रुपया रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर आया:डॉलर के मुकाबले 67 पैसे गिरकर 87.29 पर पहुंचा, विदेशी वस्तुएं महंगी होंगी

रुपया आज यानी 3 फरवरी को अपने रिकॉर्ड ऑल टाइम लो पर आ गया। इसमें अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 67 पैसे की गिरावट देखने को मिली और यह 87.29 रुपए प्रति डॉलर के अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, रुपए में इस गिरावट की वजह कनाडा, मैक्सिको और चीन पर ट्रंप के टैरिफ लगाना है, जिसे फॉरेक्स ट्रेडर्स ने वैश्विक व्यापार युद्ध का पहला कदम बताया है। इसके अलावा जिओ पॉलिटिकल टेंशन्स कारण भी रुपए पर नेगेटिव असर पड़ा है। 1 फरवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति ने तीन देशों में एक्स्ट्रा टैरिफ लगाने का ऐलान किया था अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 1 फरवरी को कनाडा और मेक्सिको पर 25% और चीन पर एक्स्ट्रा 10 टैरिफ का ऐलान किया था। हालांकि उन्होंने इस दौरान भारत का नाम नहीं लिया। इससे पहले उन्होंने फ्लोरिडा में एक कार्यक्रम में भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों पर हाई टैरिफ लगाने की धमकी थी। ट्रम्प ने कई बार ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी दी है। भारत, ब्राजील और चीन तीनों ब्रिक्स का हिस्सा हैं। इसके अलावा ट्रम्प भारत की तरफ से अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर बहुत ज्यादा टैरिफ लगाने की शिकायत कर चुके हैं। ऐसे में भारत पर भी टैरिफ का खतरा बना हुआ था। इंपोर्ट करना महंगा होगा रुपए में गिरावट का मतलब है कि भारत के लिए चीजों का इंपोर्ट महंगा होना है। इसके अलावा विदेश में घूमना और पढ़ना भी महंगा हो गया है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 86.31 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी। करेंसी की कीमत कैसे तय होती है? डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है। अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।

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