नीतीश के साथ हत्या के आरोपी रहे हैं दुलारचंद:लालू ने नीतीश को कहा था- उसे भाव मत दो; फिर भी मिले, उसी चुनाव में मर्डर

नीतीश के साथ हत्या के आरोपी रहे हैं दुलारचंद:लालू ने नीतीश को कहा था- उसे भाव मत दो; फिर भी मिले, उसी चुनाव में मर्डर

तारीख- 16 नवंबर 1991 जगह- बाढ़ का ढीवर मिडिल स्कूल का पोलिंग बूथ। 1991 के बाढ़ उपचुनाव के लिए वोटिंग हो रही थी। इसी बीच दोपहर 3 बजे के आसपास वोटिंग के दौरान फायरिंग होती है। इस फायरिंग में सीता राम सिंह नाम के ग्रामीण की हत्या हो गई। हत्या के 5 घंटे बाद ढीवर थाने में सीताराम सिंह के भाई अशोक सिंह ने केस दर्ज कराया। इस केस में 4 लोगों को आरोपी बनाया। इसमें सबसे पहला नाम तब बाढ़ उपचुनाव से जनता दल के उम्मीदवार नीतीश कुमार का था। इनके साथ तत्कालीन मोकामा के विधायक दिलीप सिंह के साथ तारतर गांव के दुलारचंद यादव को भी आरोपी बनाया गया था। इनके साथ लेमुआवाद गांव के योगेंद्र प्रसाद को भी आरोपी बनाया गया था। भास्कर के पास 34 साल पुराने इस केस की एफआईआर है। सबसे पहले जानिए बाढ़ में हुआ हत्याकांड क्या है? कैसे नीतीश कुमार और दुलारचंद का नाम इसमें आया? नीतीश कुमार पर क्या आरोप लगा था? पढ़िए पूरी रिपोर्ट…. सीताराम सिंह के भाई अशोक सिंह ने तब अपनी शिकायत में लिखा था- बाढ़ संसदीय उपचुनाव में 3 बजे अपने भाई सीताराम सिंह के साथ वोट देने ढीवर मिडिल स्कूल आया था। जैसे ही ढीवर स्कूल के पूरब गए, वैसे ही जनता दल के कैंडिडेट नीतीश कुमार ने अपने करीबियों मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव और योगेंद्र प्रसाद और अन्य लोगों के साथ राइफल-पिस्टल से लैस होकर आए। नीतीश कुमार मेरे भाई को जान से मारने की नीयत से फायरिंग करने लगे। गोली मेरे भाई को लगी और उनकी मौत हो गई। बाढ़ पुलिस ने नीतीश कुमार को दी थी क्लीनचिट घटना के बाद पुलिस ने जब पूरे मामले की तफ्तीश की तो उन्होंने नीतीश कुमार को क्लीन चिट दी थी। पुलिस के मुताबिक, नीतीश कुमार का इस मामले में कोई हाथ नहीं था। इस पर अशोक सिंह ने पुलिस की चार्जशीट के खिलाफ बाढ़ कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस की चार्जशीट को किया था चैलेंज 1 सितंबर 2009 को बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने तत्कालीन CM नीतीश कुमार को दोषी पाते हुए उन पर इस मामले में ट्रायल शुरू का आदेश दिया था। बाद में यह मामला पटना हाइकोर्ट पहुंचा। यहां नीतीश कुमार ने केस को क्वैश (खत्म करने) की अपील की। नीतीश कुमार की अपील पर हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट के ट्रायल पर स्टे लगा दिया। बाद में ट्रायल की प्रक्रिया के बाद नीतीश कुमार और दुलारचंद यादव का नाम इस केस से हटा दिया गया। नीतीश कुमार पर अब कोई