टीबी मुक्त भारत का लक्ष्य जनभागीदारी से ही संभव, मुफ्त इलाज का प्रचार जरूरी

भास्कर न्यूज | किशनगंज भारत सरकार ने इस वर्ष देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया है। यह लक्ष्य विश्व के अन्य देशों की तुलना में पांच साल पहले का है। इसे हासिल करने के लिए सरकार, स्वास्थ्य विभाग और समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है।जिलास्तर पर भी इस दिशा में लगातार प्रयास जारी है। यहां समय पर मरीजों की पहचान, जागरूकता और मुफ्त इलाज पर जोर दिया जा रहा है। जिला स्वास्थ्य विभाग जांच और पोषण की बेहतर सुविधा उपलब्ध करा रहा है। सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब एक करोड़ लोग टीबी से ग्रसित होते हैं। इनमें से लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है। एचआईवी पीड़ितों के लिए यह रोग और भी घातक साबित होता है। डॉ. चौधरी ने कहा कि समय पर पहचान और पूरा इलाज ही इसका सबसे कारगर उपाय है। सभी सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच और दवा मुफ्त दी जा रही है।जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। यदि किसी को तीन सप्ताह से अधिक खांसी, खून के साथ बलगम, लगातार बुखार, वजन घटना, कमजोरी या रात में पसीना आने जैसे लक्षण हों, तो तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच करानी चाहिए। जिले के हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी जांच और इलाज के लिए उपलब्ध हैं।डॉ. आलम ने बताया कि टीबी की दवा अधूरी छोड़ने से एमडीआर-टीबी का खतरा बढ़ जाता है। यह सामान्य टीबी से अधिक खतरनाक होता है। इसमें सामान्य दवाएं असर नहीं करतीं। इलाज लंबा, कठिन और महंगा हो जाता है। मरीज को बेहतर पोषण की होती है जरूरत टीबी के इलाज के दौरान मरीज को बेहतर पोषण की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार ‘निक्षय पोषण योजना’ चला रही है। इसके तहत हर टीबी मरीज को इलाज के दौरान हर महीने एक हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। यह राशि सीधे मरीज के बैंक खाते में भेजी जाती है। इसके लिए निक्षय पोर्टल पर पंजीकरण जरूरी है।जिले में निजी चिकित्सकों और अस्पतालों की भी मदद ली जा रही है। इन्हें भी निक्षय पोर्टल से जोड़ा जा रहा है ताकि कोई भी संदिग्ध मरीज छूट न जाए और समय पर इलाज मिल सके। भास्कर न्यूज | किशनगंज भारत सरकार ने इस वर्ष देश को टीबी मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया है। यह लक्ष्य विश्व के अन्य देशों की तुलना में पांच साल पहले का है। इसे हासिल करने के लिए सरकार, स्वास्थ्य विभाग और समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है।जिलास्तर पर भी इस दिशा में लगातार प्रयास जारी है। यहां समय पर मरीजों की पहचान, जागरूकता और मुफ्त इलाज पर जोर दिया जा रहा है। जिला स्वास्थ्य विभाग जांच और पोषण की बेहतर सुविधा उपलब्ध करा रहा है। सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार हर साल करीब एक करोड़ लोग टीबी से ग्रसित होते हैं। इनमें से लगभग 1.5 लाख लोगों की मौत हो जाती है। एचआईवी पीड़ितों के लिए यह रोग और भी घातक साबित होता है। डॉ. चौधरी ने कहा कि समय पर पहचान और पूरा इलाज ही इसका सबसे कारगर उपाय है। सभी सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच और दवा मुफ्त दी जा रही है।जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकता है। यदि किसी को तीन सप्ताह से अधिक खांसी, खून के साथ बलगम, लगातार बुखार, वजन घटना, कमजोरी या रात में पसीना आने जैसे लक्षण हों, तो तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच करानी चाहिए। जिले के हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी जांच और इलाज के लिए उपलब्ध हैं।डॉ. आलम ने बताया कि टीबी की दवा अधूरी छोड़ने से एमडीआर-टीबी का खतरा बढ़ जाता है। यह सामान्य टीबी से अधिक खतरनाक होता है। इसमें सामान्य दवाएं असर नहीं करतीं। इलाज लंबा, कठिन और महंगा हो जाता है। मरीज को बेहतर पोषण की होती है जरूरत टीबी के इलाज के दौरान मरीज को बेहतर पोषण की जरूरत होती है। इसके लिए सरकार ‘निक्षय पोषण योजना’ चला रही है। इसके तहत हर टीबी मरीज को इलाज के दौरान हर महीने एक हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी जाती है। यह राशि सीधे मरीज के बैंक खाते में भेजी जाती है। इसके लिए निक्षय पोर्टल पर पंजीकरण जरूरी है।जिले में निजी चिकित्सकों और अस्पतालों की भी मदद ली जा रही है। इन्हें भी निक्षय पोर्टल से जोड़ा जा रहा है ताकि कोई भी संदिग्ध मरीज छूट न जाए और समय पर इलाज मिल सके।  

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