‘कोलकाता पर हमला होने वाला है…तब इंदिरा गांधी बचकर निकलीं’:पाकिस्तानी सेना का कम्युनिकेशन सिस्टम तबाह किया, जनरल ने रोते-रोते सरेंडर किया

‘कोलकाता पर हमला होने वाला है…तब इंदिरा गांधी बचकर निकलीं’:पाकिस्तानी सेना का कम्युनिकेशन सिस्टम तबाह किया, जनरल ने रोते-रोते सरेंडर किया

तारीख थी 3 दिसंबर 1971। जगह- तत्कालीन कलकत्ता अब कोलकाता। पाकिस्तानी सेना की तरफ से पूर्वी पाकिस्तान में किए जा रहे अत्याचारों पर इंदिरा गांधी नजर बनाए हुए थी। मार्च और अक्टूबर 1971 के बीच 6 महीने से अधिक समय तक इंदिरा गांधी ने विश्व के नेताओं को पत्र लिखकर भारतीय सीमा की स्थिति के बारे में बता दिया था। इन्हीं सब स्थितियों की समीक्षा करने के लिए इंदिरा गांधी कलकत्ता में थी। इसी बीच उन्हें इंडियन आर्मी की तरफ से सूचना मिली कि पाकिस्तान भारत पर एयर स्ट्राइक करने वाला है। उसके टारगेट पर कलकत्ता का एयरपोर्ट भी है। इंदिरा गांधी कोलकाता से तुरंत दिल्ली निकल गईं। उनके दिल्ली पहुंचने के कुछ घंटे बाद ही 3 दिसंबर, 1971 को श्रीनगर से बाड़मेर तक 8 हवाई अड्डों पर पाक सेना ने हमला कर दिया। इंदिरा गांधी ने उसी समय आकाशवाणी से राष्ट्र को संबोधित किया। अपनी संयमित आवाज में उन्होंने कहा, ‘हम पर युद्ध थोपा गया है…’ भारत और पाकिस्तान के बीच शनिवार शाम साढ़े 5 बजे सीजफायर हुआ, लेकिन उसके 3 घंटे बाद ही पाकिस्तानी ने इसका उल्लंघन कर दिया। इसके बाद एक बार फिर से भारत-पाक में जंग के हालात बने गए हैं। इस बीच हम बिहार के उन शूरवीरों की कहानी साझा कर रहे हैं, जिन्होंने पहले हुए युद्धों में पाकिस्तानियों को धुल चटाई है। ‘बिहार के शूरवीर’ सीरीज की आज तीसरी कहानी ऑनरेरी कैप्टन वीरेंद्र सिंह की जुबानी…। बिना कम्युनिकेशन के सेना लाचार हो जाती है 1971 और कारगिल युद्ध के गवाह रहे ऑनरेरी कैप्टन वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘मैं स्पोर्स ऑफ सिग्नल से कंसर्न रखता था। हम लोगों का काम सेना में कम्युनिकेशन प्रोवाइड करना था। युद्ध के दौरान कम्युनिकेशन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। सेना के जवान जब फाइट कर रहे थे तो हमलोग हर जगह कम्युनिकेशन के लिए अपना सिग्नल लेकर स्टैंड टू पर रहते थे।’ ‘3 दिसंबर 1971 की घटना को याद करते हुए वे बताते हैं, ‘प्रधानमंत्री को सबसे पहले कलकत्ता में अटैक की जानकारी भी हमारी टीम ने ही दी थी। इसकी सूचना सबसे पहले स्पोर्स ऑफ सिग्नल को मिली थी। इसके बाद उन्होंने इसकी जानकारी PM को दी। PM कलकत्ता से दिल्ली आई। उनके दिल्ली पहुंचने के तुरंत बाद धमाका हुआ और इसके बाद उन्होंने युद्ध की घोषणा की।’ पाकिस्तानियों का कम्युनिकेशन सिस्टम तबाह कर दिया आर-आर बटालियन में शामिल रहे कैप्टन वीरेंद्र सिंह कहते हैं, ’1971 की लड़ाई में 92 हजार पाकिस्तानी सेना के सरेंडर का भी सबसे बड़ा कारण कम्युनिकेशन ही था। इंडियन आर्मी की कम्युनिकेशन टीम ने उनके कोर्स ऑफ सिग्नल यानी कम्युनिकेशन को ही पूरी तरह बंद कर दिया था। जनरल नियाजी को ही पता नहीं चल पा रहा था कि उनके पास कितनी फौज है? इसके कारण पाकिस्तानी सेना तक कोई निर्देश ही नहीं पहुंच पा रहा था।’ वे बताते हैं, ‘पश्चिमी पाकिस्तान से हुक्म दिया जाता था, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान की सीमा तक पहुंच ही नहीं पाता था। जनरल पश्चिम पाकिस्तान के अपने हेडक्वार्टर में होते थे, यहां लड़ाइयां उनके हुक्म के आधार पर ही होती थी। एक तरीके से सबसे बड़ी लड़ाई कम्युनिकेशन की ही होती है।’ वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘कम्युनिकेशन बंद हो जाने के बाद दाएं-बाएं क्या हो रहा है, इसका पता ही नहीं चलता है। इस हिसाब से सेना में कम्युनिकेशन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। 1971 की लड़ाई में हम इसी कम्युनिकेशन को प्रोवाइड करने में लगे थे। सिग्नल्स के पास सारे कम्युनिकेशन के इक्युपमेंट होते हैं, जो सिग्नल को जाम, प्रोवाइड और सिक्योर प्रोवाइड भी करता है।’ नियाजी को पता ही नहीं चला कि उसके साथ कितनी सेना है जब बांग्लादेश में मुक्तिवाहिनी सेना फ्रंट से लड़ रही थी और इंडियन आर्मी उन्हें बैक से सपोर्ट कर रही थी। तब हमारे पास अपनी सेना को कम्युनिकेशन पहुंचाने के साथ पाकिस्तानी सेना के कम्युनिकेशन को हैक करने की जिम्मेदारी थी। इसे हैक करने का सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि नियाजी को पता ही नहीं चलने दिया गया कि उनके साथ सेना की कितनी टुकड़ी है।’ वो जहां था, वहीं उसे अकेला बना दिया गया था। उसे पता ही नहीं चल रहा था, उसके साथ कितने लोग चल रहे हैं। उसे बाद में जब पता चला कि उसके साथ 92 हजार फोर्स हैं तब काफी अफसोस हुआ था, क्योंकि सिग्नल तोड़ देने के कारण उनका आपस में कोई मिलाप ही नहीं था। सरेंडर करने के वक्त तो नियाजी फूट-फूटकर रो पड़ा था।’ अब कहानी कारगिल युद्ध की… वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘कारगिल की लड़ाई के दौरान भुज सेक्टर में थे। अपना अनुभव शेयर करते हुए वे कहते हैं, लड़ाई भले एक सेक्टर में लगी हो, लेकिन सारे फौजियों को इसके लिए तैयार किया जाता है। हर सेक्टर में, हर कोस्ट में हर जगह पर आर्मी स्टैंड टू रहती है।’ वे बताते हैं, तब हमारे सेक्टर में एक ऑपरेशन हुआ था, एक पाकिस्तान हेलिकॉप्टर को मार गिराया गया था, जिससे काफी टेंशन हो गया था। इसके कारण आए दिन माहौल एकदम टेंश रहता था। हम लोग लगभग साढ़े चार महीने तक अलर्ट मोड में लगे रहे। हालांकि, यहां लड़ाई हुई नहीं थी।’ ———– ये भी पढ़ें… कंटीले तार, बारूदी सुरंगों को पार किया, पाकिस्तानी डरकर भागे:37 घंटे में हाजी पीर दर्रे पर कब्जा किया, लौटाने को बोला तो पूरी बटालियन रोई 26 अगस्त 1965, रात 9.30 बजे: हम लोग आराम कर रहे थे। तभी वायरलेस से मैसेज आया कि पाकिस्तान पर हमला करना है। हमारी टुकड़ी ने बिना देर किए चढ़ाई शुरू कर दी। तब हम बिहार रेजिमेंट में थे। हमारा टार्गेट हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करना