‘जिस ब्लड ग्रुप का जितना ब्लड चाहिए मिल जाएगा। बस सैंपल दीजिए और ब्लड लेकर जाइए। एक यूनिट का 3 हजार रुपए लगेगा।’ ये दावा है खून बेचने वालों का। राजधानी पटना में लोग थोड़े से पैसे के लिए अपना खून बेच रहे हैं। इसमें ब्लड बैंक से लेकर हॉस्पिटल तक शामिल हैं। एक युवक ने तो ऑन कैमरा दावा किया कि वह हर महीने खून बेच रहा है। इसमें वो लोग ज्यादा हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। या जो नशे के आदी हैं। मंडे स्पेशल में पढ़िए और देखिए, कैसे लोग खुद खून बेच रहे हैं और उनकी क्या मजबूरी है? पूरा नेटवर्क कैसे काम कर रहा है? डील-1ः 20 साल से धंधा कर रहा हूं, जिस ग्रुप का ब्लड चाहिए मिलेगा सूचना थी कि हॉस्पिटल और ब्लड बैंक से जुड़े दलाल शहर में गरीब और रिक्शा चालकों को टारगेट करते हैं। उन्हें पैसे की लालच देकर खून लेते हैं। इस कड़ी में हमने हॉस्पिटल, रेलवे स्टेशन से लेकर गांधी मैदान तक पड़ताल की। गांधी मैदान में एक युवक से मुलाकात हुई। उसने दावा किया कि जितना चाहिए उतना खून मिलेगा, बस पैसा दीजिए। उसका नाम अनीश था। रिपोर्टर- हमें एक यूनिट ब्लड चाहिए। अनीश- हमारे पास दर्जनों लोग हैं, जितना ब्लड चाहिए मिल जाएगा। बस आप सैंपल लेकर आइए। रिपोर्टर- कितना लगेगा? अनीश- 3 हजार रुपए एक यूनिट का। रिपोर्टर- सही खून रहेगा ना? अनीश- एकदम सही रहेगा। 3 हजार रुपए में सामने निकालकर दिया खून डील होने के बाद अनीश ने रिपोर्टर को गांधी मैदान बुलाया। जब वहां पहुंचे तो 8 लोगों की मंडली बैठी थी। इसमें 4 ब्लड ग्रुप A पॉजिटिव, B पॉजिटिव, AB पॉजिटिव और 0 निगेटिव वाले बैठे थे। हमने अनीश को डॉक्टर का कागज दिखाया तो उसने एक आदमी को बुलाया। उसका नाम देव था। वह छोटा-मोटा काम करके घर चलाता है। डील के मुताबिक, देव ने हमारे सामने खून निकालकर दे दिया। उसके बदले में 3 हजार रुपए लिया। अनीश ने कैश में पैसा लिया और बोला- आगे भी जरूरत होगी तो बताइएगा। 20 साल से यही धंधा कर रहे हैं। अनीश ने बताया, ‘हमारे पास दर्जनों लोग हैं। महीने का 35 हजार रुपए तक कमा लेता हूं। 20 हजार रुपए घर भेज देते हैं। बाकी का पैसा खाने में चला जाता है। हमलोगों को ब्लड बैंक वाले भी बुलाते हैं।’ डील-2ः ब्लड बैंक तक सेटिंग है, बोलिए कितना चाहिए रिपोर्टर मरीज का परिजन बनकर पटना के IGIMS पहुंचा। जैसे ही OPD के बाहर आया कुछ दलालों से भेंट हुई। हमने उससे खून की डिमांड की तो वो तैयार हो गए। दलाल का नाम गोलू यादव था। रिपोर्टर- हमारे मरीज को ब्लड की जरूरत है। गोलू यादव- मिल जाएगा। कितना चाहिए। रिपोर्टर- एक यूनिट। बी पॉजिटिव। गोलू यादव- आपके पास डोनर है? रिपोर्टर- नहीं। गोलू यादव- तब ज्यादा पैसा लगेगा। रिपोर्टर- कितना पैसा लगेगा? गोलू यादव ने किसी को फोन लगाया और उसने दूसरे दलाल से हमारी बात कराई। दूसरा दलाल- आपके पास डोनर है? रिपोर्टर- नहीं। दूसरा दलाल- डॉक्टर का कागज और सैंपल चाहिए। रिपोर्टर- कितना लगेगा? दूसरा दलाल- 8,500 लगेगा। रिपोर्टर- बहुत