2 दशकों से गोपालगंज सीट पर भाजपा का दबदबा:कभी कांग्रेस का था मजबूत गढ़, स्वतंत्रता के बाद पकड़ हुई खत्म, नए दलों का उदय

2 दशकों से गोपालगंज सीट पर भाजपा का दबदबा:कभी कांग्रेस का था मजबूत गढ़, स्वतंत्रता के बाद पकड़ हुई खत्म, नए दलों का उदय

गोपालगंज विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बड़े बदलावों की कहानी कहता है। देश की आजादी के शुरुआती दशकों में यह सीट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गढ़ थी, लेकिन अब यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभुत्व में आ गई है। आगामी चुनाव में विभिन्न दल अपनी साख मजबूत करने में जुटे हैं। 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1971 तक, गोपालगंज सीट पर कांग्रेस पार्टी का लगातार दबदबा रहा। इस दौरान 1967 में सोशलिस्ट पार्टी की एकमात्र जीत को छोड़कर, कांग्रेस ने अधिकांश चुनाव जीते। कमला राय (1952-1957), सत्येंद्र नारायण सिंह (1961 उप-चुनाव), अब्दुल गफूर (1962) और रामदुलारी सिन्हा (1969, 1971) जैसे प्रमुख नेताओं ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1971 का चुनाव कांग्रेस के लिए इस सीट पर आखिरी बड़ी जीत साबित हुआ। 1971 के बाद गोपालगंज की जनता ने कांग्रेस को लगभग इनकार कर दिया। 1977 के चुनाव में, आपातकाल के बाद आई ‘जनता लहर’ में कांग्रेस का गढ़ टूट गया और यह सीट जनता पार्टी की राधिका देवी ने जीती। 1980 में निर्दलीय जीते थे काली प्रसाद इसके बाद से, गोपालगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस दोबारा कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है। 1980 के दशक में निर्दलीय उम्मीदवारों और उसके बाद जनता दल ने इस सीट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। काली प्रसाद पांडेय ने 1980 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की, जबकि सुरेंद्र सिंह ने1985 में निर्दलीय और 1990 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की। रामावतार ने 1995 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में विजय प्राप्त की। 1980 के चुनाव में निर्दलीय काली प्रसाद पाण्डेय ने कांग्रेस के जगत नारायण सिंह को हराकर एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया। इस चुनाव के बाद से कांग्रेस को इस सीट पर कभी जीत नसीब नहीं हुई। वर्तमान में, यह सीट भाजपा के खाते में है और पार्टी का यहां दबदबा कायम है।हद तो यह कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी सहानुभूति लहर में हुए 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गोपालगंज विस क्षेत्र में तीसरे स्थान पर रही। 1995 के विस चुनाव में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे,जो इस सीट पर पार्टी की कमजोर स्थिति को दर्शाता है। 2000 में लालू प्रसाद के साले जीते वहीं राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर लालू प्रसाद यादव के साले अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव ने 2000 में यह सीट जीती। फरवरी 2005 में बसपा के रेयाजुल हक राजू ने भी जीत हासिल की। सबसे ज्यादा भाजपा का दबदबागोपालगंज विधानसभा सीट पर सबसे बड़ा और निरंतर दबदबा भारतीय जनता पार्टी का रहा है। 2005 में, सुभाष सिंह ने पहली बार भाजपा को यह सीट दिलाई। इसके बाद, सुभाष सिंह ने लगातार चार बार 2005 नवंबर से 2020 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, जिससे यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई। 2022 में सुभाष सिंह के निधन के बाद हुए उप-चुनाव में, उनकी पत्नी कुसुम देवी ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर इस दबदबे को बरकरार रखा। 