ऑपरेशन सिंदूर का असर पाकिस्तान में चंद हफ़्ते बाद ही गंभीर रूप से दिखना शुरू हो जाएगा। जैसे जैसे पाकिस्तानी आवाम को यह पता चलेगा कि झूठी जीत का जश्न जनरल आसिफ मुनीर केवल अपनी चमड़ी बचाने के लिए करवा रहे हैं और अपनी हुकूमत कायम रखने के लिए शाहबाज शरीफ़ को भी बगलगीर बना रहे हैं, वैसे-वैसे पाकिस्तान में बिखराव बढ़ता जाएगा। बिखराव से ज्यादा टूट कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। पाकिस्तान में राजनीतिक भूचाल की सरसराहट तो अभी से ही सुनाई दे रही है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थक तो 10 मई की रात को ही अदियाला जेल तोड़ने पर आमादा थे। पाकिस्तानी इस बात पर एक मत हो रहे हैं कि इंडिया से मुकाबला केवल इमरान खान ही कर सकता है और उसको बाहर आना बहुत जरूरी है। इमरान खान के बाहर आने का मतलब है आसिम मुनीर और शाहबाज शरीफ़ के दिन पूरे होना। अधिकतर पाकिस्तानी जनता मानती है कि शरीफ परिवार और आर्मी चीफ़ आसिम मुनीर ने इलेक्शन में धांधली कर इमरान खान की पार्टी को हरा दिया था। उधर अफगान भी इस इंतजार में थे कि पाकिस्तानी सेना भारत से शिकस्त खाए और वे टीटीपी को भेज कर खैबर पख़्तून पर धावा बोल दें । लंबे समय से आजादी का सपना देख रहे बलोच आंदोलनकारियों के लिए भी ऑपरेशन सिंदूर एक बड़ा मौका लेकर आया है। परिस्थितियां बदली तो जनरल मुनीर और शाहबाज शरीफ़ के लिए सत्ता के साथ साथ जान जान बचाना भी भारी पड़ सकता है। इन्होंने समझ लिया कि बचने के दो ही रास्ते हैं। एक तो हाथ पैर जोड़ कर युद्ध विराम किया जाए और दूसरा जनता को बरगलाया जाए कि भारत को उन्होंने कड़ी टक्कर देने में सफलता प्राप्त कर ली है। जन्म से ही हिंदुस्तान के प्रति दुश्मनी का भाव रखने वाले पाकिस्तानियों के लिए युद्ध में जीत का यह प्रोपोगेंडा अफीम का काम कर रहा है। लेकिन यह नशा ज्यादा दिन नहीं रहने वाला। हकीकत सामने आते ही, पाकिस्तानी जनता इन पर दोगुनी शक्ति से हमला करेगी।
ऐसे कई सबूत हैं, जिनसे पता चलता है कि हालात को बेकाबू होते देख, जनरल आसिम मुनीर ने एक के बाद एक कई पैंतरे बदले। उनके भय या रसूख से दबे रहने वाले कई पाकिस्तानी पत्रकारों ने भी इसमें खूब भूमिका निभाई। एक वरिष्ठ पत्रकार सुहैल बराई ने डॉन अखबार में एक लेख लिखा, जिसमें पूरी कोशिश की गई कि भारत के करीब आ रही तालिबान सरकार को नरेंद्र मोदी और हिंदुस्तान के खिलाफ खड़ा कर दिया जाए। सुहैल बराई ने लिखा कि आलमी बिरादरी ने पहलगाम हादसे की अलग से जांच कराई है, और यह पाया है कि पहलगाम में हमला तालिबानियों ने कराया है, ताकि भारत के साथ पाकिस्तान की लड़ाई की सूरत में खैबर पख़्तून से पाकिस्तानी सैनिक हट कर भारत के बॉर्डर पर चले जाए, और उनके खिलाफ पाकिस्तान का ऑपरेशन रुक जाए। भारत और अफगानिस्तान के बीच दुश्मनी पैदा करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने भी यह खबर फैलाई कि हिंदुस्तान के जहाज ने अफगानिस्तान में भी मिसाइल से हमला कर दिया है। इस मामले में तालिबानी सरकार पहले से ही सचेत थी, तुरंत काबुल से यह बयान आया कि भारत ने उन पर कोई हमला नहीं किया है। जाहिर है इस मोर्चे पर जनरल को मुंह की खानी पड़ी।
