चार दिन का छठ पर्व संपन्न:कोसी भरकर छठी मइया से मांगी मनोकामनाएं

चार दिन का छठ पर्व संपन्न:कोसी भरकर छठी मइया से मांगी मनोकामनाएं

लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन सोमवार को सीवान भर में श्रद्धा और उत्साह का अद्भुत नजारा देखने को मिला। वहीं, मंगलवार को छठ संपन्न हो गया। नदियों, तालाबों और घाटों पर सुबह से ही छठव्रतियों और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। शाम होते-होते व्रतियों ने पूरे विधि-विधान से अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया और भगवान भास्कर तथा छठी मइया की आराधना की।अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने कोसी भर छठी मइया से सुख-समृद्धि, संतान-रक्षा और मनोकामना पूर्ण होने की कामना की। छठ पूजा शुद्धता और आत्मसंयम का प्रतीक व्रतियों ने बताया कि छठ पूजा केवल पर्व नहीं बल्कि शुद्धता, संयम और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। इस व्रत में व्यक्ति अपने मन, वचन और कर्म को पवित्र कर भगवान सूर्य की उपासना करता है।महिलाएं पारंपरिक परिधान लाल और पीले रंग की साड़ियों में सज-धजकर घाटों पर पहुंचीं। घाटों पर छठ गीतों की मधुर गूंज, दीपों की झिलमिल रोशनी और प्रसाद की सुवास ने वातावरण को पूरी तरह भक्तिमय बना दिया। कोसी भरने की परंपरा का विशेष महत्व छठ पर्व के तीसरे दिन की विशेष पहचान ‘कोसी भरना’ है। मान्यता है कि जब किसी की मनोकामना पूरी होती है, तो वह आभारस्वरूप छठी मइया के नाम पर कोसी भरता है।इस परंपरा में मिट्टी के हाथी, कलश और दीपक का विशेष महत्व होता है। कोसी में रखे कलश पर 6, 12 या 24 दीये सजाए जाते हैं। अर्घ्य के बाद इन्हें घर के आंगन या छत पर स्थापित कर पूजा की जाती है और अगली सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के बाद जल में विसर्जित किया जाता है। गन्नों से बनता है मंडप, गूंजते हैं कोसी गीत छठ से पहले चार या सात गन्नों से मंडप (छत्र) बनाया जाता है। लाल कपड़े में ठेकुआ, फल, केला, अदरक, सुथनी आदि सामग्री रखकर गन्ने से बांधी जाती है।मिट्टी के हाथी और कलश पर सिंदूर लगाकर घड़े में फल और प्रसाद रखा जाता है। कोसी पर दीप जलाकर व्रती पूरे परिवार के साथ पूजा करती हैं। पूजन के दौरान महिलाएं “कोसी गीत” गाती हैं और पूरी रात रतजगा करती हैं। भक्ति से आलोकित रहा पूरा वातावरण पूरे जिले में घाटों और घरों में दीपों की रोशनी से आस्था का उजाला फैल गया। हर ओर “छठी मइया के जयकारे” गूंजते रहे। महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर इस पर्व को एकता और भक्ति के भाव से मनाया।मंगलवार की सुबह उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह चार दिवसीय पर्व संपन्न होगा। संयम, सच्चाई और आस्था का प्रतीक पर्व छठ महापर्व हमें सच्चाई, आत्मसंयम और श्रद्धा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज को शुद्धता, परिवारिक एकता और प्रकृति के प्रति आभार की सीख देता है। श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता का यह पर्व लोक संस्कृति की आत्मा को जीवित रखता है। लोक आस्था के महापर्व छठ पूजा के तीसरे दिन सोमवार को सीवान भर में श्रद्धा और उत्साह का अद्भुत नजारा देखने को मिला। वहीं, मंगलवार को छठ संपन्न हो गया। नदियों, तालाबों और घाटों पर सुबह से ही छठव्रतियों और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। शाम होते-होते व्रतियों ने पूरे विधि-विधान से अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया और भगवान भास्कर तथा छठी मइया की आराधना की।अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने कोसी भर छठी मइया से सुख-समृद्धि, संतान-रक्षा और मनोकामना पूर्ण होने की कामना की। छठ पूजा शुद्धता और आत्मसंयम का प्रतीक व्रतियों ने बताया कि छठ पूजा केवल पर्व नहीं बल्कि शुद्धता, संयम और आत्मनियंत्रण का प्रतीक है। इस व्रत में व्यक्ति अपने मन, वचन और कर्म को पवित्र कर भगवान सूर्य की उपासना करता है।महिलाएं पारंपरिक परिधान लाल और पीले रंग की साड़ियों में सज-धजकर घाटों पर पहुंचीं। घाटों पर छठ गीतों की मधुर गूंज, दीपों की झिलमिल रोशनी और प्रसाद की सुवास ने वातावरण को पूरी तरह भक्तिमय बना दिया। कोसी भरने की परंपरा का विशेष महत्व छठ पर्व के तीसरे दिन की विशेष पहचान ‘कोसी भरना’ है। मान्यता है कि जब किसी की मनोकामना पूरी होती है, तो वह आभारस्वरूप छठी मइया के नाम पर कोसी भरता है।इस परंपरा में मिट्टी के हाथी, कलश और दीपक का विशेष महत्व होता है। कोसी में रखे कलश पर 6, 12 या 24 दीये सजाए जाते हैं। अर्घ्य के बाद इन्हें घर के आंगन या छत पर स्थापित कर पूजा की जाती है और अगली सुबह सूर्य को अर्घ्य देने के बाद जल में विसर्जित किया जाता है। गन्नों से बनता है मंडप, गूंजते हैं कोसी गीत छठ से पहले चार या सात गन्नों से मंडप (छत्र) बनाया जाता है। लाल कपड़े में ठेकुआ, फल, केला, अदरक, सुथनी आदि सामग्री रखकर गन्ने से बांधी जाती है।मिट्टी के हाथी और कलश पर सिंदूर लगाकर घड़े में फल और प्रसाद रखा जाता है। कोसी पर दीप जलाकर व्रती पूरे परिवार के साथ पूजा करती हैं। पूजन के दौरान महिलाएं “कोसी गीत” गाती हैं और पूरी रात रतजगा करती हैं। भक्ति से आलोकित रहा पूरा वातावरण पूरे जिले में घाटों और घरों में दीपों की रोशनी से आस्था का उजाला फैल गया। हर ओर “छठी मइया के जयकारे” गूंजते रहे। महिलाओं और पुरुषों ने मिलकर इस पर्व को एकता और भक्ति के भाव से मनाया।मंगलवार की सुबह उदयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ यह चार दिवसीय पर्व संपन्न होगा। संयम, सच्चाई और आस्था का प्रतीक पर्व छठ महापर्व हमें सच्चाई, आत्मसंयम और श्रद्धा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज को शुद्धता, परिवारिक एकता और प्रकृति के प्रति आभार की सीख देता है। श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता का यह पर्व लोक संस्कृति की आत्मा को जीवित रखता है।  

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