महंगा है। दूसरा दलाल- दिन में आए हैं, रात या इमरजेंसी में रहते तो 20 हजार रुपए लेते। रिपोर्टर- प्लेटलेट्स का भी इंतजाम हो जाएगा क्या? दूसरा दलाल- हो जाएगा, लेकिन उसका 20 हजार से 30 हजार रुपए तक लगता है। रिपोर्टर- दे दीजिए एक यूनिट बी पॉजिटिव खून। दूसरा दलाल- पेपर और सैंपल पहले चाहिए। रिपोर्टर- पेपर तो नहीं है। दूसरा दलाल- देखिए बिना पेपर का संभव नहीं है। डोनर नहीं है तो हम दे देंगे, लेकिन पेपर चाहिए। रिपोर्टर- नहीं है, बहुत जरूरी है। दूसरा दलाल- अपने डॉक्टर से जय प्रभा ब्लड बैंक या रेड क्रॉस के नाम का लेटर ले लीजिए। रिपोर्टर- दोबारा वो नहीं देगा, आप ही कोई जुगाड़ लगा दीजिए। दूसरा दलाल- पेपर बनाने का अलग से लगेगा, डॉक्टर अलग से लेगा। रिपोर्टर- ठीक है हम बताते हैं। दूसरा दलाल- ठीक है। फोन कट गया। पहले दलाल गोलू ने अपना नंबर दिया और कहा- जैसा होगा बता दीजिएगा। आधे घंटा में खून आपके हाथ में रहेगा। रिपोर्टर- हो जाएगा ना? गोलू यादव- रोज का काम है भइया। रिपोर्टर- और खून की जरूरत पड़ी तो मिल जाएगा ना? गोलू यादव- भइया ई तो एगो को कॉल किए थे। ऐसा 3 से 4 ब्लड बैंक वाला है, जो काम करता है। एक यूनिट चाहिए या 100 यूनिट, आधे घंटा में खून आपके हाथ में रहेगा। बहुत लोग हैं अपने पास। रिपोर्टर- भाई थोड़ा कम कर दो। गोलू यादव- भइया पेपर है तो 8500, पेपर नहीं है तो 12000 और मेरा मेहनताना अलग से 2 हजार दे दीजिए। रिपोर्टर ने पेपर की डील 1500 रुपए में की। अगले दिन उसी जगह गोलू यादव ने ब्लड रिक्वायर्ड पेपर दे दिया। उस पर डॉक्टर का साइन और मुहर भी था। उसका दावा था कि इस पेपर के सहारे ब्लड बैंक से खून मिल जाएगा, लेकिन जब हमने जांच की तो ये डॉक्यूमेंट भी जाली था। इस नाम का डॉक्टर ही नहीं है। यहां हमने ब्लड नहीं लिया, सिर्फ डॉक्टर का डॉक्यूमेंट लिया। जो जाली था। डील-3ः हमारे पास हर ब्लड ग्रुप के लोग, जब चाहिए आधे घंटे पहले फोन करिए अनीसाबाद के महावीर कैंसर अस्पताल के आसपास एक्टिव खून बेचने वाले गैंग का सरगना जमाल है। जमाल फुलवारी शरीफ में रहता है। कभी कभार ठेला चलाता है और दिनभर नशे में चूर रहता है। यह AIIMS से लेकर महावीर कैंसर अस्पताल के मरीजों को खून बेचता है। वह खुद भी पैसे के लिए ब्लड बेचता है। उसने एक गिरोह भी बना लिया है, जिसमें 15 लोग हैं। रिपोर्टर- ब्लड चाहिए। जमाल- मिल जाएगा, कितना चाहिए। रिपोर्टर- 1 यूनिट। जमाल- जब चाहे मिल जाएगा। जिस ग्रुप का चाहिए वो आपको दे देंगे। आप सिर्फ ब्लड सैंपल लाइए और पैसा दीजिए। आधे घंटे में खून दे देंगे। रिपोर्टर- कितना लगेगा? जमाल- 3 हजार रुपए ब्लड का लगेगा। ब्लड कलेक्शन बैग का अलग से 300 रुपए लगेगा। रिपोर्टर- कुछ कम होगा क्या? जमाल- नहीं। यहीं खून जब ब्लड बैंक में जांच करा कर लेंगे तो अलग से 3000 रुपए लगेगा। ब्लड बैंक में जांच के नाम पर पैसा देना पड़ता है। डायरेक्ट खून लेंगे तो 3300 रुपए लगेगा। ब्लड बैंक के माध्यम से लेंगे तो 6300 रुपया लगेगा और यहां डॉक्टर का ब्लड रिक्वेस्ट फॉर्म भी देना होगा। रिपोर्टर- आपके पास खून कहां से आता है? जमाल- हमारे पास कुछ लोग हैं, जो खून देते हैं। हमारे पास हर ग्रुप के खून का आदमी है। डायरेक्ट आपको खून मिल जाएगा। रिपोर्टर- ब्लड बैंक वाले को भी देते हैं क्या? जमाल- हां। सब जगह सेटिंग हैं। 20 साल से यही काम कर रहे हैं। एक यूनिट में होता है 425 ml ब्लड एक यूनिट ब्लड में करीब 425 ml ब्लड होता है। कैंप में डोनेट किए गए ब्लड के टेस्ट से पता चलता है कि खून इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं। नशा करने वाले डोनर के खून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। नियमानुसार इंफेक्टड खून को डिस्पोज कर दिया जाना चाहिए। अनटेस्टेड ब्लड से फैल सकता है एड्स, हेपेटाइटिस सीनियर फिजिशियन डॉ दिवाकर तेजस्वी ने बताया, ‘ब्लड डोनेशन कैंप के दौरान केवल लोगों का एक यूनिट ब्लड निकाला जाता है। जांच के लिए इसे ब्लड बैंक भेजा जाता है। बिना जांच हुए खून को अनटेस्टेड ब्लड कहते हैं। जांच के दौरान पता चलता है कि कौन सा ब्लड एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी से ग्रस्त है। टेस्ट नहीं किए जाने के कारण संक्रमित लोगों का खून मरीज को चढ़ाए जाने से एड्स-हैपेटाइटिस जैसी बीमारियां फैलने की आशंका रहती है।’ गलत तरीके से व्यापार करने के तहत होती है सजा ब्लड के लेन-देन मामले केंद्रीय स्तर पर नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल और राज्य के स्तर पर स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल देखती है। भारत में दो संस्थाएं ब्लड सेंटर्स और उनसे संबंधित पॉलिसी का निर्धारण करती हैं। यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आता है। इसमें साफ-साफ नियम है कि ब्लड खरीदा या बेचा नहीं जा सकता है। ब्लड केवल दान किया जा सकता है। हाईकोर्ट के वकील प्रभात भारद्वाज कहते हैं, ‘ब्लड बेचने और खरीदने के लिए अभी तक विशेष रूप से कानून नहीं है। न ही इसके लिए कोई अलग से सजा का प्रावधान है। इसकी खरीद-फरोख्त को गलत तरीके से व्यापार के कानून के तहत ही अपराध माना जाता है।’ ————– ये भी पढ़ें… 38 की दवा 1200 रुपए में, डॉक्टर तय करते MRP:पंजाब, हरियाणा, हिमाचल में डिमांड पर दवाएं तैयार; कंपनियां बोलीं- जो रेट चाहेंगे हो जाएगा देश में दवाओं की कीमत सरकार नहीं बल्कि डॉक्टर खुद तय कर रहे हैं। डॉक्टर अपने मुताबिक ब्रांड बनवाते हैं। कीमत फिक्स करते हैं। 38 रुपए की दवा की MRP 1200 रुपए कर दी जा रही है। यह महज एक एग्जाम्पल है, ऐसा तमाम दवाओं में किया जा रहा है। तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की फैक्ट्रियों से ही देश में 80 फीसदी दवाएं सप्लाई की जाती हैं। कंपनियों और डॉक्टरों के इस खेल को एक्सपोज करने के लिए भास्कर रिपोर्टर इन तीनों राज्यों में पहुंचे और हॉस्पिटल संचालक बनकर दवा कंपनियों से डील की। पूरी खबर पढ़िए… ‘जिस ब्लड ग्रुप का जितना ब्लड चाहिए मिल जाएगा। बस सैंपल दीजिए और ब्लड लेकर जाइए। एक यूनिट का 3 हजार रुपए लगेगा।’ ये दावा है खून बेचने वालों का। राजधानी पटना में लोग थोड़े से पैसे के लिए अपना खून बेच रहे हैं। इसमें ब्लड बैंक से लेकर हॉस्पिटल तक शामिल हैं। एक युवक ने तो ऑन कैमरा दावा किया कि वह हर महीने खून बेच रहा है। इसमें वो लोग ज्यादा हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। या जो नशे के आदी हैं। मंडे स्पेशल में पढ़िए और देखिए, कैसे लोग खुद खून बेच रहे हैं और उनकी क्या मजबूरी है? पूरा नेटवर्क कैसे काम कर रहा है? डील-1ः 20 साल से धंधा कर रहा हूं, जिस ग्रुप का ब्लड चाहिए मिलेगा सूचना थी कि हॉस्पिटल और ब्लड बैंक से जुड़े दलाल शहर में गरीब और रिक्शा चालकों को टारगेट करते हैं। उन्हें पैसे की लालच देकर खून लेते हैं। इस कड़ी में हमने हॉस्पिटल, रेलवे स्टेशन से लेकर गांधी मैदान तक पड़ताल की। गांधी मैदान में एक युवक से मुलाकात हुई। उसने दावा किया कि जितना चाहिए उतना खून मिलेगा, बस पैसा दीजिए। उसका नाम अनीश था। रिपोर्टर- हमें एक यूनिट ब्लड चाहिए। अनीश- हमारे पास दर्जनों लोग हैं, जितना ब्लड चाहिए मिल जाएगा। बस आप सैंपल लेकर आइए। रिपोर्टर- कितना लगेगा? अनीश- 3 हजार रुपए एक यूनिट का। रिपोर्टर- सही खून रहेगा ना? अनीश- एकदम सही रहेगा। 3 हजार रुपए में सामने निकालकर दिया खून डील होने के बाद अनीश ने रिपोर्टर को गांधी मैदान बुलाया। जब वहां पहुंचे तो 8 लोगों की मंडली बैठी थी। इसमें 4 ब्लड ग्रुप A पॉजिटिव, B पॉजिटिव, AB पॉजिटिव और 0 निगेटिव वाले बैठे थे। हमने अनीश को डॉक्टर का कागज दिखाया तो उसने एक आदमी को बुलाया। उसका नाम देव था। वह छोटा-मोटा काम करके घर चलाता है। डील के मुताबिक, देव ने हमारे सामने खून निकालकर दे दिया। उसके बदले में 3 हजार रुपए लिया। अनीश ने कैश में पैसा लिया और बोला- आगे भी जरूरत होगी तो बताइएगा। 20 साल से यही धंधा कर रहे हैं। अनीश ने बताया, ‘हमारे पास दर्जनों लोग हैं। महीने का 35 हजार रुपए तक कमा लेता हूं। 20 हजार रुपए घर भेज देते हैं। बाकी का पैसा खाने में चला जाता है। हमलोगों को ब्लड बैंक वाले भी बुलाते हैं।’ डील-2ः ब्लड बैंक तक सेटिंग है, बोलिए कितना चाहिए रिपोर्टर मरीज का परिजन बनकर पटना के IGIMS पहुंचा। जैसे ही OPD के बाहर आया कुछ दलालों से भेंट हुई। हमने उससे खून की डिमांड की तो वो तैयार हो गए। दलाल का नाम गोलू यादव था। रिपोर्टर- हमारे मरीज को ब्लड की जरूरत है। गोलू यादव- मिल जाएगा। कितना चाहिए। रिपोर्टर- एक यूनिट। बी पॉजिटिव। गोलू यादव- आपके पास डोनर है? रिपोर्टर- नहीं। गोलू यादव- तब ज्यादा पैसा लगेगा। रिपोर्टर- कितना पैसा लगेगा? गोलू यादव ने किसी को फोन लगाया और उसने दूसरे दलाल से हमारी बात कराई। दूसरा दलाल- आपके पास डोनर है? रिपोर्टर- नहीं। दूसरा दलाल- डॉक्टर का कागज और सैंपल चाहिए। रिपोर्टर- कितना लगेगा? दूसरा दलाल- 8,500 लगेगा। रिपोर्टर- बहुत महंगा है। दूसरा