राजगीर की लुप्तप्राय जलधारा बनी पक्षियों की जीवनरेखा:प्राकृतिक जल स्रोत के संरक्षण से बढ़ी उम्मीदें, पानी में अठखेलियां करते दिखे परिंदे

राजगीर की लुप्तप्राय जलधारा बनी पक्षियों की जीवनरेखा:प्राकृतिक जल स्रोत के संरक्षण से बढ़ी उम्मीदें, पानी में अठखेलियां करते दिखे परिंदे

भीषण गर्मी और हीट वेव से त्रस्त आम जनजीवन के बीच राजगीर के जरा देवी मंदिर के पास स्थित प्राकृतिक जलधारा पक्षी जगत के लिए अमूल्य वरदान बनकर उभरी है। जो कभी एक जीवनदायिनी नदी के रूप में प्रवाहित होती थी, वह आज एक पतली जलधारा के रूप में सिमट गई है, लेकिन वन्य जीवन के लिए इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान (बिप्सा) की चार सदस्यीय टीम द्वारा आयोजित एक विशेष पक्षी-अवलोकन कार्यक्रम में यह खुलासा हुआ है। यह लुप्तप्राय जलधारा विभिन्न पक्षी प्रजातियों के लिए जीवनरेखा का काम कर रही है। टीम के सदस्यों ने बताया कि इस जलधारा में बाबूना, सफेद भौंह नाचन(व्हाइट-ब्रोड फैनटेल), लाल गुलदुम बुलबुल, नीलिमा (टिकेल्स ब्लू फ्लाईकैचर) और मुनिया जैसी पक्षी प्रजातियां जलक्रीड़ा और अठखेलियां करती देखी गईं। पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति अध्ययन दल के नेतृत्वकर्ता राहुल कुमार ने बताया कि यह स्थिति पिछले वर्ष की तुलना में काफी उत्साहजनक है। पिछले वर्ष मई महीने में यह जलधारा पूरी तरह से सूख चुकी थी, लेकिन इस वर्ष यह अब भी कलकल बह रही है। यह न केवल पक्षियों बल्कि छोटे वन्य जीवों के लिए भी जीवनदायिनी सिद्ध हो रही है। इस अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि यदि प्राकृतिक जल स्रोतों का उचित संरक्षण किया जाए, तो वे संकट के समय में भी जैव विविधता को सहारा दे सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है। खासकर उस समय जब जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण प्राकृतिक जल स्रोत तेजी से सूख रहे हैं। तितलियों और कीट-पतंगों का भी महत्वपूर्ण आश्रयस्थल बिप्सा टीम के सदस्य और राजगीर निवासी राहुल कुमार ने जानकारी ने बताया, ‘यह स्थान केवल पक्षियों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि तितलियों और विभिन्न प्रकार के कीट-पतंगों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आश्रयस्थल का काम करता है। यहां की गीली मिट्टी में बड़ी संख्या में टेललेस लाइनब्लू, कॉमन क्रो जैसी तितलियां पडलिंग करती देखी गईं, जो इस क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की समृद्धता को दर्शाता है।’ दुर्लभ पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति पक्षी प्रेमी अजय कुमार सिन्हा ने महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए बताया कि गर्मियों के कठिन मौसम में भी यहां इंडियन पैराडाइज फ्लाईकैचर, इंडियन पित्ता (नवरंग) और ड्रोंगो कुकू जैसी पक्षियों की उपस्थिति दर्ज की गई है। इन पक्षियों की उपस्थिति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह वन क्षेत्र अब भी अपना पारिस्थितिक संतुलन बनाए हुए है। पक्षियों सहित अन्य जीवों के लिए अनुकूल निवास स्थान प्रदान करता है। ये पक्षी जंगल की खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखने और कीट नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संरक्षण की दिशा में सराहनीय प्रयास एक दिवसीय पक्षी अवलोकन कार्यक्रम में पक्षी प्रेमी शिवनाथ कुमार, राहुल कुमार, अजय कुमार सिन्हा, अविनाश कुमार, तथा राहुल कुमार कुशवाहा ने सक्रिय भागीदारी की। इन प्रकृति प्रेमियों का यह प्रयास न केवल जैव विविधता के दस्तावेजीकरण में सहायक है, बल्कि आमजन में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने की दिशा में भी एक सराहनीय पहल है। पर्यावरणविदों की चेतावनी और आशा पर्यावरणविदों का मानना है कि यह उदाहरण स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भले ही मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हो, लेकिन यदि सचेत प्रयास किए जाएं तो इन प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है। वर्तमान में जब लगातार बढ़ते तापमान और हीट वेव ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है, तब भी कुछ स्थानों पर होने वाली बूंदाबांदी ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान लगती है। ऐसे में राजगीर की यह छोटी सी जलधारा वन्य जीवन के लिए एक बड़ी उम्मीद की किरण बनकर सामने आई है। भीषण गर्मी और हीट वेव से त्रस्त आम जनजीवन के बीच राजगीर के जरा देवी मंदिर के पास स्थित प्राकृतिक जलधारा पक्षी जगत के लिए अमूल्य वरदान बनकर उभरी है। जो कभी एक जीवनदायिनी नदी के रूप में प्रवाहित होती थी, वह आज एक पतली जलधारा के रूप में सिमट गई है, लेकिन वन्य जीवन के लिए इसका महत्व कम नहीं हुआ है। बिहार पर्यावरण संरक्षण अभियान (बिप्सा) की चार सदस्यीय टीम द्वारा आयोजित एक विशेष पक्षी-अवलोकन कार्यक्रम में यह खुलासा हुआ है। यह लुप्तप्राय जलधारा विभिन्न पक्षी प्रजातियों के लिए जीवनरेखा का काम कर रही है। टीम के सदस्यों ने बताया कि इस जलधारा में बाबूना, सफेद भौंह नाचन(व्हाइट-ब्रोड फैनटेल), लाल गुलदुम बुलबुल, नीलिमा (टिकेल्स ब्लू फ्लाईकैचर) और मुनिया जैसी पक्षी प्रजातियां जलक्रीड़ा और अठखेलियां करती देखी गईं। पिछले साल की तुलना में बेहतर स्थिति अध्ययन दल के नेतृत्वकर्ता राहुल कुमार ने बताया कि यह स्थिति पिछले वर्ष की तुलना में काफी उत्साहजनक है। पिछले वर्ष मई महीने में यह जलधारा पूरी तरह से सूख चुकी थी, लेकिन इस वर्ष यह अब भी कलकल बह रही है। यह न केवल पक्षियों बल्कि छोटे वन्य जीवों के लिए भी जीवनदायिनी सिद्ध हो रही है। इस अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि यदि प्राकृतिक जल स्रोतों का उचित संरक्षण किया जाए, तो वे संकट के समय में भी जैव विविधता को सहारा दे सकते हैं। यह एक महत्वपूर्ण संदेश है। खासकर उस समय जब जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के कारण प्राकृतिक जल स्रोत तेजी से सूख रहे हैं। तितलियों और कीट-पतंगों का भी महत्वपूर्ण आश्रयस्थल बिप्सा टीम के सदस्य और राजगीर निवासी राहुल कुमार ने जानकारी ने बताया, ‘यह स्थान केवल पक्षियों के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि तितलियों और विभिन्न प्रकार के कीट-पतंगों के लिए भी एक महत्वपूर्ण आश्रयस्थल का काम करता है। यहां की गीली मिट्टी में बड़ी संख्या में टेललेस लाइनब्लू, कॉमन क्रो जैसी तितलियां पडलिंग करती देखी गईं, जो इस क्षेत्र की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र की समृद्धता को दर्शाता है।’ दुर्लभ पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति पक्षी प्रेमी अजय कुमार सिन्हा ने महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हुए बताया कि गर्मियों के कठिन मौसम में भी यहां इंडियन पैराडाइज फ्लाईकैचर, इंडियन पित्ता (नवरंग) और ड्रोंगो कुकू जैसी पक्षियों की उपस्थिति दर्ज की गई है। इन पक्षियों की उपस्थिति इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह वन क्षेत्र अब भी अपना पारिस्थितिक संतुलन बनाए हुए है। पक्षियों सहित अन्य जीवों के लिए अनुकूल निवास स्थान प्रदान करता है। ये पक्षी जंगल की खाद्य श्रृंखला को संतुलित रखने और कीट नियंत्रण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संरक्षण की दिशा में सराहनीय प्रयास एक दिवसीय पक्षी अवलोकन कार्यक्रम में पक्षी प्रेमी शिवनाथ कुमार, राहुल कुमार, अजय कुमार सिन्हा, अविनाश कुमार, तथा राहुल कुमार कुशवाहा ने सक्रिय भागीदारी की। इन प्रकृति प्रेमियों का यह प्रयास न केवल जैव विविधता के दस्तावेजीकरण में सहायक है, बल्कि आमजन में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने की दिशा में भी एक सराहनीय पहल है। पर्यावरणविदों की चेतावनी और आशा पर्यावरणविदों का मानना है कि यह उदाहरण स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भले ही मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा हो, लेकिन यदि सचेत प्रयास किए जाएं तो इन प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित किया जा सकता है। वर्तमान में जब लगातार बढ़ते तापमान और हीट वेव ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है, तब भी कुछ स्थानों पर होने वाली बूंदाबांदी ‘ऊंट के मुंह में जीरे’ के समान लगती है। ऐसे में राजगीर की यह छोटी सी जलधारा वन्य जीवन के लिए एक बड़ी उम्मीद की किरण बनकर सामने आई है।  

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