20 साल पुराने हत्याकांड में आरोपियों की उम्रकैद बरकरार:इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या और साक्ष्य मिटाने के 20 वर्ष पुराने मामले में दोषियों की सजा को बरकरार रखा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या और साक्ष्य मिटाने के 20 वर्ष पुराने मामले में दोषियों की सजा को बरकरार रखा। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला एवं न्यायमूर्ति जितेंद्र कुमार सिन्हा की खंडपीठ ने बलिया के सर्वनारायण तिवारी और सरस्वती देवी उर्फ सुरसतिया की अपीलों को खारिज करते हुए दिया है। दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। मामले के तथ्यों के अनुसार छह सितंबर 1984 को श्रीराम तिवारी ने पुलिस को बताया कि उनके पड़ोसी की बहू अपने घर में जली हुई अवस्था में मृत पाई गई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंटे जाने और चेहरे पर गंभीर चोटों का उल्लेख था, जिससे स्पष्ट हुआ कि युवती की हत्या कर शव को जलाने का प्रयास किया गया। ट्रायल कोर्ट में अभियोजन पक्ष ने आठ गवाह और कई दस्तावेजी साक्ष्य पेश किए। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि यह केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला है और गवाहों के बयानों में विरोधाभास है। यह भी कहा कि एफआईआर में केवल मृतका के पति शुभ नारायण तिवारी का नाम था और अन्य आरोपियों को बाद में फंसाया गया।
कोर्ट ने इन तर्कों को सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अपराध घर के अंदर हुआ। ऐसे में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत घर में मौजूद लोगों पर यह ज़िम्मेदारी थी कि वे घटना के बारे में संतोषजनक स्पष्टीकरण दें। लेकिन अभियुक्त ऐसा कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान सुसंगत और विश्वसनीय थे। गवाहों की जिरह के दौरान भी वे अपने बयानों पर टिके रहे। वहीं बचाव पक्ष की ओर से प्रस्तुत गवाह अविश्वसनीय पाया गया। हथियार की बरामदगी न होने के तर्क को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि यदि अन्य साक्ष्य मजबूत हैं तो केवल इस आधार पर अभियुक्त को बरी नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने दोषसिद्धि को सही ठहराते हुए बलिया के सीजेएम को अपीलार्थियों को जेल भेजने और एक सप्ताह में अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

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