केस नहीं अपने 2012 के एफिडेविट में नीतीश कुमार ने इस केस का जिक्र भी किया था। हालांकि, 2024 के MLC चुनाव के दौरान दिए गए एफिडेविट में नीतीश कुमार की तरफ से स्पष्ट कहा गया है कि उनके खिलाफ किसी प्रकार का कोई केस दर्ज नहीं है। घटना को कवर कर रहे पत्रकार की आंखों देखी 1991 के उपचुनाव को कवर करते हुए सीनियर जर्नलिस्ट अरुण पांडेय पटना से बाढ़ पहुंचे थे। अरुण पांडेय कहते हैं- वो 1990 का दौर था। नीतीश कुमार के खिलाफ सिद्धेश्वर प्रसाद चुनाव लड़ रहे थे। तब खुलेआम वोट लूट का खेल होता था। बूथ लूटने के लिए सभी नेताओं के अपने-अपने लड़ाके होते थे। ये घटना भी बूथ लूट के दौरान ही हुई थी। नीतीश कुमार इसमें सीधे तौर पर शामिल नहीं थे। घटना के बाद हरनौत बाजार में उनकी मुलाकात नीतीश कुमार से भी हुई थी। ये पूरा मामला बूथ लूट और विरोध का था। सीताराम सिंह उस गांव में कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे। शिवानंद तिवारी से समझिए- नीतीश और दुलारचंद के रिश्ते नीतीश कुमार के शुरुआत से साथी रहे पुराने समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी ने 1991 के उपचुनाव का एक किस्सा लिखा है। दुलारचंद यादव की मौत पर उन्होंने लिखा, “मूंछ के बगैर मैं दुलारचंद की कल्पना नहीं कर सकता था। पहली मर्तबा 1991 के लोकसभा चुनाव के समय दुलारचंद को देखा था। नीतीश कुमार लोकसभा का अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे थे। उन दिनों हम सभी लोग एक साथ थे। मोकामा टाल के इलाके में शायद ‘ताड़पर’ का इलाका दुलारचंद के प्रभाव में था। वहां के तीन-चार बूथ पर वे एकतरफा वोट डलवा देते थे। हम लोग साथ ही बैठे थे। नीतीश कुमार ने लालू यादव को कहा कि चलकर दुलारचंद से मिल लिया जाए। उनके प्रभाव का वोट भी सुरक्षित कर लिया जाए। लालू यादव ने कहा कि क्यों आप दुलारचंद को इतना महत्व दे रहे हैं। लेकिन नीतीश जी तो अलग मिज़ाज वाले ठहरे। उन्होंने कहा कि ‘अरे भाई, वहां जो तीन चार बूथ है, उसको भी ‘प्लग’ कर दिया जाए।’ नीतीश का इसरार ऐसा था तो तय हो गया कि दुलारचंद के यहां चला जाए। बसनुमा रथ में कारवां निकला। उसमें पत्रकारों की टोली भी शामिल हो गई। कैमरा वाले भी थे। पत्रकारों में अरविंद नारायण दास भी थे। उन्होंने ही आद्री (Asian Development Research Institute) की शुरुआत की थी।’ जब कारवां ताड़तर पहुंचा तो हजारों की भीड़ वहां जमा थी। दुलारचंद ने सबका सत्कार किया और नीतीश कुमार के सर पर पगड़ी बांधी। लालू यादव के सर पर भी पगड़ी बांधी। फोटो पत्रकारों को अच्छी तस्वीर मिल गई। मुझे याद है कि उसके कुछ ही दिनों बाद गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा था। वहां हिंदुस्तान टाइम्स के स्टाल के सामने नीतीश कुमार को पगड़ी बांधते दुलारचंद की वही बड़ी तस्वीर टंगी थी। अरविंद नारायण दास ने उस प्रकरण पर दिल्ली के अखबार में आलोचनात्मक लेख भी लिखा था। आज उन्हीं दुलारचंद का मृत शरीर मीडिया में देखकर यह घटना याद आ गई।” तारीख- 16 नवंबर 1991 जगह- बाढ़ का ढीवर मिडिल स्कूल का पोलिंग बूथ। 