श्रीलंकाई मंत्री बोले- किसी कीमत पर कच्चाथीवू द्वीप नहीं छोड़ेंगे:ये इलाका कानून हमारा, भारतीय मछुआरे समुद्री सीमा लांघकर हमारे संसाधन लूट रहे

श्रीलंकाई मंत्री बोले- किसी कीमत पर कच्चाथीवू द्वीप नहीं छोड़ेंगे:ये इलाका कानून हमारा, भारतीय मछुआरे समुद्री सीमा लांघकर हमारे संसाधन लूट रहे

श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिथा हेराथ ने शुक्रवार को कहा कि उनका देश किसी भी कीमत पर कच्चाथीवू द्वीप को नहीं छोड़ेगा। उन्होंने भारत में इस मुद्दे पर चल रही बहस को यहां की राजनीतिक पार्टियों के बीच का मामला बताया। हेराथ ने कहा- हमारे पास इस मुद्दे को सुलझाने के लिए डिप्लोमेटिक रास्ते खुले हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक कच्चाथीवू द्वीप श्रीलंका का हिस्सा है और हम इसे कभी नहीं छोड़ेंगे। हेराथ ने भारतीय मछुआरों पर कच्चाथीवू द्वीप के पास श्रीलंकाई समुद्री सीमा में घुसकर मछली पकड़ने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भारतीय मछुआरे न सिर्फ यहां संसाधनों को लूट रहे हैं, बल्कि समुद्री पौधों को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह बयान भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों की गिरफ्तारी के विवाद के बीच आया है। भारत और श्रीलंका के मछुआरे अक्सर गलती से एक-दूसरे के जलक्षेत्र में एंट्री कर जाते हैं, जिसकी वजह से उनकी गिरफ्तारी होती है। यह मुद्दा दोनों देशों के बीच लंबे समय से विवाद का कारण बना हुआ है। 285 एकड़ में फैला है कच्चाथीवू , रामेश्वरम से 19 KM दूर है भारत के तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच काफी बड़ा समुद्री क्षेत्र है। इस समुद्री क्षेत्र को पाक जलडमरूमध्य कहा जाता है। यहां कई सारे द्वीप हैं, जिसमें से एक द्वीप का नाम कच्चाथीवू है। श्रीलंका के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक कच्चाथीवू 285 एकड़ में फैला एक द्वीप है। ये द्वीप बंगाल की खाड़ी और अरब सागर को जोड़ता है। 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने इस द्वीप को श्रीलंका को गिफ्ट कर दिया था। ये द्वीप 14वीं शताब्दी में एक ज्वालामुखी विस्फोट के बाद बना था। जो रामेश्वरम से करीब 19 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना जिले से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर है। रॉबर्ट पाक 1755 से 1763 तक मद्रास प्रांत के अंग्रेज गवर्नर हुआ करते थे। इस समुद्री क्षेत्र का नाम रॉबर्ट पाक के नाम पर ही पाक स्ट्रेट रखा गया। इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को क्यों सौंपा कच्चाथीवू? 1980 के दशक में भारत दक्षिण एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने और पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखने की नीति पर काम कर रहा था। श्रीलंका के साथ सीमा विवाद को खत्म करना इस प्लान का हिस्सा था। 1974 से 1976 के बीच उस समय की भारतीय PM इंदिरा गांधी और श्रीलंका की PM सिरिमाव भंडारनायके ने चार समुद्री जल समझौतों पर दस्तखत किए। इसके तहत भारत ने इस द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया। तब से श्रीलंका इस द्वीप पर कानूनी तौर पर अपना दावा ठोकता है। जब भारत सरकार ने इस द्वीप को लेकर श्रीलंका के साथ समझौता किया था तो तमिलनाडु सरकार ने इसका विरोध किया था। तब तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने PM इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि ये द्वीप ऐतिहासिक रूप से रामनाद साम्राज्य की जमींदारी का हिस्सा है। ऐसे में भारत सरकार को किसी भी कीमत पर ये इलाका श्रीलंका को नहीं देना चाहिए। हालांकि, इस समझौते के तहत भारतीय मछुआरों को यहां मछली मारने और जाल सुखाने की इजाजत दी गई थी। इसी वजह से भारतीय मछुआरे वहां जाते रहते थे, लेकिन 2009 के बाद श्रीलंका नौसेना वहां जाने वाले भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार करने लगी। समझौते के 15 साल बाद कच्चाथीवू पर तमिलनाडु ने क्यों दावा ठोका? समझौते के बाद श्रीलंका ने धीरे-धीरे कच्चाथीवू पर कंट्रोल बढ़ाना शुरू किया। 