दलाल- दिन में आए हैं, रात या इमरजेंसी में रहते तो 20 हजार रुपए लेते। रिपोर्टर- प्लेटलेट्स का भी इंतजाम हो जाएगा क्या? दूसरा दलाल- हो जाएगा, लेकिन उसका 20 हजार से 30 हजार रुपए तक लगता है। रिपोर्टर- दे दीजिए एक यूनिट बी पॉजिटिव खून। दूसरा दलाल- पेपर और सैंपल पहले चाहिए। रिपोर्टर- पेपर तो नहीं है। दूसरा दलाल- देखिए बिना पेपर का संभव नहीं है। डोनर नहीं है तो हम दे देंगे, लेकिन पेपर चाहिए। रिपोर्टर- नहीं है, बहुत जरूरी है। दूसरा दलाल- अपने डॉक्टर से जय प्रभा ब्लड बैंक या रेड क्रॉस के नाम का लेटर ले लीजिए। रिपोर्टर- दोबारा वो नहीं देगा, आप ही कोई जुगाड़ लगा दीजिए। दूसरा दलाल- पेपर बनाने का अलग से लगेगा, डॉक्टर अलग से लेगा। रिपोर्टर- ठीक है हम बताते हैं। दूसरा दलाल- ठीक है। फोन कट गया। पहले दलाल गोलू ने अपना नंबर दिया और कहा- जैसा होगा बता दीजिएगा। आधे घंटा में खून आपके हाथ में रहेगा। रिपोर्टर- हो जाएगा ना? गोलू यादव- रोज का काम है भइया। रिपोर्टर- और खून की जरूरत पड़ी तो मिल जाएगा ना? गोलू यादव- भइया ई तो एगो को कॉल किए थे। ऐसा 3 से 4 ब्लड बैंक वाला है, जो काम करता है। एक यूनिट चाहिए या 100 यूनिट, आधे घंटा में खून आपके हाथ में रहेगा। बहुत लोग हैं अपने पास। रिपोर्टर- भाई थोड़ा कम कर दो। गोलू यादव- भइया पेपर है तो 8500, पेपर नहीं है तो 12000 और मेरा मेहनताना अलग से 2 हजार दे दीजिए। रिपोर्टर ने पेपर की डील 1500 रुपए में की। अगले दिन उसी जगह गोलू यादव ने ब्लड रिक्वायर्ड पेपर दे दिया। उस पर डॉक्टर का साइन और मुहर भी था। उसका दावा था कि इस पेपर के सहारे ब्लड बैंक से खून मिल जाएगा, लेकिन जब हमने जांच की तो ये डॉक्यूमेंट भी जाली था। इस नाम का डॉक्टर ही नहीं है। यहां हमने ब्लड नहीं लिया, सिर्फ डॉक्टर का डॉक्यूमेंट लिया। जो जाली था। डील-3ः हमारे पास हर ब्लड ग्रुप के लोग, जब चाहिए आधे घंटे पहले फोन करिए अनीसाबाद के महावीर कैंसर अस्पताल के आसपास एक्टिव खून बेचने वाले गैंग का सरगना जमाल है। जमाल फुलवारी शरीफ में रहता है। कभी कभार ठेला चलाता है और दिनभर नशे में चूर रहता है। यह AIIMS से लेकर महावीर कैंसर अस्पताल के मरीजों को खून बेचता है। वह खुद भी पैसे के लिए ब्लड बेचता है। उसने एक गिरोह भी बना लिया है, जिसमें 15 लोग हैं। रिपोर्टर- ब्लड चाहिए। जमाल- मिल जाएगा, कितना चाहिए। रिपोर्टर- 1 यूनिट। जमाल- जब चाहे मिल जाएगा। जिस ग्रुप का चाहिए वो आपको दे देंगे। आप सिर्फ ब्लड सैंपल लाइए और पैसा दीजिए। आधे घंटे में खून दे देंगे। रिपोर्टर- कितना लगेगा? जमाल- 3 हजार रुपए ब्लड का लगेगा। ब्लड कलेक्शन बैग का अलग से 300 रुपए लगेगा। रिपोर्टर- कुछ कम होगा क्या? जमाल- नहीं। यहीं खून जब ब्लड बैंक में जांच करा कर लेंगे तो अलग से 3000 रुपए लगेगा। ब्लड बैंक में जांच के नाम पर पैसा देना पड़ता है। डायरेक्ट खून लेंगे तो 3300 रुपए लगेगा। ब्लड बैंक के माध्यम से लेंगे तो 6300 रुपया लगेगा और यहां डॉक्टर का ब्लड रिक्वेस्ट फॉर्म भी देना होगा। रिपोर्टर- आपके पास खून कहां से आता है? जमाल- हमारे पास कुछ लोग हैं, जो खून देते हैं। हमारे पास हर ग्रुप के खून का आदमी है। डायरेक्ट आपको खून मिल जाएगा। रिपोर्टर- ब्लड बैंक वाले को भी देते हैं क्या? जमाल- हां। सब जगह सेटिंग हैं। 