नागौर. नागौरी जीरे की बढ़ती मांग ने परंपरागत फसलों का रकबा घटा दिया है। सात से आठ सालों के अंतराल में जीरे का रकबा काफी तेजी से बढ़ा है। कम पानी एवं मुनाफा ज्यादा मिलने के साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों से नागौरी की बढ़ी मांग ने किसानों को इसकी बुवाई के लिए उत्साहित किया है। यही वजह रही है कि अब काश्तकार गेहूं, जौ एवं सरसों की अपेक्षा इसकी बुवाई करना ज्यादा बेहतर समझने लगे हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार नागौरी जीरे को रिफाइन करने की 14 से 15 फैक्ट्रियों के हेाने केचलते जीरे की खासी खपत हो जाती है।
नागौरी जीरे की बढ़ी मांग ने प्रदेश को गुजरात के बाद जीरे का दूसरा बड़ा उत्पादक बना दिया है। विशेषकर नागौरी जीरे की गुणवत्ता एवं इसमें से निकलने वाले तेल की औसत मात्रा जालोर आदि क्षेत्रों से भी ज्यादा बताई जाती है। हालांकि जीरे की बुवाई अजमेर, पाली, सिरोही, बाड़मेर, जयपुर एवं टोंक में भी की जाती है, लेकिन नागौरी जीरे की गुणवत्ता की वजह से इसकी मांग तेजी से बढ़ी है। यही वजह रही कि वर्ष 2017-18 में 73418 हेक्टेयर का रकबा हो गया था, जबकि गेहूं का रकबा केवल 53 हजार 677 हेक्टेयर ही रहा।
फसलों के रकबा आंकड़ों पर एक नजर
उपज 2012-13 2013-14 2016-17 2017-18 2018-19 2019-20 2020-21 2022-23 वर्ष 2023-24
गेहूं 83768 75548 56680 53677 51378 68011 60655 50074 61628
जौ 13660 13448 6056 7702 6109 10648 11193 11035 14863
जीरा 46590 48665 20250 73418 72815 83976 58973 46791 53970
नागौरी जीरा सालों तक नहीं होता खराब
नागौरी जीरे की विशेषताओं में है कि यह जीरा करीब 10 वर्षों तक खराब नहीं होता है। जबकि अन्य राज्यों के जीरे की गुणवत्ता दो से तीन साल में ही क्षीण होने लगती है। इसमें तेल की मात्रा चार से पांच प्रतिशत तक होती है, जबकि अन्य राज्यों के जीरे में तेल की मात्रा महज अधिकतम दो प्रतिशत तक ही पहुंच पाती है। अपनी विशेषताओं के कारण नागौरी जीरे का उत्पादन भी अब प्रदेश ही नहीं, बल्कि के देश के विभिन्न राज्यों में किया जाने लगा है। विभिन्न मसाला कंपनियों की प्राथमिकता में भी नागौरी जीरे का स्थान अब पहने नंबर पर पहुंच गया है। एक साल में करीब तीन लाख बोरियों की खपत यहां की फैक्ट्रियों में हो जाती है। इसका टर्नओवर भी तकरीबन तीन 300 करोड़ तक हो जाता है।
व्यापारी कहिन…
नागौरी जीरे की मांग गत पांच से छह सालों में तेजी से बढ़ी है। अपनी विशेषताओं के कारण नागौरी जीरा अब पहले नंबर पर पहुंच गया है। यही वजह है कि इसकी आपूर्ति देश के ज्यादातर राज्यों में की जाने लगी है।
बनवारीलाल अग्रवाल, लघु उद्योग भारती नागौर
जीरे की गुणवत्ता के मुकाबले अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी बेहतर है। इसका जीआईके भी कराएंगे।जोधपुर में स्पाइस पार्क में जीरे की टेस्टिंग लेब होनी चाहिए। इससे किसान व व्यापारियों, दोनों को ही फायदा होगा। इससे गुणवत्ता की परख भी हो सकेगी।
भोजराज सारस्वत, पूर्व सदस्य स्पाइसेज बोर्ड वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय
जीरे की एक दर्जन से अधिक फैक्ट्रियों में इसकी सीजन में रोजाना लगभग दस हजार बोरियों की खपत हो जाती है। पिछले कई वर्षों में अब तो जीरे की मांग भी काफी बढ़ गई है।
नितिन मित्तल, सचिव कृषि उपजमंडी व्यापार मण्डल नागौर
जीरे का चार से पांच सालों में काफी बढ़ा है। इसमें होने वाले मुनाफे के कारण किसान भी अब जीरे की खेती करना ज्यादा पसंद करने लगे हैं। गेहूं एवं जौ परंपरागत फसलें तो हैं, लेकिन अब जीरे ने इसको पीछे कर दिया है।
पवन भट्टड़, व्यापारी, कृषि मंडी
पहले नागौर में परंपरागत फसलों में गेहूं एवं जौ आदि का रकबा ही ज्यादा हेाता था। अब नागौरी जीरे की मांग प्रदेश सहित देश के विभिन्न राज्यों में बढऩे से इसका रकबा भी बढ़ा है।
रामेश्वर सारस्वत, व्यापारी, कृषि मंडी