2 दशकों से भाजपा प्रभावी पार्टी बनकर उभरी इस प्रकार, कांग्रेस के शुरुआती प्रभुत्व के बाद, यह सीट कई राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच घूमती रही, लेकिन पिछले लगभग दो दशकों से भाजपा यहां सबसे प्रभावी पार्टी बनकर उभरी है। फिलहाल गोपालगंज सीट 2005 से वर्तमान तक लगातार बीजेपी के पास है। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की पकड़ हुई खत्म बता दें कि गोपालगंज विधानसभा सीट ने एक राजनीतिक बदलाव देखा है, जहां स्वतंत्रता के बाद की कांग्रेस की पकड़ खत्म हुई और 21वीं सदी में भाजपा ने इस सीट पर अपना मजबूत आधार स्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में स्थानीय निवासी पारसनाथ सिंह ने बताया कि लोग जब विधायक चुन के जाते है उन्हें जो निधि मिलती है उसी निधि का उपयोग वे करते हैं। विधानसभा के लिए, जिला के लिए कोई ऐसा विशेष काम मेरे नजरों में अभी तक ऐसा कोई नहीं मिला जो इस विधानसभा के लिए शहर के लिए कुछ प्लान लेकर आया हो। उसको विधानसभा से या सरकार से लड़के कोई काम किया हो। आज तक ऐसा कोई विधायक हमको दिखाई नहीं पड़ता। वर्तमान में ढाई साल से यहां विधायक है। ये भी वही काम किया जो अन्य विधायकों ने किया। नेता को पहले भ्रष्टचार पर लगाम लगाना चाहिए। जिससे जनता को राहत मिल सके। वहीं राजनीतिक विश्लेषक विमल कुमार ने बताया कि इस सीट पर कांग्रेस का कभी दौड़ हुआ करता था। इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद भी जो एक दौर था सहानुभूति का उस समय भी यहां कांग्रेस ने सीट नहीं बचा पाया था। इसका मुख्य कारण राष्ट्रीय जनता दल के पिछलग्गू हो जाने के कारण और प्रदेश में और लोकल स्तर पर जो एक नेतृत्व चाहिए उसके अभाव के कारण वह स्थान नहीं बन पाई। लेकिन वर्तमान में अभी जो पदयात्रा और कई यात्राएं हो कर रहे हैं राहुल गांधी वह कहीं ना कहीं मिल का पत्थर साबित होगा। और यह जो है एक सकारात्मक संदेश है कि आने वाले समय में इनका जगह बन सकता है लेकिन अभी काफी होमवर्क करना बाकी है। सदर विधानसभा में 2.95 लाख मतदाता गोपालगंज सदर विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 95 हजार 958 मतदाता हैं। जिसमें 1 लाख 57हजार 56 पुरुष, 1 लाख 88 हजार 96 महिला और 6 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। सदर विधानसभा सीट पर चुनाव को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख कारक 1. बाढ़ और कटाव की समस्या यह गोपालगंज सदर विधानसभा क्षेत्र की एक प्रमुख और हर साल होने वाली समस्या है। गंडक नदी के कटाव से सदर प्रखंड के कई पंचायत, जैसे- रामपुर टेंगराही, कटघरवा, जगीरी टोला, और जादोपुर दुखहरण पंचायत, सबसे अधिक प्रभावित हैं। हर साल बाढ़ और नदी के कटाव के कारण यहां के लोगों को अपना घर छोड़कर पलायन करना पड़ता है। 2. स्वास्थ्य और शिक्षा मेडिकल कॉलेज की घोषणा तो की गई है, लेकिन यह अभी तक घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाई है। यह स्थानीय लोगों के लिए एक बड़ा चुनावी मुद्दा हो सकता है।शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को भी मतदाताओं ने अहम मुद्दा बताया है। 3. शहरी और बुनियादी ढांचा शहर के कई मोहल्लों में नालों की खराब स्थिति भी एक प्रमुख समस्या है। 4. विकास कार्य और वर्तमान विधायक का प्रदर्शन वर्तमान विधायक के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों जैसे सदर अस्पताल में भवन, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र) और उनके पति के 17 वर्षों के कार्यकाल के विकास कार्यों का हिसाब-किताब चुनाव में महत्वपूर्ण होगा। 5. जातिगत समीकरण गोपालगंज में राजपूत वोटों का दबदबा माना जाता है, जिसके बाद मुसलमान और वैश्य वोट प्रभावी हैं। सभी प्रमुख दलों के लिए इन समीकरणों को साधना एक बड़ा फैक्टर होगा। कुल मिलाकर बाढ़ और कटाव, मेडिकल कॉलेज, और शहरी बुनियादी ढांचे (जाम, नाला, सड़क) के मुद्दे गोपालगंज सदर विधानसभा सीट पर चुनाव को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख कारक होंगे। गोपालगंज विधानसभा सीट का राजनीतिक इतिहास बड़े बदलावों की कहानी कहता है। देश की आजादी के शुरुआती दशकों में यह सीट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गढ़ थी, लेकिन अब यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभुत्व में आ गई है। आगामी चुनाव में विभिन्न दल अपनी साख मजबूत करने में जुटे हैं। 1952 में हुए पहले चुनाव से लेकर 1971 तक, गोपालगंज सीट पर कांग्रेस पार्टी का लगातार दबदबा रहा। इस दौरान 1967 में सोशलिस्ट पार्टी की एकमात्र जीत को छोड़कर, कांग्रेस ने अधिकांश चुनाव जीते। कमला राय (1952-1957), सत्येंद्र नारायण सिंह (1961 उप-चुनाव), अब्दुल गफूर (1962) और रामदुलारी सिन्हा (1969, 1971) जैसे प्रमुख नेताओं ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1971 का चुनाव कांग्रेस के लिए इस सीट पर आखिरी बड़ी जीत साबित हुआ। 1971 के बाद गोपालगंज की जनता ने कांग्रेस को लगभग इनकार कर दिया। 1977 के चुनाव में, आपातकाल के बाद आई ‘जनता लहर’ में कांग्रेस का गढ़ टूट गया और यह सीट जनता पार्टी की राधिका देवी ने जीती। 1980 में निर्दलीय जीते थे काली प्रसाद इसके बाद से, गोपालगंज विधानसभा सीट पर कांग्रेस दोबारा कभी जीत दर्ज नहीं कर पाई है। 1980 के दशक में निर्दलीय उम्मीदवारों और उसके बाद जनता दल ने इस सीट पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। काली प्रसाद पांडेय ने 1980 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की, जबकि सुरेंद्र सिंह ने1985 में निर्दलीय और 1990 में जनता दल के टिकट पर जीत दर्ज की। रामावतार ने 1995 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में विजय प्राप्त की। 1980 के चुनाव में निर्दलीय काली प्रसाद पाण्डेय ने कांग्रेस के जगत नारायण सिंह को हराकर एक महत्वपूर्ण बदलाव लाया। इस चुनाव के बाद से कांग्रेस को इस सीट पर कभी जीत नसीब नहीं हुई। वर्तमान में, यह सीट भाजपा के खाते में है और पार्टी का यहां दबदबा कायम है।हद तो यह कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद भी सहानुभूति लहर में हुए 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गोपालगंज विस क्षेत्र में तीसरे स्थान पर रही। 1995 के विस चुनाव में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे थे,जो इस सीट पर पार्टी की कमजोर स्थिति को दर्शाता है। 2000 में लालू प्रसाद के साले जीते वहीं राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर लालू प्रसाद यादव के साले अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव ने 2000 में यह सीट जीती। फरवरी 2005 में बसपा के रेयाजुल हक राजू ने भी जीत हासिल की। सबसे ज्यादा भाजपा का दबदबागोपालगंज विधानसभा सीट पर सबसे बड़ा और निरंतर दबदबा भारतीय जनता पार्टी का रहा है। 2005 में, सुभाष सिंह ने पहली बार भाजपा को यह सीट दिलाई। इसके बाद, सुभाष सिंह ने लगातार चार बार 2005 नवंबर से 2020 तक इस सीट का प्रतिनिधित्व किया, जिससे यह सीट भाजपा का गढ़ बन गई। 2022 में सुभाष सिंह के निधन के बाद हुए उप-चुनाव में, उनकी पत्नी कुसुम देवी ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर इस दबदबे को बरकरार रखा। 2 दशकों से भाजपा प्रभावी पार्टी बनकर उभरी इस प्रकार, कांग्रेस के शुरुआती प्रभुत्व के बाद, यह सीट कई राजनीतिक दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच घूमती रही, लेकिन पिछले लगभग दो दशकों से भाजपा यहां सबसे प्रभावी पार्टी बनकर उभरी है। फिलहाल गोपालगंज सीट 2005 से वर्तमान तक लगातार बीजेपी के पास है। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की पकड़ हुई खत्म बता दें कि गोपालगंज विधानसभा सीट ने एक राजनीतिक बदलाव देखा है, जहां स्वतंत्रता के बाद की कांग्रेस की पकड़ खत्म हुई और 21वीं सदी में भाजपा ने इस सीट पर अपना मजबूत आधार स्थापित कर लिया है। इस संदर्भ में स्थानीय निवासी पारसनाथ सिंह ने बताया कि लोग जब विधायक चुन के जाते है उन्हें जो निधि मिलती है उसी निधि का उपयोग वे करते हैं। विधानसभा के लिए, जिला के लिए कोई ऐसा विशेष काम मेरे नजरों में अभी तक ऐसा कोई नहीं मिला जो इस विधानसभा के लिए शहर के लिए कुछ प्लान लेकर आया हो। उसको विधानसभा से या सरकार से लड़के कोई काम किया हो। आज तक ऐसा कोई विधायक हमको दिखाई नहीं पड़ता। वर्तमान में ढाई साल से यहां विधायक है। ये भी वही काम किया जो अन्य विधायकों ने किया। नेता को पहले भ्रष्टचार पर लगाम लगाना चाहिए। जिससे जनता को राहत मिल सके। वहीं राजनीतिक विश्लेषक विमल कुमार ने बताया कि इस सीट पर कांग्रेस का कभी दौड़ हुआ करता था। इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद भी जो एक दौर था सहानुभूति का उस समय भी यहां कांग्रेस ने सीट नहीं बचा पाया था। इसका मुख्य कारण राष्ट्रीय जनता दल के पिछलग्गू हो जाने के कारण और प्रदेश में और लोकल स्तर पर जो एक नेतृत्व चाहिए उसके अभाव के कारण वह स्थान नहीं बन पाई। लेकिन वर्तमान में अभी जो पदयात्रा और कई यात्राएं हो कर रहे हैं राहुल गांधी वह कहीं ना कहीं मिल का पत्थर साबित होगा। और यह जो है एक सकारात्मक संदेश है कि आने वाले समय में इनका जगह बन सकता है लेकिन अभी काफी होमवर्क करना बाकी है। सदर विधानसभा में 2.95 लाख मतदाता गोपालगंज सदर विधानसभा क्षेत्र में कुल 2 लाख 95 हजार 958 मतदाता हैं। जिसमें 1 लाख 57हजार 56 पुरुष, 1 लाख 88 हजार 96 महिला और 6 थर्ड जेंडर मतदाता शामिल हैं। सदर विधानसभा सीट पर चुनाव को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख कारक 1. बाढ़ और कटाव की समस्या यह गोपालगंज सदर विधानसभा क्षेत्र की एक प्रमुख और हर साल होने वाली समस्या है। गंडक नदी के कटाव से सदर प्रखंड के कई पंचायत, जैसे- रामपुर टेंगराही, कटघरवा, जगीरी टोला, और जादोपुर दुखहरण पंचायत, सबसे अधिक प्रभावित हैं। हर साल बाढ़ और नदी के कटाव के कारण यहां के लोगों को अपना घर छोड़कर पलायन करना पड़ता है। 2. स्वास्थ्य और शिक्षा मेडिकल कॉलेज की घोषणा तो की गई है, लेकिन यह अभी तक घोषणा से आगे नहीं बढ़ पाई है। यह स्थानीय लोगों के लिए एक बड़ा चुनावी मुद्दा हो सकता है।शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को भी मतदाताओं ने अहम मुद्दा बताया है। 3. शहरी और बुनियादी ढांचा शहर के कई मोहल्लों में नालों की खराब स्थिति भी एक प्रमुख समस्या है। 4. विकास कार्य और वर्तमान विधायक का प्रदर्शन वर्तमान विधायक के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों जैसे सदर अस्पताल में भवन, अतिरिक्त स्वास्थ्य केंद्र) और उनके पति के 17 वर्षों के कार्यकाल के विकास कार्यों का हिसाब-किताब चुनाव में महत्वपूर्ण होगा। 5. जातिगत समीकरण गोपालगंज में राजपूत वोटों का दबदबा माना जाता है, जिसके बाद मुसलमान और वैश्य वोट प्रभावी हैं। सभी प्रमुख दलों के लिए इन समीकरणों को साधना एक बड़ा फैक्टर होगा। कुल मिलाकर बाढ़ और कटाव, मेडिकल कॉलेज, और शहरी बुनियादी ढांचे (जाम, नाला, सड़क) के मुद्दे गोपालगंज सदर विधानसभा सीट पर चुनाव को प्रभावित करने वाले सबसे प्रमुख कारक होंगे।  

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