1980 के दशक में श्रीलंकाई नौसेना ने कई बार तमिलनाडु के मछुआरों को कच्चाथीवू के पास पकड़ लिया, उन पर जुर्माना लगाया गया। कई बार हिंसक घटनाएं भी हुईं। इससे तमिलनाडु के मछुआरे समुदाय में गुस्सा बढ़ा, और उन्होंने राज्य सरकार से इस मुद्दे को उठाने की मांग की। तमिलनाडु में 1980 के दशक में क्षेत्रीय दल जैसे DMK और AIADMK सत्ता में थे। दोनों ही दलों ने मछुआरों के हितों को अपने राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बनाया। कच्चाथीवू का मुद्दा तमिल अस्मिता और राज्य के अधिकारों से जोड़ दिया गया। 1991 में जब जयललिता (AIADMK) सत्ता में आईं, तो उन्होंने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और केंद्र सरकार पर दबाव बनाया कि कच्चाथीवू को वापस लिया जाए। यह एक लोकप्रिय राजनीतिक मुद्दा बन गया, जिससे वोट बैंक को मजबूत करने में मदद मिली। भारत और श्रीलंका के बीच हुए इस समझौते के 15 साल बाद ही 1991 में तमिलनाडु विधानसभा ने कच्चाथीवू को एक बार फिर से भारत में मिलाने की मांग की। इसके लिए राज्य सरकार ने एक प्रस्ताव पास किया था। 25 साल तक कच्चाथीवू विवाद थमा रहा, फिर क्यों शुरू हुआ? साल 1983 में श्रीलंका में तमिल और सिंहली समुदाय के बीच तनाव को लेकर गृहयुद्ध छिड़ गया। तब श्रीलंका की उत्तरी सीमाओं पर तमिल उग्रवादी संगठन LTTE का कब्जा हो गया था। इस वजह से तमिलनाडु के मछुआरे मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप तक आसानी से पहुंचते थे। ऐसे में कच्चाथीवू को लेकर विवाद कुछ साल के लिए थम गया। साल 2009 में श्रीलंका की सरकार और LTTE के बीच की लड़ाई लगभग खत्म होने वाली थी। इससे पहले 2008 में जयललिता ने 1974 और 1976 के बीच हुए कच्चाथीवू द्वीप समझौतों को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। ऐसे में श्रीलंका सरकार ने अपनी सीमाओं पर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया। जब भी तमिलनाडु के मछुआरे मछली मारने के लिए इस द्वीप के करीब जाते थे, श्रीलंका की पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेती थी। इसी वजह से तटीय क्षेत्र में रहने वाले लोग इस द्वीप को वापस लेने की मांग एक बार फिर से करने लगे। श्रीलंका सरकार का कहना है कि समुद्र में उसके जल क्षेत्र में मछलियों और दूसरे जलीय जीवों की कमी हो गई है, जिससे उनके मछुआरों की आजीविका प्रभावित हुई है। ऐसे में भारत के मछुआरों को वो इस क्षेत्र में मछली मारने की इजाजत नहीं दे सकते हैं। अब भी कच्चाथीवू पर बने चर्च में प्रार्थना करने जाते हैं हजारों भारतीय हर साल फरवरी में रामेश्वरम से हजारों लोग कच्चाथीवू द्वीप पर बने सेंट एंथोनी चर्च में प्रार्थना करने के लिए जाते हैं। इस चर्च को तमिलनाडु के एक तमिल कैथोलिक श्रीनिवास पदैयाची ने 110 साल पहले बनवाया था। 2016 में मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि श्रीलंका सरकार अब इस चर्च को गिराने की तैयारी कर रही है, लेकिन बाद में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने स्पष्ट किया कि ऐसा कुछ नहीं होगा।

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