7 मई को जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान के 9 आतंकवादी ठिकानों पर हमले किए तो उसके अगले दिन ही पीटीआई के नेता इस्लामाबाद हाईकोर्ट में विशेष याचिका लगाकर उनकी रिहाई की मांग कर दी। खैबर पख्तून के मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर खुद इस्लामाबाद तक चले आए। रात में ही इमरान खान के समर्थक आदियाला जेल पहुंचने लगे। स्थिति काबू से बाहर हो जाती, यदि पाकिस्तान युद्ध में झूठे विजय का प्रचार नहीं करता। सबको मालूम है कि जनरल मुनीर और इमरान खान के बीच जाति दुश्मनी है। किसी संकट के समय इमरान की रिहाई खुदआसिम मुनीर के लिए संकट बन सकता है। इस लिए इमरान के समर्थकों को फिलहाल विरोध से रोकने के लिए जीत का स्वांग रचा गया है।
पाकिस्तान के लिए कोई भी संकट कम होने नहीं जा रहा है। एक दर्जन से अधिक पाकिस्तान के मशहूर यू ट्यूबर्स भारत के साथ संघर्ष के बीच सिर्फ इमरान की रिहाई की बात कर रहे है। पाकिस्तानी आर्मी के कोपभाजन बने इमरान रियाज खान हो, या फिर हारून रशीद या फिर शाहबाज गिल सब यही दोहरा रहे हैं कि इमरान की रिहाई के बिना पाकिस्तान में कुछ भी ठीक नहीं होने वाला है। बल्कि कुछ तो यह भी कह रहे हैं कि युद्ध के बहाने आसिम मुनीर अदियाला जेल पर बम भी गिरा सकते हैं। साफ है कि इस कथित जीत से भी इमरान समर्थक ज्यादा देर तक खामोश नहीं रहेंगे और तब आसिम मुनीर और शरीफ फैमिली के लिए समय खुशगवार नहीं रह पाएगा।
बलोच आंदोलनकारियों को आजादी का सपना सच होता नजर आ रहा है। वैसे भी पाकिस्तान सरकार का प्रभाव क्वेटा से आगे अब नहीं रहा। आसिम मुनीर की सेना रोज ही मारी जा रही है। जब बलूचिस्तान के लोग ऑपरेशन सिंदूर के घाव को पाकिस्तान के सीने पर देखेंगे तो एक चोट और देने से कहां पीछे हटेंगे।
भारत के लिए ऑपरेशन सिंदूर जीत और हार की परिभाषा से ज़्यादा महत्वपूर्ण रहा है। दुनिया को यह बताना जरूरी था कि भारत अब और आतंक की चोट को बर्दाश्त नहीं करेगा। अपने हर नागरिक के खून का हिसाब उनसे जरूर लेगा, जो सीमा पार से आकर अकारण गोलियां चलाते हैं और कट्टर मजहबी जुनून को पूरा करने के लिए निर्दोषों का खून बहाते हैं। भारत को यह भी बताना जरूरी था कि 140 करोड़ लोगों का कोई बाहरी मुल्क या नेता आका नहीं बन सकता। बल्कि जनमत लेकर सत्ता में आए नरेंद्र मोदी को यह देश सभी फैसले का अधिकार देता है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए आतंकवादियों को उनकी ही मांद में जाकर उन्हें सजा देना जरूरी था, ताकि देश के लोग उन्हें अपना रक्षक मानने पर इत्मीनान महसूस कर सके।
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