थे। कुटुंबा निवासी जीतू तिवारी, चंद्रशेखर प्रसाद साहू, ब्रजेश तिवारी, अमरेंद्र दुबे, धर्मेंद्र दुबे आदि ने बताया कि गढ़ का इतिहास जानने की उत्सुकता बचपन से थी। जो अब भी पूरी नहीं हुई। यदि विस्तृत खुदाई कराई जाए तो यहां दफन पुराने इतिहास का पता चल सकेगा। खुदाई से इतिहास का चलेगा पता साल 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुटुंबा गढ़ पहुंचे थे। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि यहां इतिहास के कई रहस्य छिपे हैं। खुदाई कराई जाए तो गढ़ का इतिहास सामने आएगा। उन्होंने कहा था कि हमें अपनी विरासत को सहेजना चाहिए। यह आने वाली पीढ़ी के लिए प्राचीनकाल का आइना बनेगा। साल 2011 में सेवा यात्रा के दौरान वे कुटुंबा पुराना गढ़ और परता स्थित कल्पवृक्ष धाम पहुंचे। इस दौरान उन्होंने कुटुंब गढ़ का अवलोकन किया। लोगों को आश्वासन दिया कि जल्द ही यहां के इतिहास का पता लगाया जाएगा। मुख्यमंत्री के आदेश पर पुरातत्व विभाग की टीम ने खुदाई शुरू की। खुदाई में देवी-देवताओं की मूर्तियां, शीशे के बर्तन, लौह, ताम्र और पाषाणकालीन नमूने मिले। हर्षवर्धन काल के सिक्के भी बरामद हुए। डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी को वैष्णव काल के अवशेष भी मिले। इससे यह स्पष्ट हुआ कि यहां अलग-अलग धर्मों के प्रवर्तकों ने समय बिताया था। खुदाई में मिले सामानों को म्यूजियम में लगाया गया है। गढ़ की खुदाई नहीं हुई पूरी ग्रामीण बताते हैं कि 5 से 6 जगह पर खुदाई की गई थी। लेकिन आधा अधूरा खुदाई कर पुरातत्व विभाग की टीम वापस लौट गई। आज भी गढ़ का पूरा खुदाई नहीं कराया गया है। लोगों ने सरकार से विस्तृत पैमाने पर खुदाई करवा कर गढ़ में दफन इतिहास का पता लगाए जाने की मांग की है। इतिहासकारों के अनुसार, यह गढ़ पालवंश और क्षत्रिय वंश के किले के रूप में इस्तेमाल होता था। यहां राजपूत रानियों ने एक साथ जौहर किया था। आज भी स्कूल के गेट के पास उस स्थान पर ग्रामीण पूजा करते हैं। गढ़ में माता पार्वती की खंडित मूर्तियां, खंडित शिवलिंग और अन्य मूर्तियां मिलीं। इनकी कलात्मकता अद्वितीय है। कुटुंबा गढ़, अंबा से छह किलोमीटर दूर है। औरंगाबाद-डाल्टेनगंज पथ से यहां पहुंचा जा सकता है। गढ़ पर ही उच्च स्कूल स्थित है। दूर-दूर से लोग इसका इतिहास जानने और देखने आते हैं। स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि इस स्थल को सहेजा जाएगा और इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। लोगों ने वरीय अधिकारियों का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराते हुए स्थल का बड़े पैमाने पर खुदाई कराई जाने और पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किए जाने की मांग की है।  

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