मोतिहारी के पिपरा कोठी प्रखंड के फकीरा टोला गांव में किसान चुनम प्रसाद की कहानी किसानों की वास्तविक समस्याओं को उजागर करती है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर बेबी कॉर्न की खेती की। इस पर उन्होंने 30 हजार रुपए भी खर्च किए। वैज्ञानिकों ने उन्हें आश्वासन दिया था कि व्यापारी सीधे खेत से फसल खरीद लेंगे। लेकिन जब फसल तैयार हुई, तो न कोई व्यापारी आया और न ही कोई अधिकारी। किसान ने कई व्यापारियों से संपर्क किया। एक व्यापारी ने समय पर सूचना न मिलने का हवाला देते हुए फसल लेने से मना कर दिया। अंत में चुनम प्रसाद को अपनी कीमती फसल को पशुओं के चारे के रूप में बांटना पड़ा। किसान चुनम प्रसाद ने दैनिक भास्कर की टीम से बात करते हुए अपना दर्द साझा किया। वैज्ञानिकों पर भरोसा कर शुरू की खेती उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों पर भरोसा करके की गई यह खेती अब उनके लिए परेशानी का सबब बन गई है। कृषि विभाग ने किसानों को बीज तो अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया, लेकिन फसल की बिक्री और बाजार व्यवस्था के लिए कोई ठोस प्रबंध नहीं किया। विभाग के अधिकारियों से इस संबंध में संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए। किसान ने बताया कि वैज्ञानिक अब उनका फोन भी रिसीव भी नहीं कर रहे है। उन्होंने बताया कि सरकारी योजनाएं जमीनी स्तर पर कैसे दम तोड़ रही हैं। किसानों को यदि समय पर सही मार्गदर्शन, बाजार और सहयोग नहीं मिला तो ऐसी पहलें उनकी कमर तोड़ देंगी, न कि आमदनी बढ़ाएंगी। मोतिहारी के पिपरा कोठी प्रखंड के फकीरा टोला गांव में किसान चुनम प्रसाद की कहानी किसानों की वास्तविक समस्याओं को उजागर करती है। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर बेबी कॉर्न की खेती की। इस पर उन्होंने 30 हजार रुपए भी खर्च किए। वैज्ञानिकों ने उन्हें आश्वासन दिया था कि व्यापारी सीधे खेत से फसल खरीद लेंगे। लेकिन जब फसल तैयार हुई, तो न कोई व्यापारी आया और न ही कोई अधिकारी। किसान ने कई व्यापारियों से संपर्क किया। एक व्यापारी ने समय पर सूचना न मिलने का हवाला देते हुए फसल लेने से मना कर दिया। अंत में चुनम प्रसाद को अपनी कीमती फसल को पशुओं के चारे के रूप में बांटना पड़ा। किसान चुनम प्रसाद ने दैनिक भास्कर की टीम से बात करते हुए अपना दर्द साझा किया। वैज्ञानिकों पर भरोसा कर शुरू की खेती उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों पर भरोसा करके की गई यह खेती अब उनके लिए परेशानी का सबब बन गई है। कृषि विभाग ने किसानों को बीज तो अनुदानित दर पर उपलब्ध कराया, लेकिन फसल की बिक्री और बाजार व्यवस्था के लिए कोई ठोस प्रबंध नहीं किया। विभाग के अधिकारियों से इस संबंध में संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए। किसान ने बताया कि वैज्ञानिक अब उनका फोन भी रिसीव भी नहीं कर रहे है। उन्होंने बताया कि सरकारी योजनाएं जमीनी स्तर पर कैसे दम तोड़ रही हैं। किसानों को यदि समय पर सही मार्गदर्शन, बाजार और सहयोग नहीं मिला तो ऐसी पहलें उनकी कमर तोड़ देंगी, न कि आमदनी बढ़ाएंगी।
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