Prabhasakshi NewsRoom: RSS ने 1962 की जंग को किया याद, स्वयंसेवकों को आपातकालीन सेवाओं के लिए करेगा तैयार

Prabhasakshi NewsRoom: RSS ने 1962 की जंग को किया याद, स्वयंसेवकों को आपातकालीन सेवाओं के लिए करेगा तैयार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की तीन दिवसीय अखिल भारतीय प्रांत प्रचारक बैठक शुक्रवार से दिल्ली में आरंभ हुई। इस बैठक में संघ ने आपातकालीन परिस्थितियों, विशेषकर युद्ध जैसी स्थितियों में स्वयंसेवकों की भूमिका, सिविल डिफेंस अभ्यास (जैसे ऑपरेशन सिंदूर) में भागीदारी और बंगाल व बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर गंभीर विचार किया। RSS ने इस बैठक में ऐसे परिदृश्यों पर चर्चा की जिनमें स्वयंसेवक युद्धकालीन स्थितियों या नागरिक आपदा प्रबंधन अभियानों में सक्रिय योगदान दे सकते हैं। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने बताया कि संगठन ने अतीत में भी संकट के समय महत्वपूर्ण योगदान दिया है– जैसे 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान स्वयंसेवकों ने प्रधानमंत्री नेहरू के अनुरोध पर दिल्ली में यातायात नियंत्रित किया और राहत सामग्री पहुंचाई थी।
बैठक में एक अन्य मुख्य मुद्दा रहा पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर बढ़ते अत्याचार। संघ के प्रचारकों ने चिंता जताई कि इन घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बैठक में इस विषय को सरकार और अन्य मंचों के समक्ष प्रभावशाली रूप से उठाने की रणनीति बनाई गई। बैठक में अब तक हुए संगठनात्मक कार्यों की समीक्षा की गई और आगामी वर्षभर चलने वाले अभियानों की योजना पर विस्तार से चर्चा हुई। हम आपको यह भी बता दें कि इस साल विजयादशमी पर आरएसएस की स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो जाएंगे। विजय दशमी दो अक्टूबर को है इसलिए RSS इस दिन से अपने शताब्दी वर्ष समारोहों की शुरुआत करेगा। संघ देशभर में सामाजिक समरसता बैठकें और जनसंपर्क अभियान आयोजित करेगा, ताकि समाज के सभी वर्गों में संवाद और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सके।

इसे भी पढ़ें: संविधान की प्रस्तावना से छेड़छाड़ कर कांग्रेस ने जो गलती की थी, संसद को उसे सुधारना चाहिए

हम आपको बता दें कि इस अहम बैठक में संघ के लगभग 233 प्रमुख पदाधिकारी शामिल हुए हैं, जिनमें संघ के 32 अनुषांगिक संगठनों के प्रमुख भी सम्मिलित हैं। संघ के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने बताया है कि प्रांत प्रचारक, सह-प्रांत प्रचारक, क्षेत्र प्रचारक और सह-क्षेत्र प्रचारक समेत कुल 233 आरएसएस कार्यकर्ता बैठक में भाग ले रहे हैं। हम आपको बता दें कि आरएसएस के संगठनात्मक ढांचे के अनुसार, कुल 11 क्षेत्र और 46 प्रांत हैं। प्रत्येक क्षेत्र में आरएसएस के तीन से चार प्रांत शामिल हैं। प्रचारक आरएसएस के पूर्णकालिक कार्यकर्ता होते हैं। इस तीन दिवसीय बैठक की अध्यक्षता आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और महासचिव दत्तात्रेय होसबाले कर रहे हैं। यह बैठक संघ की नीति निर्धारण, सामाजिक रणनीति और भविष्य की दिशा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाएगी।
हम आपको यह भी बता दें कि बैठक की शुरुआत से पहले आंबेकर से जब उन आलोचकों के बारे में पूछा गया जो अक्सर आरोप लगाते हैं कि संघ में पिछड़े समुदायों के सदस्यों के लिए कोई जगह नहीं है, तो उन्होंने कहा, ”मेरा मानना है कि जब इन सवालों पर राजनीतिक चर्चा हो रही है, तो संघ को इससे दूर रखा जाना चाहिए। यह अपने तरीके से समाज के हर वर्ग को जोड़ रहा है। हर तरह से लोग इससे जुड़ रहे हैं। संघ को संघ के नजरिए से देखने पर ही समझा जा सकता है।’’ आरएसएस के पदाधिकारी ने बताया कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) सहित समाज के सभी वर्गों के लोग स्वयंसेवक और पदाधिकारी के रूप में संघ से जुड़े हैं और सौंपी गई जिम्मेदारियों को निभा रहे हैं। आंबेकर ने कहा, ‘‘आरएसएस में जाति या समुदाय के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है।’’
संविधान की प्रस्तावना में ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ शब्दों पर दत्तात्रेय होसबाले की टिप्पणी पर विपक्षी दलों के हमले के बारे में पूछे जाने पर, आंबेकर ने कहा कि आरएसएस सरकार्यवाह ने आपातकाल के दौरान लोगों पर किये गए अत्याचार और संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए शब्दों का उल्लेख किया तथा सुझाव दिया था कि इन पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार्यवाह दत्ता जी की टिप्पणियां बहुत स्पष्ट हैं। आपातकाल की 50वीं बरसी पर, उन्होंने आपातकाल के दौरान जो कुछ हुआ, उसे याद किया। जैसे कि जेलों में लोगों पर अत्याचार, राजनीतिक रूप से जो कुछ हुआ, संविधान के साथ जो कुछ किया गया। उन्होंने सभी प्रकार के अत्याचारों को याद किया था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रूप से 50 साल पूरे होने के अवसर पर इन अत्याचारों पर चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने यह मुद्दा उठाया था कि इनमें से किस चीज पर क्या किया जाना चाहिए, (और कहा कि) उन पर चर्चा होनी चाहिए। इसलिए इसे उसी अर्थ में लिया जाना चाहिए।’’ आंबेकर ने कहा कि संघ एक अखिल भारतीय सामाजिक संगठन है और तमाम राजनीतिक टीका-टिप्पणी के बीच समाज का एक बड़ा वर्ग इससे जुड़ रहा है और अपना समर्थन दे रहा है।
No tags for this post.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *