दिल्ली उच्च न्यायालय ने 1993 में राष्ट्रीय राजधानी में हुए बम धमाकों के दोषी देविंदर पाल सिंह भुल्लर की पैरोल अवधि समाप्त होने के मद्देनजर उसे शुक्रवार को जेल प्राधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
भुल्लर की पैरोल अवधि शुक्रवार को समाप्त हो रही है। हालांकि, उसने इस आधार पर राहत का अनुरोध किया था कि वह सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है और उसका इलाज किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया ने कहा कि जेल में भी उचित इलाज की व्यवस्था उपलब्ध है।
उन्होंने भुल्लर के वकील से कहा, “आप (भुल्लर) आत्मसमर्पण करें।”
इसके बाद, वकील ने आत्मसमर्पण से छूट के अनुरोध वाली अर्जी वापस ले ली।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दलीलों पर सुनवाई के बाद भुल्लर के वकील ने याचिका वापस लेने का अनुरोध किया और भरोसा दिलाया कि भुल्लर शुक्रवार को आत्मसमर्पण कर देगा।
उसने कहा, “याचिका को वापस ली गई मानकर खारिज किया जाता है।”
भुल्लर के वकील ने दलील दी थी कि उनका मुवक्किल कभी बैरक में नहीं गया और हमेशा अस्पताल में ही रहा तथा पैरोल पर बाहर होने के दौरान भी वह जेल से जुड़े अस्पताल में हर हफ्ते अपनी हाजिरी दर्ज कराता था।
वकील ने कहा कि यह 30 साल जेल में बिताने का मामला है और यहां तक कि कानून भी कहता है कि जघन्य अपराधों के लिए भी व्यक्ति राहत का हकदार है।
यद्यपि उच्च न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि भुल्लर की समय-पूर्व रिहाई के अनुरोध वाली याचिका विचाराधीन है, लेकिन उसने कहा कि भुल्लर को आत्मसमर्पण करना होगा।
खालिस्तान लिबरेशन फोर्स (केएलएफ) के आतंकवादी भुल्लर को सितंबर 1993 के बम धमाकों से जुड़े मामले में दोषी ठहराया गया था, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी और युवा कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष एमएस बिट्टा सहित 31 लोग घायल हो गए थे।
अगस्त 2001 में विशेष टाडा अदालत ने भुल्लर को मौत की सजा सुनाई थी। हालांकि, 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। जून 2015 में स्वास्थ्य कारणों से उसे दिल्ली की तिहाड़ जेल से अमृतसर सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था।
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