जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर की सड़कों की दुर्दशा पर तल्ख टिप्पणी की है कि क्या जयपुर अपनी खूबसूरती और विरासत के लिए जाना जाने वाला गौरवशाली गुलाबी नगर बना रहेगा या फिर बुनियादी ढांचे की कमी से ढहते हुए एक डूबते शहर में बदल जाएगा। सड़कों की बदहाली के कारण न केवल शहर की छवि खराब हो रही हैं, बल्कि लोगों के मूलभूत अधिकारों का हनन भी हो रहा है।
कोर्ट ने स्थिति पर चिंता जताते हुए मुख्य सचिव, प्रमुख नगरीय विकास सचिव, जयपुर विकास प्राधिकरण आयुक्त व जयपुर हैरिटेज और ग्रेटर नगर निगम आयुक्त से जवाब-तलब किया। साथ ही जयपुर विकास प्राधिकरण आयुक्त व दोनों नगर निगमों के आयुक्तों को निर्देश दिया कि सर्वे कर दो सप्ताह में तथ्यात्मक रिपोर्ट और चार सप्ताह में सड़कों की मरम्मत का प्लान पेश किया जाए। न्यायाधीश प्रमिल कुमार माथुर ने राजस्थान पत्रिका की खबरों के आधार बुधवार को स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेकर इस मामले में जनहित याचिका दर्ज की।
कोर्ट ने चिंता जाहिर की
कोर्ट ने सड़कों के हालात पर चिंता जाहिर की। वहीं, जलभराव और उफनते सीवर की समस्या के लिए उठाए गए कदमों और सड़कों के लिए घटिया निर्माण सामग्री व तकनीकी कमजोरी के जिम्मेदारों व बिना जांच बिल पास करने वालों के नामों का खुलासा भी करने को कहा।
ये करेंगे न्यायालय का सहयोग
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अदालत का सहयोग करने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर, अधिवक्ता तनवीर अहमद, संदीप पाठक और मधुसुधन सिंह राजपुरोहित को न्यायमित्र के रूप में नियुक्त किया।
शहर की सड़कों के हालात बदतर
कोर्ट ने कहा कि मानसून के दौरान शहर की सड़कों के हालात बदतर हैं, जिससे उसकी वैश्विक छवि पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। हर मानसून में जलभराव, बाढ़ और जल निकासी की समस्या उत्पन्न हो जाती है। इससे दैनिक जीवन, पर्यावरण और स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। जिम्मेदार अधिकारी समस्या का समाधान करने में विफल हैं।

करदाताओं के पैसे का उपयोग कर रोड बनाई जाती है, लेकिन घटिया सामग्री के कारण आए दिन क्षतिग्रस्त हो जाती है। वहीं, क्वालिटी चेक और जिम्मेदारी तय किए बिना रोड को चालू कर दिया जाता है। आज तक शायद ही किसी रोड ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया गया हो, बल्कि उन्हें वापस ठेके दे दिए जाते हैं। इन हालात से लोगों के जीवन का मूलभूत अधिकार प्रभावित हो रहा है।
खराब सड़कों के दोषी ठेकेदारों पर एक्शन का दावा रहा फेल
सड़क निर्माण के बाद अनुबंधित ठेकेदार फर्म को उस सड़क को सुधार करने की मियाद निर्धारित है। यह डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड (डीएलपी) 2 से 5 साल तक का होता है। ठेकेदार ऐसी कई सड़कों को डीएलपी से बाहर निकलवाने के लिए सक्रिय हैं। इसके पीछे तर्क दे रहे हैं कि इस बार ज्यादा बारिश होने के कारण सड़कें ज्यादा बदहाल हुई हैं। हालांकि, कई सड़कें ऐसी भी हैं जो पूरी तरह सुरक्षित हैं।
विभाग ने क्या किया था दावा
नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग ने दावा किया था कि शहरों में कोई भी सड़क निर्धारित समय सीमा से पहले 30 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो गई तो अनुबंधित ठेकेदार पर कार्रवाई होगी, लेकिन यह दावा केवल कागजों तक ही सीमित रह गया। जमीनी हकीकत यह है कि शहरों की सड़कों की हालत बदतर बनी हुई है और कहीं भी ठोस कार्रवाई नजर नहीं आई है। लोगों को जख्मी सड़कों से गुजरना पड़ रहा है।
विभाग ने पिछले वर्ष 20 सितंबर को सभी नगरीय निकाय, नगर विकास न्यास और विकास प्राधिकरणों से ऐसी सड़कों की सूची मांगी थी। ये सड़कें डिफेक्ट लायबिलिटी पीरियड (डीएलपी यानि अनुबंधित फर्म द्वारा ठीक करने की मियाद) में हैं, जिन्हें सुधारने की जिम्मेदारी अनुबंधित फर्म की है। ज्यादातर निकायों ने केवल खानापूर्ति की, न तो सड़कों की सही जांच हुई और न ही दोषी ठेकेदारों पर कोई प्रभावी कार्रवाई।
राजस्थान में तीन साल में 124 लोगों की मौत
सड़कों पर बने गड्ढे जानलेवा होते जा रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से सड़क दुर्घटनाओं की जारी रिपोर्ट में सामने आया है कि देश भर में इन गड्ढों की वजह से 4808 लोग मारे गए। इनमें 124 लोग राजस्थान के हैं। गड्ढों से मौतों के मामलों में राजस्थान देश के प्रमुख 9 राज्यों में शामिल हैं। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केन्द्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने बताया कि सड़क दुर्घटनाओं की आखिरी रिपोर्ट 2022 में जारी की गई थी।
राजस्थान में कितनी हुई घटनाएं
इसमें 2020 से 2022 यानी तीन साल की दुर्घटनाओं की जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन सालों में गड्ढ़ों की वजह से 11,635 दुर्घटनाएं हुई। राजस्थान में इन तीन सालों में सड़कों पर हुए गड्ढों की वजह से 287 सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें 124 लोग मारे गए। गड्ढों की वजह से सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश, असम, हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडू राज्यों में हुई है।
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