1991 के बाढ़ उपचुनाव के लिए वोटिंग हो रही थी। इसी बीच दोपहर 3 बजे के आसपास वोटिंग के दौरान फायरिंग होती है। इस फायरिंग में सीता राम सिंह नाम के ग्रामीण की हत्या हो गई। हत्या के 5 घंटे बाद ढीवर थाने में सीताराम सिंह के भाई अशोक सिंह ने केस दर्ज कराया। इस केस में 4 लोगों को आरोपी बनाया। इसमें सबसे पहला नाम तब बाढ़ उपचुनाव से जनता दल के उम्मीदवार नीतीश कुमार का था। इनके साथ तत्कालीन मोकामा के विधायक दिलीप सिंह के साथ तारतर गांव के दुलारचंद यादव को भी आरोपी बनाया गया था। इनके साथ लेमुआवाद गांव के योगेंद्र प्रसाद को भी आरोपी बनाया गया था। भास्कर के पास 34 साल पुराने इस केस की एफआईआर है। सबसे पहले जानिए बाढ़ में हुआ हत्याकांड क्या है? कैसे नीतीश कुमार और दुलारचंद का नाम इसमें आया? नीतीश कुमार पर क्या आरोप लगा था? पढ़िए पूरी रिपोर्ट…. सीताराम सिंह के भाई अशोक सिंह ने तब अपनी शिकायत में लिखा था- बाढ़ संसदीय उपचुनाव में 3 बजे अपने भाई सीताराम सिंह के साथ वोट देने ढीवर मिडिल स्कूल आया था। जैसे ही ढीवर स्कूल के पूरब गए, वैसे ही जनता दल के कैंडिडेट नीतीश कुमार ने अपने करीबियों मोकामा विधायक दिलीप सिंह, दुलारचंद यादव और योगेंद्र प्रसाद और अन्य लोगों के साथ राइफल-पिस्टल से लैस होकर आए। नीतीश कुमार मेरे भाई को जान से मारने की नीयत से फायरिंग करने लगे। गोली मेरे भाई को लगी और उनकी मौत हो गई। बाढ़ पुलिस ने नीतीश कुमार को दी थी क्लीनचिट घटना के बाद पुलिस ने जब पूरे मामले की तफ्तीश की तो उन्होंने नीतीश कुमार को क्लीन चिट दी थी। पुलिस के मुताबिक, नीतीश कुमार का इस मामले में कोई हाथ नहीं था। इस पर अशोक सिंह ने पुलिस की चार्जशीट के खिलाफ बाढ़ कोर्ट में शिकायत दर्ज कराई थी। पुलिस की चार्जशीट को किया था चैलेंज 1 सितंबर 2009 को बाढ़ कोर्ट के तत्कालीन एसीजेएम रंजन कुमार ने तत्कालीन CM नीतीश कुमार को दोषी पाते हुए उन पर इस मामले में ट्रायल शुरू का आदेश दिया था। बाद में यह मामला पटना हाइकोर्ट पहुंचा। यहां नीतीश कुमार ने केस को क्वैश (खत्म करने) की अपील की। नीतीश कुमार की अपील पर हाईकोर्ट ने लोअर कोर्ट के ट्रायल पर स्टे लगा दिया। बाद में ट्रायल की प्रक्रिया के बाद नीतीश कुमार और दुलारचंद यादव का नाम इस केस से हटा दिया गया। नीतीश कुमार पर अब कोई केस नहीं अपने 2012 के एफिडेविट में नीतीश कुमार ने इस केस का जिक्र भी किया था। हालांकि, 2024 के MLC चुनाव के दौरान दिए गए एफिडेविट में