Subhash Chandra Bose Letter : आजादी के लिए दीवानों की तरह जेल-जेल, गली-गली, कूचे-कूचे फिरने वालों को तो आप और हम बखूबी जानते हैं, लेकिन उनकी मांओं का दिल कहीं ज्यादा बगावती और निडर था, जिसने घर की दहलीज पर एक उम्र इस उम्मीद में गुजार दी कि बेटा नहीं, देश की आजादी की खबर आएगी। देश पर मिटने वालों में यह जज्बा, उनकी मां के जज्बे से कैसे जुड़ा रहा, ये उनके खुद के लिखे खत गवाही देते हैं। इन्हें खतों को पढ़ हमने जाना कि सारी हिम्मत, सारी निडरता उन्हें दूध के विरसे में मिली थी… (Mothers Day 2025)
Subhash Chandra Bose letter : दुखी भारत माता और निस्वार्थ संतान का प्रश्न
मां, क्या इस युग में दुखी भारत माता की एक भी संतान स्वार्थ रहित नहीं है? क्या भारत मां इतनी अभागी है? हां। कहां है वह प्राचीन युग? वह आर्यवीर कहां हैं, जो भारत माता के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर सकें?
Mothers Day 2025 : मां की भूमिका और संतान के कष्ट

मां, क्या आप केवल हमारी ही मां हो, अथवा आप सभी भारतवासियों की मां हो? यदि सब भारतवासी आपकी संतान हैं, तो उनके कष्टों को देखकर क्या आपकी आत्मा रो नहीं उठती? मां की आत्मा क्या इतनी कठोर होती है? नहीं, कभी नहीं हो सकती। मां की आत्मा कभी कठोर नहीं हो सकती।
Mothers Day 2025 : मां का मौन और स्वार्थ का प्रश्न

अपनी संतान की इस चिंतनीय दशा को देखकर मां कैसे मौन है? मां, आपने सम्पूर्ण भारत में भ्रमण किया है, भारतवासियों की दशा देखकर या उनकी दुर्दशा के संबंध में सोचकर क्या आपका ह्रदय रो नहीं उठता? हम मूर्ख और स्वार्थी हो सकते हैं, किंतु मां को भी कभी स्वार्थ भावना स्पर्श नहीं कर सकती। मां का जीवन तो अपने बच्चों के लिए होता है। फिर मां अपने बच्चों को संकट में देखकर भी मौन क्यों बैठी है? क्या मां में भी स्वार्थ की भावना है? नहीं-नहीं, कभी नहीं हो सकती। माँ, यह कभी नहीं हो सकता।
छात्र जीवन में रांची से,
सुभाषचंद्र बोस
मां प्रभावती देवी के नाम
एक जेल से दूसरे जेल जाने से पहले : विजय कुमार सिन्हा का का मां शरत कुमारी को पत्र
प्यारी मां,
मैं आपको पहले पत्र लिखना चाहता था, लेकिन परिस्थितिवश नहीं लिख सका। बहुत से प्रभावशाली व्यक्तियों ने मुझसे भूख-हड़ताल समाप्त करने की अपील की, उनमें मदनमोहन मालवीय भी हैं। भूख-हड़ताल इस प्रत्याशा में खत्म की है कि मुझे अंडमान भेजा जाएगा। वहां राजनीतिक बंदीजन, विशेष श्रेणी के बंदी माने जाते हैं। इस समय मुझे मद्रास के कानून मंत्री द्वारा आदेशित सुविधाएं मिल रही हैं। वैसे मैं अंडमान जाने को तैयार हूं। संभवतया मातृभूमि से यह अंतिम पत्र भेज रहा हूं।
विशाखापत्तनम जेल से क्रांतिकारी
विजयकुमार सिन्हा
का मां शरत कुमारी को पत्र
आइए, हम एक वादा करें – कि हम केवल अपने लिए नहीं, इस पवित्र मातृभूमि के लिए भी जिएंगे। कि जब भी कोई पूछे – “क्या मां के लिए कोई निस्वार्थ पुत्र बचा है?” – तो हम कह सकें – “हां, मैं हूं!”
पत्र सुधीर विद्यार्थी के संकलन ‘बिदाय दे मा’ से साभार
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