मध्य प्रदेश की सहकारी संस्थाओं में भ्रष्टाचार किस कदर फैला हुआ है। इसका उदाहरण ग्वालियर में सामने आया है। यहां जिला सहकारी केंद्रीय बैंक (DCCB) और प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों (PACS) के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से 6 करोड़ रुपए से अधिक के ‘बारदाना’ (जूट और प्लास्टिक की बोरियां) घोटाले को अंजाम दिया गया। यह घोटाला 2016 से 2023 तक, यानी भाजपा की शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस की कमलनाथ, दोनों सरकारों के कार्यकाल में बेरोकटोक चलता रहा। इस संगठित लूट में 29 प्रशासक व समिति प्रबंधक और 143 सोसायटियों के इंस्पेक्टर सीधे तौर पर शामिल थे। सालों तक ठंडे बस्ते में पड़ी शिकायतों के बाद अब इस घोटाले की फाइल एकबार फिर खुली है। सहकारिता विभाग ने एक उच्च-स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया है, जो पिछले तीन महीने से इस घोटाले की कड़ियां जोड़ने में जुटी है। कैसे गरीबों के राशन और किसानों की उपज की बोरियों को बेचकर सरकारी खजाने को चूना लगाया गया। पढ़िए रिपोर्ट कैसे हुआ 6 करोड़ का घोटाला: तीन स्तरों पर हुई लूट
यह घोटाला एक सुनियोजित तरीके से तीन अलग-अलग स्तरों पर किया गया, जैसा कि सहकारिता विभाग की प्रारंभिक जांच में सामने आया है PDS बारदाने की सीधी बिक्री, 2.62 करोड़ रुपए की हेराफेरी
ग्वालियर की 72 सहकारी समितियों से जुड़े 72 कर्मचारियों और 10 प्रशासकों पर आरोप है कि उन्होंने PDS दुकानों से लौटी बोरियों को बेचा और उससे मिली 2.62 करोड़ रुपए की राशि को समिति के खाते में जमा करने के बजाय उसका निजी तौर पर इस्तेमाल किया। यह हेराफेरी सीधे तौर पर सेल्समैनों और समिति प्रबंधकों की मिलीभगत से हुई। नागरिक आपूर्ति निगम को नहीं लौटाया बारदाना, 2.89 करोड़ खा गए
44 अन्य सहकारी समितियों ने एक कदम आगे बढ़कर नागरिक आपूर्ति निगम द्वारा PDS के लिए भेजी गई बोरियों को लौटाया ही नहीं। पिछले 5 सालों में इन समितियों ने 2.89 करोड़ रुपए मूल्य की बोरियां खुले बाजार में बेच दीं और निगम को कागजों में हिसाब-किताब उलझाकर गुमराह करते रहे। फसल खरीदी की बोरियों की हेराफेरी, 89.39 लाख जेब में
27 सहकारी समितियों ने गेहूं, धान और सरसों जैसी फसलों की सरकारी खरीदी के लिए मार्कफेड और अन्य एजेंसियों से मिली बोरियों में गड़बड़ी की। 6 साल की अवधि में इन समितियों ने 89.39 लाख रुपये की बोरियां वापस नहीं कीं और उन्हें बेचकर रकम अपनी जेब में डाल ली। पहले क्यों दबी रही घोटाले की फाइल?
सूत्रों के अनुसार, इस घोटाले की शिकायतें स्थानीय स्तर पर कलेक्टर और सहकारिता विभाग के अधिकारियों से लगातार की जा रही थीं, लेकिन हर बार इसे नजरअंदाज कर दिया गया। अपैक्स बैंक प्रशासन, जो सहकारी बैंकों की शीर्ष संस्था है, से भी शिकायत की गई, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। मामले में हरकत तब शुरू हुई, जब इसी साल मार्च में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने वन विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक बर्णवाल को सहकारिता विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा। बर्णवाल जब ग्वालियर के दौरे पर गए, तो उनसे पूर्व मंत्री और ग्वालियर को-ऑपरेटिव बैंक के पूर्व अध्यक्ष भगवान सिंह यादव ने मुलाकात की। यादव ने उन्हें लिखित में दस्तावेजों के साथ इस घोटाले की जानकारी दी। मुख्य सचिव के हस्तक्षेप के बाद जांच ने पकड़ी रफ्तार
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि निलंबन की कार्रवाई के बावजूद जांच की गति धीमी थी। इसके बाद इस घोटाले की शिकायत सीधे मुख्य सचिव अनुराग जैन को भेजी गई। मुख्य सचिव ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे तत्काल संज्ञान में लिया। इसके बाद सहकारिता विभाग के अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने मई 2025 में इस शिकायत को टीएल (समय-सीमा) सूची में डाल दिया, जिसका अर्थ था कि अब इस पर निश्चित समय के भीतर कार्रवाई करनी होगी। यहीं से जांच ने असली रफ्तार पकड़ी और पिछले तीन महीनों से रिकॉर्ड खंगाले जा रहे हैं। जांच में आ रही हैं ये बड़ी चुनौतियां
घोटाले की जांच कर रही 12 सदस्यीय टीम के सामने कई बड़ी बाधाएं हैं सोसाइटियों से रिकॉर्ड गायब: जांच टीम के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उन्हें 9 सोसायटियों की जांच का जिम्मा मिला है, लेकिन अधिकांश जगहों से 2016 से 2023 तक का पुराना रिकॉर्ड गायब कर दिया गया है। स्टॉक रजिस्टर, कैश बुक और लेजर में हेरफेर किया गया है। आरोपियों की मृत्यु: चूंकि घोटाला काफी पुराना है, कई सोसायटियों के तत्कालीन प्रशासकों और प्रबंधकों की मृत्यु हो चुकी है। ऐसे में उनसे वसूली और जिम्मेदारी तय करना एक बड़ी कानूनी चुनौती है। विभागों से अधूरा रिकॉर्ड: जांच टीम ने खाद्य आपूर्ति निगम से 2016 से 2023 तक का पूरा रिकॉर्ड मांगा था, लेकिन निगम अब तक केवल तीन साल का ही रिकॉर्ड दे पाया है। इसी अधूरे रिकॉर्ड में पता चला है कि निगम को दो साल में ही 40.50 लाख रुपए के बारदाने वापस नहीं मिले हैं। पूरा रिकॉर्ड आने पर यह आंकड़ा कई गुना बढ़ सकता है। शिकायतकर्ता ने कहा- घोटाला बड़ा, अधिकारी बोले- जिम्मेदारी तय करेंगे
जॉइंट रजिस्ट्रार, ग्वालियर, भूपेंद्र सिंह के मुताबिक ‘राज्य शासन के निर्देश पर तीन महीने पहले जांच शुरू की गई थी। इंस्पेक्टर स्तर के 12 अधिकारियों की एक टीम बनाई गई है। हमने एफसीआई, मार्कफेड और खाद्य आपूर्ति निगम से बारदानों की सप्लाई का पूरा रिकॉर्ड मांगा है। रिकॉर्ड मिलते ही जिम्मेदारी तय कर कानूनी कार्रवाई की जाएगी।’ वहीं ग्वालियर जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष और शिकायतकर्ता भगवान सिंह यादव का कहना है, “यह घोटाला सिर्फ ग्वालियर तक सीमित नहीं है। शिवपुरी जिले की कई सोसायटियों में भी वारदाना वापस नहीं आया है। धार जिले से भी ऐसे ही घोटाले की खबरें हैं।


