मदर्स डे पर विशेष.. मां के आंचल में दुनिया की जन्नत, दुखों को दूर करती ममता की मूरत…. देखें फोटो गैलेरी ….

मदर्स डे पर विशेष.. मां के आंचल में दुनिया की जन्नत, दुखों को दूर करती ममता की मूरत…. देखें फोटो गैलेरी ….

भिवाड़ी. मां परिपूर्ण है। मां शब्द नहीं। मां एक ग्रंथ हैं जिसका अनुवाद अनंत है। मां बनते ही एक स्त्री को सभी गौरव, अलंकार, उपमाएं और उपाधियां मिल जाती हैं। हर एक मां अपने बच्चों के पालन पोषण में जो मेहनत है। उसका कोई मोल नहीं होता। बावजूद कुछ मां ऐसी होती हैं जो कि विपरीत परिस्थिति में भी अपने ममता के आंचल में औलाद को पाल-पोष कर बढ़ा करती हैं। उन्हें बुलंदी तक पहुंचा देती हैं। मां के कई रूप होते हैं मदर्स डे के अवसर पर पढि़ए ऐसी ही कुछ मां की कहानी….

अब बेटी बनी लेफ्टिनेंट
शीलू कौशिक बताती हैं कि 2012 में मेरे पति संजय कौशिक का मानेसर में एक्सीडेंट हुआ। वे बाइक पर थे, ट्रक ने सामने से टक्कर मारी, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। 17 महीने वह कोमा में रहे। इलाज में एक करोड़ रुपए लग गया। पति के जाने, इलाज में इतना पैसा खर्च होने के बाद उन पर विपत्ति टूट पड़ी। पति का शटङ्क्षरग का व्यवसाय था। उनके साथ अचानक हादसा होने से व्यवसाय में भी नुकसान हो गया। उस समय बेटा साढ़े तीन साल का और बेटी 12 साल की थी। पति की मृत्यु और व्यवसाय में नुकसान होने के बाद बच्चों के पालन-पोषण की जिम्म्मेदारी मेरे ऊपर आ गई।
पति के बाद मैंने जिम्मेदारी उठाई
मीना देवी ने बताया कि मेरी चार बेटियां हैं। 2004 में मेरे पति की अचानक बीमार होने से मृत्यु हो गई। अचानक पति के जाने से कुछ समझ नहीं आया। परिवार को संभालने वाला शख्स अचानक चला गया। पति का सैलून का काम था। उस समय बड़ी बेटी दस साल की थी। जब पति थे तब मैं सिर्फ घर का काम ही करती थी। पति की मृत्यु के बाद बेटियों को पालने के लिए घरों में जाकर काम करना शुरू किया। सोच कि मेहनत कर ही बेटियों को पालूंगी। एक ही उद्देश्य था कि अब घर और बाहर दोनों जगह की जिम्मेदारी मुझे ही संभालनी है। बेटियों को पढ़ाया और उनका विवाह किया। तीन बेटियों का विवाह कर चुकी हैं।
मां पुकारने वाली हजारों आवाज
अमिता शॉ ने बताया कि वे बायोलॉजिकल मां कभी नहीं बनी क्योंकि वह ङ्क्षसगल थी। लेकिन उनका हजारों-लाखों बच्चों से जुड़ाव रहा। उन्होंने बताया कि उन्होंने जीजस मैरी स्कूल और ब्रिटिश स्कूल दिल्ली में बच्चों को पढ़ाया। इसके बाद 26 साल राष्ट्रीय बाल भवन में डायरेक्टर रहीं। पांच साल विदेश जाकर मोरिसिस में सरकार की तरफ से जाकर भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार किया, वहां मेरे सेंटर पर हजारों बच्चों आते थे। इस दौरान मैंने हमेशा बच्चों के पर्सनेलिटी डवलपमेंट के ऊपर काम किया। मेरा विषय फिजिकल एजूकेशन और ड्रामा था। बच्चों को भाषण देना और आत्म विश्वास विकसित करना मैंने सिखाया।

बेटी को बना दिया वकील
मंजू सचदेवा ने बताया कि बीए करने के बाद 1985 में मेरा विवाह हुआ। विवाह के बाद मुझे एक बेटी हुई। मेरे पति नशे के आदी थे। मैंने तीन साल तक उनका इलाज कराया लेकिन वह नहीं सुधरे और मैं उनसे अलग हो गई। तब से मैंने अपनी बेटी को अकेले ही पाला। शादी से पहले मैंने कभी नौकरी नहीं की थी लेकिन मेरे पिता की मृत्यु भी जल्दी हो गई थी, पिता की रेडीमेड की दुकान थी जिसे मैं शादी से पहले संभालती थी। शादी के बाद बेटी का भविष्य संवारने के लिए पब्लिशर्स के एकांटेंट की नौकरी शुरू की। सुबह घर का काम और बेटी को स्कूल भेजने के बाद नौकरी जाती।

No tags for this post.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *