भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने ई-कॉमर्स और क्विक-कॉमर्स सेक्टरों में अनुचित मूल्य निर्धारण प्रथाओं, खासकर ‘जीरो-प्राइसिंग’ जैसी नीतियों पर अंकुश लगाने के लिए नए नियम लागू किए हैं। ये नियम 7 मई, 2025 से प्रभावी हो चुके हैं। नए फ्रेमवर्क के तहत 2009 के लागत नियमों में व्यापक बदलाव किया गया है, जिसमें गैर-प्रतिस्पर्धी कीमतों का आकलन करने के लिए स्पष्ट कार्यप्रणाली दी गई है। अनुचित मूल्य निर्धारण की पहचान के लिए औसत परिवर्तनीय लागत को प्राथमिक बेंचमार्क बनाया गया है। हालांकि, सीसीआई उद्योग की विशिष्टताओं और मामले की जटिलता के आधार पर औसत कुल लागत, औसत टालने योग्य लागत, या दीर्घकालिक औसत वृद्धिशील लागत जैसे वैकल्पिक उपायों का उपयोग कर सकता है।
छोटी कंपनियों को बराबर मौका
निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए, जांच के दायरे में आने वाली कंपनियों को अब अपने खर्च पर स्वतंत्र विशेषज्ञों की मदद से लागत आकलन को चुनौती देने का अधिकार होगा। यह कदम आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीतियों पर नियामकीय निगरानी बढ़ाने और छोटी कंपनियों को बड़े प्लेटफॉर्म्स के साथ समान अवसर प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि और याचिका
ऑल इंडिया कंज्यूमर प्रोडक्ट्स डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन (एआईसीपीडीएफ) ने सीसीआई के समक्ष एक याचिका दायर कर प्रमुख ई-कॉमर्स और क्विक-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की मूल्य निर्धारण रणनीतियों की जांच की मांग की थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि ये प्लेटफॉर्म भारी छूट और अन्य अनुचित प्रथाओं के जरिए बाजार में प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
क्विक-कॉमर्स का बढ़ता दबदबा
ग्लोबल डाटा के अनुसार, भारत में क्विक-कॉमर्स सेक्टर तेजी से विस्तार कर रहा है। शहरी आबादी दैनिक आवश्यकताओं के लिए त्वरित डिलीवरी सेवाओं पर निर्भरता बढ़ा रही है। उपभोक्ताओं की तत्काल डिलीवरी और समय बचाने वाली सेवाओं की मांग ने क्विक-कॉमर्स विकल्पों की संख्या में वृद्धि की है। नए नियमों से न केवल बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि उपभोक्ताओं को भी उचित मूल्य और बेहतर सेवाएं मिलने की उम्मीद है।
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