हैवतगंज गंगा पंप नहर योजना फेल, 30 साल में भी नहीं पहुंचा खेतों तक पानी

गौरव कुमार| लखीसराय सूर्यगढ़ा प्रखंड के किसानों की सिंचाई समस्या दूर करने के लिए 16 अप्रैल 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने हैवतगंज गंगा पंप नहर योजना की शुरुआत की थी। 25 करोड़ रुपए की लागत से बनी इस योजना से 3500 हेक्टेयर खेतों में पानी पहुंचाने का लक्ष्य था। इसके लिए लगभग 9 किलोमीटर लंबा कैनाल बनाया गया। लेकिन 30 साल बीतने के बाद भी किसानों के खेतों में अबतक एक बूंद भी पानी नहीं पहुंचा। 2 दिसंबर 2018 को स्थानीय सांसद ललन सिंह की पहल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजना के जीर्णोद्धार की शुरुआत की। माणिकपुर गांव से शुरू हुए इस काम पर 11 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च होने थे। इसमें 10 करोड़ रुपए नहर की मरम्मती और डेढ़ करोड़ रुपए हैवतगंज में मोटर व पंप लगाने के लिए तय किए गए थे। स्थानीय किसानों का आरोप है कि मरम्मत के नाम पर भारी अनियमितता हुई। प्लास्टर की जगह सीमेंट से लीपापोती कर दी गई। नहर फिर से क्षतिग्रस्त हो गई। अब कैनाल में गोयठा सुखाया जा रहा है। झाड़ियां और जंगल उग आए हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार किऊल नदी की धारा बदलने से योजना बेकार हो गई। अधिकारी हर साल मरम्मत के नाम पर लाखों रुपए खर्च करते हैं। लेकिन नतीजा शून्य है। गौरव कुमार| लखीसराय सूर्यगढ़ा प्रखंड के किसानों की सिंचाई समस्या दूर करने के लिए 16 अप्रैल 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने हैवतगंज गंगा पंप नहर योजना की शुरुआत की थी। 25 करोड़ रुपए की लागत से बनी इस योजना से 3500 हेक्टेयर खेतों में पानी पहुंचाने का लक्ष्य था। इसके लिए लगभग 9 किलोमीटर लंबा कैनाल बनाया गया। लेकिन 30 साल बीतने के बाद भी किसानों के खेतों में अबतक एक बूंद भी पानी नहीं पहुंचा। 2 दिसंबर 2018 को स्थानीय सांसद ललन सिंह की पहल पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजना के जीर्णोद्धार की शुरुआत की। माणिकपुर गांव से शुरू हुए इस काम पर 11 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च होने थे। इसमें 10 करोड़ रुपए नहर की मरम्मती और डेढ़ करोड़ रुपए हैवतगंज में मोटर व पंप लगाने के लिए तय किए गए थे। स्थानीय किसानों का आरोप है कि मरम्मत के नाम पर भारी अनियमितता हुई। प्लास्टर की जगह सीमेंट से लीपापोती कर दी गई। नहर फिर से क्षतिग्रस्त हो गई। अब कैनाल में गोयठा सुखाया जा रहा है। झाड़ियां और जंगल उग आए हैं। विभागीय सूत्रों के अनुसार किऊल नदी की धारा बदलने से योजना बेकार हो गई। अधिकारी हर साल मरम्मत के नाम पर लाखों रुपए खर्च करते हैं। लेकिन नतीजा शून्य है।  

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