Holika Dahan: रंगोत्सव के एक दिन पूर्व रात को होलिका दहन की देशभर में परंपरा चली आ रही है पर राजनांदगांव जिले के दो गांव सलोनी व बघेरा ऐसे हैं जहां परंपरा कुछ दूसरी है। यहां होलिका दहन नहीं करते। यह परंपरा वर्षों पुरानी है। आज की पीढ़ी को ठीक से यह पता नहीं है कि किस वजह से होलिका दहन नहीं करते पर परंपरा को कायम रखे हुए हैं। आज की पीढ़ी इसे पर्यावरण से जोडक़र देख रही है। गांव के युवाओं का कहना है कि होलिका दहन के नाम पर पेड़ों की कटाई कर दी जाती है। कीमती लकडिय़ां जला देते हैं। कम से कम इस परंपरा के बहाने पर्यावरण की रक्षा हो रही है और गांव में होलिका के नाम पर लकड़ी की चोरी जैसी घटनाएं नहीं होती।
Holika Dahan: सालों पहले गांव में फैली थी बीमारी
यही परंपरा सलोनी गांव में भी चल रही है। गांव के पूर्व सरपंच रतन यादव ने बताया कि पुराने बुजुर्ग यह कहानी बताते थे कि सालों पहले गांव में बीमारी फैल गई थी, तब उस दौर के बैगा ने गांव में होलिका दहन के साथ ही रावण दहन पर रोक लगाई थी, माना जा रहा है कि तब से यहां होलिका दहन व रावण दहन का कार्यक्रम होता ही नहीं है। इसके ठोस कारण का पता लगाने की कोशिश भी की गई पर अब गांव में पुरानी बातेें बताने वाला नहीं है। आज की पीढ़ी चली आ रही परंपरा को निर्वहन कर रही है, यही बड़ी बात है।
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हर साल की तरह रंगोत्सव मनाएंगे
बघेरा की सरपंच ऐश्वर्या देशमुख का कहना है कि होलिका दहन नहीं करने की पंरपरा पुरानी है। अब तो गांव में पुराने बुजुर्ग भी नहीं बचे हैं जो बता सके कि किस वजह से यह परंपरा शुरू हुई है। आशंका है कि सालों पहले गांव में कोई अनहोनी हुई होगी, इसी वजह से बुजुर्गों ने गांव में होलिका दहन करना बंद कर दिया होगा। पूर्व सरपंच हरीश देशमुख का कहना है कि बुजुर्गों के बताए रास्ते पर आज भी पूरा गांव चल रहा है।
होली पर सामूहिक रूप से नगाड़ा बजाने के साथ फाग गीत गाया जाता है। गांव में उत्साह के साथ पर्व मनाते हैं पर होलिका दहन नहीं करते।
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