नीतीश कुमार की तरफ से स्पष्ट कहा गया है कि उनके खिलाफ किसी प्रकार का कोई केस दर्ज नहीं है। घटना को कवर कर रहे पत्रकार की आंखों देखी 1991 के उपचुनाव को कवर करते हुए सीनियर जर्नलिस्ट अरुण पांडेय पटना से बाढ़ पहुंचे थे। अरुण पांडेय कहते हैं- वो 1990 का दौर था। नीतीश कुमार के खिलाफ सिद्धेश्वर प्रसाद चुनाव लड़ रहे थे। तब खुलेआम वोट लूट का खेल होता था। बूथ लूटने के लिए सभी नेताओं के अपने-अपने लड़ाके होते थे। ये घटना भी बूथ लूट के दौरान ही हुई थी। नीतीश कुमार इसमें सीधे तौर पर शामिल नहीं थे। घटना के बाद हरनौत बाजार में उनकी मुलाकात नीतीश कुमार से भी हुई थी। ये पूरा मामला बूथ लूट और विरोध का था। सीताराम सिंह उस गांव में कांग्रेस को सपोर्ट कर रहे थे। शिवानंद तिवारी से समझिए- नीतीश और दुलारचंद के रिश्ते नीतीश कुमार के शुरुआत से साथी रहे पुराने समाजवादी नेता शिवानंद तिवारी ने 1991 के उपचुनाव का एक किस्सा लिखा है। दुलारचंद यादव की मौत पर उन्होंने लिखा, “मूंछ के बगैर मैं दुलारचंद की कल्पना नहीं कर सकता था। पहली मर्तबा 1991 के लोकसभा चुनाव के समय दुलारचंद को देखा था। नीतीश कुमार लोकसभा का अपना दूसरा चुनाव लड़ रहे थे। उन दिनों हम सभी लोग एक साथ थे। मोकामा टाल के इलाके में शायद ‘ताड़पर’ का इलाका दुलारचंद के प्रभाव में था। वहां के तीन-चार बूथ पर वे एकतरफा वोट डलवा देते थे। हम लोग साथ ही बैठे थे। नीतीश कुमार ने लालू यादव को कहा कि चलकर दुलारचंद से मिल लिया जाए। उनके प्रभाव का वोट भी सुरक्षित कर लिया जाए। लालू यादव ने कहा कि क्यों आप दुलारचंद को इतना महत्व दे रहे हैं। लेकिन नीतीश जी तो अलग मिज़ाज वाले ठहरे। उन्होंने कहा कि ‘अरे भाई, वहां जो तीन चार बूथ है, उसको भी ‘प्लग’ कर दिया जाए।’ नीतीश का इसरार ऐसा था तो तय हो गया कि दुलारचंद के यहां चला जाए। बसनुमा रथ में कारवां निकला। उसमें पत्रकारों की टोली भी शामिल हो गई। कैमरा वाले भी थे। पत्रकारों में अरविंद नारायण दास भी थे। उन्होंने ही आद्री (Asian Development Research Institute) की शुरुआत की थी।’ जब कारवां ताड़तर पहुंचा तो हजारों की भीड़ वहां जमा थी। दुलारचंद ने सबका सत्कार किया और नीतीश कुमार के सर पर पगड़ी बांधी। लालू यादव के सर पर भी पगड़ी बांधी। फोटो पत्रकारों को अच्छी तस्वीर मिल गई। मुझे याद है कि उसके कुछ ही दिनों बाद गांधी मैदान में पुस्तक मेला लगा था। वहां हिंदुस्तान टाइम्स के स्टाल के सामने नीतीश कुमार को पगड़ी बांधते दुलारचंद की वही बड़ी तस्वीर टंगी थी। अरविंद नारायण दास ने उस प्रकरण पर दिल्ली के अखबार में आलोचनात्मक लेख भी लिखा था। आज उन्हीं दुलारचंद का मृत शरीर मीडिया में देखकर यह घटना याद आ गई।”  

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