Diwali 2025: दीप जलाएं, प्रदूषण नहीं”- डॉ. सूर्यकान्त की अपील, कहा दीपावली खुशियों की नहीं प्रदूषण की न बने वजह

Diwali 2025: दीप जलाएं, प्रदूषण नहीं”- डॉ. सूर्यकान्त की अपील, कहा दीपावली खुशियों की नहीं प्रदूषण की न बने वजह

Diwali 2025 Pollution Free Festival: किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (KGMU) के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्यकांत ने दीपावली के अवसर पर नागरिकों से एक सशक्त अपील की है-“दीप जलाएं, प्रदूषण नहीं।” उन्होंने कहा कि दीपों का यह पर्व प्रकाश, ऊर्जा और जीवन में सकारात्मकता का प्रतीक है। इसे पटाखों के शोर और जहरीले धुएं से नहीं, बल्कि दीपों की सौम्य रोशनी और आपसी प्रेम से मनाया जाना चाहिए।

डॉ. सूर्यकांत, जो ऑर्गेनाइजेशन फॉर कंजर्वेशन ऑफ एनवायरनमेंट एंड नेचर (OCEN) के अध्यक्ष और नेशनल कोर कमेटी, डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर एंड क्लाइमेट एक्शन के सदस्य हैं, ने दीपावली के मौके पर लोगों से विशेष सावधानी बरतने की अपील की है। उन्होंने कहा कि बढ़ता प्रदूषण, आतिशबाजी और असावधानी पूर्ण व्यवहार लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों पर खतरनाक असर डाल रहे हैं।

पौराणिक और वैज्ञानिक संतुलन

डॉ. सूर्यकांत ने दीपावली के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को याद करते हुए कहा कि यह पर्व मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था। उन्होंने बताया कि आधुनिक अनुसंधान और गूगल डेटा के अनुसार, लंका से अयोध्या आने में लगभग 20–21 दिन लगते हैं, इसी कारण दशहरे के लगभग 20 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है। परंतु उन्होंने चिंता जताई कि समय के साथ दीपावली का स्वरूप बदल गया है। अब यह सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि आर्थिक और मनोरंजन का पर्व बन गया है। आतिशबाजी का अत्यधिक प्रयोग इस त्यौहार की सबसे गंभीर समस्या बन चुकी है, जिससे वायु प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है।

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पटाखों के जहरीले असर-स्वास्थ्य के लिए खतरा

डॉ. सूर्यकान्त ने बताया कि आतिशबाजी से निकलने वाला धुआं और रासायनिक कण हवा को जहरीला बना देते हैं। पटाखों में पाए जाने वाले कैडमियम, बेरियम, रूबीडियम, स्ट्रॉन्शियम और डाइऑक्सिन जैसे रसायन न केवल फेफड़ों, हृदय, आंखों और त्वचा पर असर डालते हैं, बल्कि मिट्टी और जल को भी प्रदूषित करते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में इस समय लगभग 4 करोड़ लोग अस्थमा और 6 करोड़ लोग सीओपीडी (Chronic Obstructive Pulmonary Disease) से पीड़ित हैं। दीपावली का मौसम इन मरीजों के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं होता। पटाखों का धुआं और महीन धूल उनके फेफड़ों में प्रवेश कर दम घुटने, दमा का दौरा या दिल की धड़कन बढ़ाने का कारण बनता है।

सांस संबंधी रोगियों के लिए विशेष सावधानियां

डॉ. सूर्यकान्त ने अस्थमा, एलर्जी और सीओपीडी से पीड़ित व्यक्तियों को सलाह दी कि वे दीपावली के दौरान अधिक से अधिक घर के अंदर रहें, धूल या धुएं वाले क्षेत्रों में न जाएं और मास्क का प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि  रोगी नियमित रूप से अपने इनहेलर और दवाओं का सेवन करें, तरल पदार्थ ज्यादा लें और यदि सांस लेने में कठिनाई बढ़े तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। उन्होंने यह भी कहा कि घरों में दीपावली से पहले होने वाली सफाई, पेंटिंग और रंगाई-पुताई के दौरान उत्पन्न धूल और रासायनिक गंध भी सांस के मरीजों के लिए खतरनाक हो सकती है। रंगों में मौजूद केमिकल्स फेफड़ों और नाक की झिल्ली को उत्तेजित करते हैं, जिससे अस्थमा और एलर्जी के लक्षण बढ़ जाते हैं। ऐसे रोगियों को सलाह दी जाती है कि घर की सफाई और पेंटिंग से दूर रहें, और जब तक रासायनिक गंध पूरी तरह खत्म न हो जाए, उस स्थान में प्रवेश न करें,” उन्होंने कहा।

हृदय रोगियों के लिए भी खतरा

डॉ. सूर्यकांत ने बताया कि दीपावली के दौरान पटाखों का शोर और प्रदूषण हृदय रोगियों और उच्च रक्तचाप वाले मरीजों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। तेज आवाज और प्रदूषित हवा से रक्तचाप अचानक बढ़ सकता है, जिससे बेचैनी, सिरदर्द, चक्कर या हृदय गति बढ़ने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।  उन्होंने कहा लोगों की हाल ही में एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी हुई है, उन्हें पटाखों और धुएं से पूरी तरह बचना चाहिए । डॉ. सूर्यकान्त ने यह भी सुझाव दिया कि दिल के मरीज भीड़भाड़ वाले इलाकों में न जाएं, और तनाव से बचने के लिए ध्यान, योग या शांत गतिविधियों का सहारा लें।

आंखों और त्वचा की सुरक्षा

उन्होंने कहा कि दीपावली के दौरान आंखों और त्वचा की सुरक्षा भी उतनी ही आवश्यक है जितनी सांस की। अगर किसी व्यक्ति की आंख में पटाखा लग जाए तो आंख को कभी न रगड़ें, बल्कि तुरंत साफ पानी से धोकर चिकित्सक से संपर्क करें। साथ ही, प्रोटेक्टिव ग्लासेज़ पहनें और सिंथेटिक कपड़ों की बजाय सूती कपड़े पहनें ताकि आग लगने की संभावना कम हो।  उन्होंने कहा कि पटाखे कभी भी जेब में न रखें और बच्चों को हमेशा बड़ों की देखरेख में ही पटाखे जलाने दें । यदि त्वचा जल जाए तो केवल ठंडे पानी से धोएं, मक्खन या तेल न लगाएं और जरूरत हो तो तुरंत अस्पताल जाएं।

कम प्रदूषण वाले विकल्प अपनाएं

डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि हमें आतिशबाजी के बजाय कम प्रदूषण वाले विकल्पों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाजी, कम्प्रेस्ड एयर तकनीक और पर्यावरण-हितैषी दीप सजावट का प्रयोग करें। साथ ही चीन निर्मित पटाखों से बचें क्योंकि वे अधिक विषैले रसायनों से बने होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि पटाखे यदि जलाने ही हों तो खुले मैदान में, ज्वलनशील वस्तुओं से दूर और पास में पानी या बालू की बाल्टी रखकर ही जलाएं ताकि आकस्मिक स्थिति में आग पर तुरंत काबू पाया जा सके।

पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी

डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि दीपावली का असली संदेश है-“अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना”।उन्होंने कहा कि  हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी खुशी किसी और के स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए खतरा न बने। दीप जलाएं, लेकिन प्रदूषण नहीं फैलाएं। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे पर्यावरण की रक्षा करें, हवा को जहरीला न बनाएं और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ वातावरण का संकल्प लें।

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