था। भारी बारिश, कंटीले तार के बीच हमने जज्बा नहीं हारा और दूसरे दिन 28 अगस्त को हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया। पूरी खबर पढ़िए तारीख थी 3 दिसंबर 1971। जगह- तत्कालीन कलकत्ता अब कोलकाता। पाकिस्तानी सेना की तरफ से पूर्वी पाकिस्तान में किए जा रहे अत्याचारों पर इंदिरा गांधी नजर बनाए हुए थी। मार्च और अक्टूबर 1971 के बीच 6 महीने से अधिक समय तक इंदिरा गांधी ने विश्व के नेताओं को पत्र लिखकर भारतीय सीमा की स्थिति के बारे में बता दिया था। इन्हीं सब स्थितियों की समीक्षा करने के लिए इंदिरा गांधी कलकत्ता में थी। इसी बीच उन्हें इंडियन आर्मी की तरफ से सूचना मिली कि पाकिस्तान भारत पर एयर स्ट्राइक करने वाला है। उसके टारगेट पर कलकत्ता का एयरपोर्ट भी है। इंदिरा गांधी कोलकाता से तुरंत दिल्ली निकल गईं। उनके दिल्ली पहुंचने के कुछ घंटे बाद ही 3 दिसंबर, 1971 को श्रीनगर से बाड़मेर तक 8 हवाई अड्डों पर पाक सेना ने हमला कर दिया। इंदिरा गांधी ने उसी समय आकाशवाणी से राष्ट्र को संबोधित किया। अपनी संयमित आवाज में उन्होंने कहा, ‘हम पर युद्ध थोपा गया है…’ भारत और पाकिस्तान के बीच शनिवार शाम साढ़े 5 बजे सीजफायर हुआ, लेकिन उसके 3 घंटे बाद ही पाकिस्तानी ने इसका उल्लंघन कर दिया। इसके बाद एक बार फिर से भारत-पाक में जंग के हालात बने गए हैं। इस बीच हम बिहार के उन शूरवीरों की कहानी साझा कर रहे हैं, जिन्होंने पहले हुए युद्धों में पाकिस्तानियों को धुल चटाई है। ‘बिहार के शूरवीर’ सीरीज की आज तीसरी कहानी ऑनरेरी कैप्टन वीरेंद्र सिंह की जुबानी…। बिना कम्युनिकेशन के सेना लाचार हो जाती है 1971 और कारगिल युद्ध के गवाह रहे ऑनरेरी कैप्टन वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘मैं स्पोर्स ऑफ सिग्नल से कंसर्न रखता था। हम लोगों का काम सेना में कम्युनिकेशन प्रोवाइड करना था। युद्ध के दौरान कम्युनिकेशन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान होता है। सेना के जवान जब फाइट कर रहे थे तो हमलोग हर जगह कम्युनिकेशन के लिए अपना सिग्नल लेकर स्टैंड टू पर रहते थे।’ ‘3 दिसंबर 1971 की घटना को याद करते हुए वे बताते हैं, ‘प्रधानमंत्री को सबसे पहले कलकत्ता में अटैक की जानकारी भी हमारी टीम ने ही दी थी। इसकी सूचना सबसे पहले स्पोर्स ऑफ सिग्नल को मिली थी। इसके बाद उन्होंने इसकी जानकारी PM को दी। PM कलकत्ता से दिल्ली आई। उनके दिल्ली पहुंचने के तुरंत बाद धमाका हुआ और इसके बाद उन्होंने युद्ध की घोषणा की।’ पाकिस्तानियों का कम्युनिकेशन सिस्टम तबाह कर दिया आर-आर बटालियन में शामिल रहे कैप्टन वीरेंद्र सिंह कहते हैं, ’1971 की लड़ाई में 92 हजार पाकिस्तानी सेना के सरेंडर का भी सबसे बड़ा कारण कम्युनिकेशन ही था। इंडियन आर्मी की कम्युनिकेशन टीम ने उनके कोर्स ऑफ सिग्नल यानी कम्युनिकेशन को ही पूरी तरह बंद कर दिया था। जनरल नियाजी को ही पता नहीं चल पा रहा था कि उनके पास कितनी फौज है? इसके कारण पाकिस्तानी सेना तक कोई निर्देश ही नहीं पहुंच पा रहा था।’ वे बताते हैं, ‘पश्चिमी पाकिस्तान से हुक्म दिया जाता था, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान की सीमा तक पहुंच ही नहीं पाता था। जनरल पश्चिम पाकिस्तान के अपने हेडक्वार्टर में होते थे, यहां लड़ाइयां उनके हुक्म के आधार पर ही होती थी। एक तरीके से सबसे बड़ी लड़ाई कम्युनिकेशन की ही होती है।’ वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘कम्युनिकेशन बंद हो जाने के बाद दाएं-बाएं क्या हो रहा है, इसका पता ही नहीं चलता है। इस हिसाब से सेना में कम्युनिकेशन की बहुत बड़ी भूमिका होती है। 1971 की लड़ाई में हम इसी कम्युनिकेशन को प्रोवाइड करने में लगे थे। सिग्नल्स के पास सारे कम्युनिकेशन के इक्युपमेंट होते हैं, जो सिग्नल को जाम, प्रोवाइड और सिक्योर प्रोवाइड भी करता है।’ नियाजी को पता ही नहीं चला कि उसके साथ कितनी सेना है जब बांग्लादेश में मुक्तिवाहिनी सेना फ्रंट से लड़ रही थी और इंडियन आर्मी उन्हें बैक से सपोर्ट कर रही थी। तब हमारे पास अपनी सेना को कम्युनिकेशन पहुंचाने के साथ पाकिस्तानी सेना के कम्युनिकेशन को हैक करने की जिम्मेदारी थी। इसे हैक करने का सबसे बड़ा लाभ ये हुआ कि नियाजी को पता ही नहीं चलने दिया गया कि उनके साथ सेना की कितनी टुकड़ी है।’ वो जहां था, वहीं उसे अकेला बना दिया गया था। उसे पता ही नहीं चल रहा था, उसके साथ कितने लोग चल रहे हैं। उसे बाद में जब पता चला कि उसके साथ 92 हजार फोर्स हैं तब काफी अफसोस हुआ था, क्योंकि सिग्नल तोड़ देने के कारण उनका आपस में कोई मिलाप ही नहीं था। सरेंडर करने के वक्त तो नियाजी फूट-फूटकर रो पड़ा था।’ अब कहानी कारगिल युद्ध की… वीरेंद्र सिंह बताते हैं, ‘कारगिल की लड़ाई के दौरान भुज सेक्टर में थे। अपना अनुभव शेयर करते हुए वे कहते हैं, लड़ाई भले एक सेक्टर में लगी हो, लेकिन सारे फौजियों को इसके लिए तैयार किया जाता है। हर सेक्टर में, हर कोस्ट में हर जगह पर आर्मी स्टैंड टू रहती है।’ वे बताते हैं, तब हमारे सेक्टर में एक ऑपरेशन हुआ था, एक पाकिस्तान हेलिकॉप्टर को मार गिराया गया था, जिससे काफी टेंशन हो गया था। इसके कारण आए दिन माहौल एकदम टेंश रहता था। हम लोग लगभग साढ़े चार महीने तक अलर्ट मोड में लगे रहे। हालांकि, यहां लड़ाई हुई नहीं थी।’ ———– ये भी पढ़ें… कंटीले तार, बारूदी सुरंगों को पार किया, पाकिस्तानी डरकर भागे:37 घंटे में हाजी पीर दर्रे पर कब्जा किया, लौटाने को बोला तो पूरी बटालियन रोई 26 अगस्त 1965, रात 9.30 बजे: हम लोग आराम कर रहे थे। तभी वायरलेस से मैसेज आया कि पाकिस्तान पर हमला करना है। हमारी टुकड़ी ने बिना देर किए चढ़ाई शुरू कर दी। तब हम बिहार रेजिमेंट में थे। हमारा टार्गेट हाजी पीर दर्रे पर कब्जा करना था। भारी बारिश, कंटीले तार के बीच हमने जज्बा नहीं हारा और दूसरे दिन 28 अगस्त को हाजी पीर दर्रे पर कब्जा कर लिया। पूरी खबर पढ़िए  

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