राजस्थान में 108 एंबुलेंस सिर्फ ‘कागजों’ में ही समय पर पहुंच रही हैं। कागजों में किलोमीटर और पहुंच के समय के डेटा में हेरफेर कर ‘रेस्पॉन्स टाइम’ मैनेज किया जा रहा है ताकि कंपनी जुर्माने से बचा जा सके। नतीजा ‘गोल्डन ऑवर’ बीतने से मरीजों की जान जोखिम में पड़ रही है। भास्कर रिपोर्टर ने खुद मरीज बनकर इस ‘खेल’को उजागर किया। अक्टूबर में 22 दिन तक प्रदेशभर की करीब 250 एंबुलेंस के डेटा की पड़ताल की। दरअसल, शर्त यह है कि एंबुलेंस मरीज के पास शहरी क्षेत्र में 20 मिनट और ग्रामीण क्षेत्र में 30 मिनट में पहुंचनी चाहिए। इसके बाद हर मिनट 50 रुपए पेनल्टी का प्रावधान। इससे बचने के लिए यह सारा खेल किया जा रहा है। उदाहरण देखिए, चित्तौड़ में एंबुलेंस (RJ 14 PE 5791) को कागजों में 54 मिनट में 108 किमी (120 किमी/स्पीड़) चलना दिखाया, जबकि हकीकत में 41 किमी ही चली थी। कोटा जिले की एंबुलेंस (RJ 14 PE 7719) मरीज को लेने 57 मिनट में पहुंची, लेकिन रिकॉर्ड में 27 मिनट दिखाया। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मार्फत प्रदेश में संचालित 1094 एंबुलेंस ने 22 अक्टूबर तक करीब 37,702 कॉल अटेंड किए, जिनमें 17,317 इमरजेंसी केस थे। एंबुलेंस सेवा का संचालन ईएमआरआई ग्रीन हेल्थ सर्विसेज करती है, जबकि कॉल सेंटर टीसीआईएल संभालता है। एंबुलेंस सेवा पर 2024-25 में प्रदेश में 268.59 करोड़ खर्च का बजट था। रिपोर्टर ने मरीज बनकर इस तरह किया खुलासा किलोमीटर और समय के खेल को उजागर करने भास्कर रिपोर्टर चेस्ट पेन का मरीज बना। बोराबास से साथी कॉलर ने 29 अक्टूबर शाम 7.35 बजे एंबुलेंस को कॉल किया। फोन पर करीब 5.30 मिनट बात हुई। केस असाइन होने पर 7.40 बजे मैसैज आया। पुराने अनंतपुरा थाने से एंबुलेस (RJ14PG4012) 33 मिनट बाद 8.13 बजे पहुंची। रिपोर्टर को मेडिकल कॉलेज की ओपीडी में भर्ती करवाया। यह वास्तविक डेटा ही एनएचएम के पास जाना चाहिए। लेकिन, कागजों में एंबुलेंस को 7.54 बजे पहुंचना दिखाकर रेस्पॉन्स टाइम 19 मिनट बताया। 25 किमी दूरी को भी 19 किमी कर दिया। खेल यह… ड्राइवर एप डेटा GPS से वेरिफाई नहीं
108 एंबुलेंस की मॉनिटरिंग के लिए ड्राइवर एप है। मरीज का कॉल आने और केस असाइन होने पर यह एक्टिव होता है। एंबुलेंस स्टार्ट होने के बाद मरीज तक पहुंचने व उसे अस्पताल छोड़ने से जुड़ी हर डिटेल इसमें होती है। पायलट को मरीज के पास पहुंच कर एप पर सीन वाला बटन दबाना है, जिससे रेस्पॉन्स टाइम पता लगे। लेकिन, चालक पहले ही चलती गाड़ी में बटन दबा रहे हैं। अफसर इस डेटा का जीपीएस और पीसीआर बुक से क्रॉस वेरिफिकेशन नहीं करते। पायलट और स्टाफ दबी जुबान वे स्वीकारते हैं कि आरएम स्तर से उन पर पैनल्टी बचाने का दबाव है। एनएचएम ने कहा- यह गलत प्रेक्टिस, जांच करेंगे एनएचएम स्टेट नॉडल ऑफिसर (आईएपी) डॉ. महेश सचदेवा ने कहा कि यह गलत प्रेक्टिस है। रेस्पोंस टाइम मैनेज करने के लिए ड्राइवर एप पर सीन पर पहुंचे बिना बटन दबाया जा रहा, यह हमारी नॉलेज में आया था। जांच करवाकर एक्शन लेंगे। केस क्लॉज डेटा का जीपीएस से वेरिफिकेशन करेंगे। इधर, एनएचएम मिशन निदेशक एवं चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के पदेन संयुक्त सचिव डॉ. अमित यादव के पीएस हरीश कुमार ने इस प्रकरण की जांच करवाने की बात कही। कंपनियों ने नहीं दिए जवाब ईएमआरआई ग्रीन हेल्थ सर्विसेज के वाइस प्रेसीडेंट सुबोध सत्यवादी ने कहा कि ऐसा नहीं है। राजस्थान पीआरओ हैड सुमित दत्ता ने कहा कि केस वेरिफिकेशन के बाद ही प्रतिक्रिया दे सकते हैं। टीसीआईएल राजस्थान कॉल सेंटर हेड नवीन शर्मा ने कहा कि हम एनएचएम से बाध्य हैं, कोई डिटेल या वर्जन नहीं दे सकते।