20 साल से यही काम कर रहे हैं। एक यूनिट में होता है 425 ml ब्लड एक यूनिट ब्लड में करीब 425 ml ब्लड होता है। कैंप में डोनेट किए गए ब्लड के टेस्ट से पता चलता है कि खून इस्तेमाल किया जा सकता है या नहीं। नशा करने वाले डोनर के खून का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। नियमानुसार इंफेक्टड खून को डिस्पोज कर दिया जाना चाहिए। अनटेस्टेड ब्लड से फैल सकता है एड्स, हेपेटाइटिस सीनियर फिजिशियन डॉ दिवाकर तेजस्वी ने बताया, ‘ब्लड डोनेशन कैंप के दौरान केवल लोगों का एक यूनिट ब्लड निकाला जाता है। जांच के लिए इसे ब्लड बैंक भेजा जाता है। बिना जांच हुए खून को अनटेस्टेड ब्लड कहते हैं। जांच के दौरान पता चलता है कि कौन सा ब्लड एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी से ग्रस्त है। टेस्ट नहीं किए जाने के कारण संक्रमित लोगों का खून मरीज को चढ़ाए जाने से एड्स-हैपेटाइटिस जैसी बीमारियां फैलने की आशंका रहती है।’ गलत तरीके से व्यापार करने के तहत होती है सजा ब्लड के लेन-देन मामले केंद्रीय स्तर पर नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल और राज्य के स्तर पर स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल देखती है। भारत में दो संस्थाएं ब्लड सेंटर्स और उनसे संबंधित पॉलिसी का निर्धारण करती हैं। यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत आता है। इसमें साफ-साफ नियम है कि ब्लड खरीदा या बेचा नहीं जा सकता है। ब्लड केवल दान किया जा सकता है। हाईकोर्ट के वकील प्रभात भारद्वाज कहते हैं, ‘ब्लड बेचने और खरीदने के लिए अभी तक विशेष रूप से कानून नहीं है। न ही इसके लिए कोई अलग से सजा का प्रावधान है। इसकी खरीद-फरोख्त को गलत तरीके से व्यापार के कानून के तहत ही अपराध माना जाता है।’ ————– ये भी पढ़ें… 38 की दवा 1200 रुपए में, डॉक्टर तय करते MRP:पंजाब, हरियाणा, हिमाचल में डिमांड पर दवाएं तैयार; कंपनियां बोलीं- जो रेट चाहेंगे हो जाएगा देश में दवाओं की कीमत सरकार नहीं बल्कि डॉक्टर खुद तय कर रहे हैं। डॉक्टर अपने मुताबिक ब्रांड बनवाते हैं। कीमत फिक्स करते हैं। 38 रुपए की दवा की MRP 1200 रुपए कर दी जा रही है। यह महज एक एग्जाम्पल है, ऐसा तमाम दवाओं में किया जा रहा है। तीन राज्यों पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की फैक्ट्रियों से ही देश में 80 फीसदी दवाएं सप्लाई की जाती हैं। कंपनियों और डॉक्टरों के इस खेल को एक्सपोज करने के लिए भास्कर रिपोर्टर इन तीनों राज्यों में पहुंचे और हॉस्पिटल संचालक बनकर दवा कंपनियों से डील की। पूरी खबर पढ़िए…
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